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कचरे के ढेर में भवष्यि ढूंढ़ते हैं बच्चे

कचरे के ढेर में भविष्य ढूंढ़ते हैं बच्चे विडंबना. श्रम विभाग व जिला बाल संरक्षण इकाई बच्चों को उनके अधिकार दिलाने की दिशा में उदासीन अधिकतर संस्थाएं बाल अधिकार, बाल संरक्षण आदि के नाम पर कर रही हैं खानापूरी कम उम्र से ही होटलों, गैरेजों में काम कर अपना व परिजनों का पेट भरने को […]

कचरे के ढेर में भविष्य ढूंढ़ते हैं बच्चे विडंबना. श्रम विभाग व जिला बाल संरक्षण इकाई बच्चों को उनके अधिकार दिलाने की दिशा में उदासीन अधिकतर संस्थाएं बाल अधिकार, बाल संरक्षण आदि के नाम पर कर रही हैं खानापूरी कम उम्र से ही होटलों, गैरेजों में काम कर अपना व परिजनों का पेट भरने को हैं विवशजिले में कई जगहों पर आपको छोटे-छोटे बच्चे कचरे का ढेर चुनते, होटलों, गैरेजों में काम करते दिख जायेंगे. कभी-कभी उनकी विवशता पर आपको दया भी आयेगी. परंतु, हममें से बहुत कम लोग ही उनके दुख में भागीदार बनने की कोशिश करते हैं. सरकार द्वारा इन बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए कई योजनाएं भी चलायी जाती हैं. बावजूद इसके धरातल पर काम कम ही दिखता है. इन बाल श्रमिकों का जीवन पटरी पर लाने के लिए कई स्तर पर काम किये जाने की जरूरत है. नोट. फोटो नंबर 19 सीएचपी 1 है. कैप्सन होगा- कचरे के ढेर में बचपन तलाशते बच्चे संवाददाता, छपरा (सदर)सरकार के द्वारा बच्चों को बाल अधिकार, बाल संरक्षण, समेकित बाल संरक्षा योजना तथा बाल संरक्षण समिति के माध्यम से उनका अधिकार दिला कर उन्हें बेहतर नागरिक बनाने की दिशा में प्रयास करने का प्रावधान है. परंतु, बच्चों को उनका अधिकार दिला कर व उन्हें बाल अधिकारों से वंचित करनेवालों के खिलाफ कार्रवाई करने की दिशा में लगीं अधिकतर सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं की उदासीनता के कारण शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र में सैकड़ों बच्चे कचरे के ढेर में अपना भविष्य ढूंढ़ते देखे जा सकते हैं. सरकारी संस्थाएं हालांकि संगठित बाल मजदूरों या होटलों या ढाबों में काम करनेवाले बाल मजदूरों को धावा दल के माध्यम से पुनर्वास का दावा करती हैं, परंतु उनके दावों और धरातल की सच्चाई में काफी अंतर है. 73 बाल श्रम विशेष विद्यालय भी नहीं हुए कारगर श्रम विभाग द्वारा सरकार के निर्देश के आलोक में जिले में 73 विशेष बाल श्रम विद्यालय सरकार के द्वारा खोले गये थे, जिसमें जिले के बालश्रम से मुक्त कराये गये चिह्नित 11 सौ बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास किया गया था. नौ वर्ष पूर्व प्रारंभ ये विद्यालय छह से आठ महीने के अंदर ही कहीं धरातल पर, तो कहीं कागजों पर चलने के बाद बंद हो गये. यही, नहीं कई विद्यालय चलानेवाली स्वयंसेवी संस्थाओं के रुपये आज भी विभाग के यहां बकाया हैं. ऐसी स्थिति में बच्चों के अधिकार को ले प्रशासनिक दावे का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. पेट के लिए काम करते हर जगह दिखाई देंगे बाल श्रमिक – बॉक्स के लिए इन बच्चों को अधिकार दिलाने व उन्हें संरक्षित कर मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सरकार के द्वारा करोड़ों रुपये प्रति माह खर्च किये जा रहे हैं, परंतु कुछ संस्थाओं को छोड़ दें, तो 80 फीसदी संस्थाएं कागजों पर ही बड़े-बड़े होटलों में बाल संरक्षण, बाल अधिकार आदि पर दर्जन भर लोगों की उपस्थिति में सेमिनार कर खानापूरी कर लेती हैं. तभी तो जिले में सैकड़ों दुकानों पर बाल बच्चे जहां जूठी थाली धोते, मोटर गैरेज में काम करते, निजी घरों में नौकर के रूप में काम करने के अलावा छपरा शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक कचरों की ढेर में अपना भविष्य ढूंढ़ते दिखते हैं. पढ़ने की उम्र में गरीब परिवारों के इन लड़के-लड़कियों को कचरे पर अपना भविष्य ढूंढ़ते देख आम जन तो तरस खाते हैं, परंतु, इनके अधिकारों व संरक्षण को ले सरकार से लाखों-लाख रुपये लेनेवाली संस्थाओं को इनकी स्थिति दिखाई नहीं देती. कई के भविष्य के साथ स्वास्थ्य पर भी बुरा असर गरीब परिवार के इन बच्चों के सुबह से ही कचरे के ढेर पर कागज, पॉलीथिन, टिन, प्लास्टिक आदि के टूटे-फूटे सामान चुनने तथा उन्हें कबाड़ी के यहां बेचने के साथ-साथ हानिकारक मादक पदार्थों को भी लत लग गयी है. कई कबाड़ी संचालक तो इनसे लेनेवाले सामान के बदले 25 से 30 रुपये देने के साथ-साथ साइकिल का पंक्चर बनाने में उपयोग किये जानेवाले सुलेशन या अन्य मादक पदार्थ दे देते हैं, जिसकी लत लग जाने के बाद इन बच्चों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है. हालांकि श्रम विभाग तथा बाल संरक्षण इकाई के पदाधिकारी इन बाल मजदूरों या कचरे पर अपना भविष्य ढूंढ़नेवाले बच्चों के संबंध में अपने-अपने अनुसार अपना पक्ष रखते हैं. श्रम विभाग संगठित बाल मजदूरों या विभिन्न होटलों, ढाबाें में काम करनेवाले बाल मजदूरों को मुक्त कराया जा रहा है. अब तक इस माह में सोनपुर मेला या अन्य स्थानों से छह बाल मजदूरों को मुक्त कराया जा चुका है. दिलीप भारती श्रम अधीक्षक, सारण कूड़े-कचरे पर अपना भविष्य ढूंढ़ने वाले बच्चों को मुक्त कराने व उन्हें स्कूल से जोड़ने के लिए खुला आश्रय काम कर रहा है. हालांकि, एक ओर जहां संसाधन सीमित हैं, वहीं ऐसे बच्चों के अभिभावक भी इन्हें काम कराने को ही प्राथमिकता देते हैं. इससे अभी तक बच्चों को उनका अधिकार दिलाने में परेशानी हो रही है. भास्कर प्रियदर्शीसहायक निदेशक, जिला बाल संरक्षण इकाई, सारण

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