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कर्जदारों के चंगुल में 1.63 अरब

राजस्व हानि. सही समय पर लोन चुकता नहीं कर रहे बैंक के कर्जदार ‘ बैंक जहां लोगों के विकास के लिए कर्ज देते हैं.जिससे लोगों की आर्थिक उन्नति हो सके. वहीं लोग बैंकों से कर्ज लेकर वापस करने में कोताही बरत रहे हैं. समस्तीपुर : माल महराज का मिर्जा खेले होली कुछ यही हाल बैंक […]

राजस्व हानि. सही समय पर लोन चुकता नहीं कर रहे बैंक के कर्जदार

‘ बैंक जहां लोगों के विकास के लिए कर्ज देते हैं.जिससे लोगों की आर्थिक उन्नति हो सके. वहीं लोग बैंकों से कर्ज लेकर वापस करने में कोताही बरत रहे हैं.
समस्तीपुर : माल महराज का मिर्जा खेले होली कुछ यही हाल बैंक से ऋण लेने वाले लोगों का है. लोगों की गाढ़ी कमाई कर्जदारों के ऐश मौज में डूब रही है. विकास के नाम पर लोग जहां बैंकों से धड़ल्ले से राशि तो ऋण के रुप में ले लेते हैं. मगर इसे सही समय पर चुकता नहीं करते हैं. जिससे बैंकों की एनपीए यानि नन पर्फामिंग एसेट की रफ्तार बढती जा रही है.
वित्तीय वर्ष 14-15 तक समाप्ति तक जिले के विभिन्न बैंकों की शाखाओं की 16382 लाख की राशि एनपीए हो चुकी है. इसके लिये बैंक राशि वसूली के लिये सर्टिफिकेट केस तो दर्ज करते हैं. मगर इससे आगे की कोई बात नहीं हो पाती है.
अग्रणी बैंक के आंकड़े को देखें तो मार्च तक विभिन्न बैंकों ने अपने यहां एनपीए की राशि वसूली के लिये 5512 लोगों पर सर्टिफिकेट केस दर्ज किया है. मगर सर्टिफिकेट केस के बाद भी लोगों से ऋण की राशि की वसूली नहीं हो पा रही है. इस बावत एलडीएम भागीरथ साव ने बताया कि सर्टिफिकेट केस से ऋण वसूली लगभग नगण्य ही है. बार बार नोटिस भेजने के बाद भी कर्जदार बैंक के चौखट तक नहीं पहुंचते हैं. वहीं कुछ कर्जदार जो कि राशि देने के लिये भी आते है तो वह नाममात्र की राशि जमा कर केस में उपस्थिति ही सिर्फ दर्ज कराते है. जिससे उन्हें आगे की मोहलत मिल जाये. बैंकों के बकाया ऋण वसूली के लिये सबसे कारगर कदम दिवालीयापन है. इस बावत कई बैंकों के प्रतिनिधियों ने कहा कि दिवालीयापन की घोषणा के बाद ही ऋण वसूली में कुछ प्रगति हो सकती है. इसके अलावा एसेट रिकंसर्टशक्शन कंपनी के निर्माण पर भी लोगों ने बल दिया. जिससे ऐसी राशियों को वसूली के लिये इस कंपनी के पास हस्तांतरित कर दी जाये. मगर इसके गठन को लेकर राशि की कमी की समस्या आ रही है. वहीं कठोर आर्थिक दंड की वकालत भी बैंकों ने की है.
मुद्रा योजना भी हो रही प्रभावित
सरकार की छोटे उधमियों के विकास के लिये शुरू की गयी मुद्रा योजना भी प्रभावित होती दिखाई दे रही है. मुद्रा के लिये अभी भी बहुत कम लोगों को ही ऋण उपलब्ध हो पाया है. बैंकों का कहना है कि एक तो असंगठित क्षेत्र होने के कारण ऐसे उद्यमियों को ऋण देने के लिये पर्याप्त कागजात उपलब्ध नहीं हो पाते हैं. वहीं कई ऋणधारक एक ही योजना के लिये अलग अलग पता देकर ऋण के लिये बैंकों को दिग्भ्रमित करते है.जिससे बैंक ऐसे लोगों के आवेदनों को वापस लौटा देती है.
एक नजर मेें सर्टिफिकेट केस के आंकड़ें
कैनरा बैंक 355
यूको बैंक 21
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया 312
बैंक ऑफ इंडिया 67
इलाहाबाद बैंक 142
इंडियन बैंक 16
इंडियन ओवरसीज बैंक 86
ओरियंटल बैंक ऑफ काॅमर्स 96
सिंडिकेट बैंक 435
विजया बैंक 9
जिला सहकारिता बैंक 1594
बिहार ग्रामीण बैंक 1720
नोट : आंकड़े मार्च 15 तक.
सर्टिफिकेट केस के प्रति बकायेदारों का नहीं रुझान
कर्ज वसूली की धीमी रफ्तार ने बैंकों के छुड़ाये पसीने

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