समस्तीपुर : भारत सरकार ने पिछले आठ नवंबर को पांच सौ एवं एक हजार रुपये के चलन को बंद करने की घोषणा कर दी. इस घोषणा के बाद प्रधानमंत्री के ही शब्दों में यह मात्र कागज का टुकड़ा भर रह गया. बैंक एवं एटीएम से रुपये निकाले की सीमा भी तय कर दी गयी. सरकार […]
समस्तीपुर : भारत सरकार ने पिछले आठ नवंबर को पांच सौ एवं एक हजार रुपये के चलन को बंद करने की घोषणा कर दी. इस घोषणा के बाद प्रधानमंत्री के ही शब्दों में यह मात्र कागज का टुकड़ा भर रह गया. बैंक एवं एटीएम से रुपये निकाले की सीमा भी तय कर दी गयी. सरकार के इस फैसले से खास से आमलोग तक सब प्रभावित हुए. लोगों के समक्ष सब्जी, दाल खरीदने के लिये भी पैसे नहीं रहे. खैर किसी तरह लोगों ने दिनदिनभर एटीएम एवं बैंकों पर कतार में लगकर दो हजार से लेकर दस हजार रुपये तक निकाल भी लिया वह वह घर का निर्माण हो या फिर अन्य बड़े कार्य उसे कुछ दिन के लिये रोक दिया. काम रुकने का सबसे ज्यादा असर दैनिक मजदूरों पर पड़ा जो दिनभर कमाकर घर जाता था, तो उसके घर के चूल्हे जलते थे.
मजदूरों के समक्ष रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी. जिनके पास काम थे वह भी पैसे की किल्लत के कारण काम कराने से हाथ खड़ा कर दिया. इस वजह से नवंबर महीना तो मजदूरों को काफी कठिनाई से गुजरा. दिसंबर में थोड़ी स्थिति सुधरी, लोगों के पास पैसे आने लगे तो ठंड ने इन मजदूरों पर तुषारापात कर दिया. ठंड के कारण काम कराने की बात तो दूर, घर से निकलते भी नहीं है. खासकर दस बजे तक लोग अपने घरों में दुबके रहते हैं.
एक महीने से मजदूरों की मंडी में छायी हैवीरानी
शहर के सोनवर्षा चौक पर मजदूरों की मंडी लगती है. प्रतिदिन सुबह में सैकड़ों मजदूर यहां पर आते हैं. शहर के लोगों को काम कराना है तो यहां से वे मजदूरों को बुलाकर ले जाते हैं. पर पिछले एक माह से स्थिति यह है कि इक्के-दुक्के मजदूरों को ही काम मिल पा रहा है. खासकर तीन दिसंबर के बाद से जब से ठंड ज्यादा पड़ने लगा है, तब से तो मजदूरों को बैठकर ही वापस अपने घर लौट जाना पड़ता है. मजदूरों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कालाधन खोजने के लिये भले ही यह कदम उठाया हो, पर उन गरीबों की रोजी रोटी तत्काल प्रभावित हो गयी है. परिवार के भरण-पोषण के लिए इस कड़ाके की ठंड में काम की खोज में भटकना पड़ रहा है. यदि मजदूरों को काम मिल भी जाता है, तो उसके समक्ष मजदूरी की समस्या उत्पन्न हो जाती है. मालिक खुदरे की समस्या बताकर टरका देते हैं या फिर चार पांच मजदूरों को एक साथ दो हजार का नोट थमा दिया जाता है. इसे खुदरा कराने का भी झंझट रहता है. नोटबंदी के बाद से मजदूरों की परेशानी काफी बढ़ गयी है.
दिनभर भटकने के बाद भी नहीं मिल पा रहा काम
राज मिस्त्री का काम करने वाले रामपुर केशोपट्टी निवासी विजय कुमार ने कहा कि नोटबंदी के बाद एक माह में आधे से अधिक दिन काम नहीं मिला. रोजाना 250 रुपये मजदूरी मिलता है. मगर, इसपर भी आफत है. ऐसे में परिवार का भरण पोषण कैसे हो. मजदूरी का काम करने वाले संतोष कुमार ने कहा सरकार अमीरों की खोज में गरीबों को परेशान सरकार कर रही है. इन्हें तो पांच सौ का नोट देखे हुए कई दिन गुजर जाते हैं.
भुट्टा चौक निवासी श्रवण कुमार ने कहा कि नोटों की समस्या से सबसे ज्यादा मजदूरों को परेशानी हुई है. काम नहीं मिलने के कारण कई बार बैठारी की नौबत आ गयी. अन्य रोजी रोजगार के लिये पैसे की जरूरत होती है. ऐसे में जहां भर पेट भोजन की समस्या हो रही हो, वहां रोजगार कैसे बदलें. राज मिस्त्री का काम करने वाले रघुनाथ सहनी ने कहा कि रुपये की समस्या के कारण लोग घर नहीं बनवा पा रहे हैं. ऐसे में उन्हें रोजगार कहां से मिले. कई दिन तो खेतों में मजदूरी कर काम चलाया.