खानपुर : ममता, दुलार, प्यार व खुशी की प्रतीक मां तो मां होती है. मां के चरणों से बढ़कर दुनिया में कुछ भी नहीं. कहा भी गया है कि मां के चरणों में ही सभी तीर्थ निहित हंै. देवी रूपी मां का स्थान सर्वोपरि होती है. बच्चों को हलकी सी तकलीफ से पहले मां को ही दर्द चुभ जाता है. मां का कर्ज बच्चे चाहकर भी नहीं उतार पाते हैं. मां एक अद्भुत एहसास है. आज मदर्स डे पर जब मां के बिना पल रहे बच्चों के भावना जानने की कोशिश की गयी तो आंखों में आंसू भर आया.
जब किसी बच्चे की मां बचपन में ही गुजर गयी हो तो क्या बीतता होगा उन बच्चों पर. प्रखंड के डेकारी गांव स्थित एक परिवार की दर्द भरी कहानी, जब बचपन में ही छह प्यारी बिटिया को छोड़ मां चल बसी. प्रकृति की भी अजीब लीला पहले पिता का देहांत हुआ. बड़ी बहन कुछ होश संभाली तो फिर मां चल बसी. प्रखंड के डेकारी गांव निवासी सियाराम सिंह की छह पुत्री, वे स्वयं ट्यूशन कर बच्चों की पढाई-लिखाई के साथ अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे.
1982 से वे ट्यूशन पढाकर बच्चों को ज्ञान बांटते थे. वे उच्च विद्यालय सिरोपट्टी खतुआहा में भी बतौर प्राइवेट शिक्षक के रूप में अपना योगदान कई वर्षोँ तक दिए. एक हंसता-खेलता परिवार था, लेकिन शायद ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. अचानक उनका निधन विगत 3 जनवरी 2012 को हो गयी. उस समय परिवार पर एक कहर टूट पडा. छह बहने पिता की मौत के बाद मां के सहारे जीने लगी. लेकिन यहां भी ईश्वर को यह मंजूर नहीं हुआ और इनकी पत्नी सुशीला देवी भी विगत 4 नवम्बर 2013 को दुनियां छोड चल बसी. छह बहनों पर एक कहर बरप गया. पलभर में परिवार बिखर गया.
जिस वक्त इन सभी बच्चे की मां दुनियां से चल बसी उस वक्त उनकी बड़ी पुत्री बेबी सुप्रिया 15 वर्ष की थी. वह ग्यारहवीं में पढ रही थी. दूसरी बहन शशि किरण 16 वर्ष, प्रियम भारती 14 वर्ष, नीतू 12 वर्ष, मीनू 10 वर्ष, जबकि मुस्कान का उम्र 5 वर्ष है. जब मां का निधन हुआ तो सबसे छोटी बहन दो वर्ष की थी.