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अतिरिक्त राशि लेनेवाले निजी स्कूलों पर होगी कार्रवाई

समस्तीपुर : नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का अनुपालन जिले में एक अप्रैल 2010 से प्रारंभ हुआ़ आपको जानकार हैरानी होगी सर्वोच्च न्यायालय आज से 13 साल पहले यानी 2002 में ही निर्देश जारी कर दिया था कि स्कूल नो प्रॉफिट नो लस पर शिक्षा देंगे, किसी भी छात्र से प्रवेश के […]

समस्तीपुर : नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का अनुपालन जिले में एक अप्रैल 2010 से प्रारंभ हुआ़ आपको जानकार हैरानी होगी सर्वोच्च न्यायालय आज से 13 साल पहले यानी 2002 में ही निर्देश जारी कर दिया था कि स्कूल नो प्रॉफिट नो लस पर शिक्षा देंगे, किसी भी छात्र से प्रवेश के नाम पर डोनेशन नहीं ले सकेंग़े इसके बाद 2009, 2010, 2011, 2012 और 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर स्कूलों को निर्देश जारी किया़
सोमवार को शिक्षा के प्रधान सचिव ने भी कैपीटेशन फीस व री-एडमिशन के नाम पर अभिभावकों से अतिरिक्त राशि लेनेवाले निजी स्कूलों की मान्यता समाप्त करने का निर्देश दिया है़
साथ ही जिलों में जांच टीम गठित कर निजी स्कूलों का निरीक्षण कराने व इसकी जांच कराने की भी बात कही है़ इसकी रिपोर्ट विभाग को भी भेजने का निर्देश दिया है़ डीइओ बीके ओझा ने बताया कि अगर शिकायत मिलती है तो नियमानुसार कार्रवाई की जायेगी.
सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश
उच्चतम न्यायालय ने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून की संवैधानिकता को वैध ठहराया. इस कानून के तहत सभी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है़
फीस की चलते किसी छात्र को स्कूल से निष्कासित नहीं कर सकते और एक ही स्कूल में पढ़ने के दौरान अगली कक्षा में प्रोन्नति देने के समय अतिरिक्त शुल्क नहीं लेंग़े प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस कानून को संवैधानिक घोषित किया है़ दरअसल शिक्षा का अधिकार कानून से जुड़ा यह मसला 23 अगस्त, 2013 को न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा था, क्योंकि इसमें गैर सहायता वाले निजी शिक्षण संस्थानों के अधिकारों से संबंधित महत्वपूर्ण संवैधानिक मसला उठाया गया था़
350 से अधिक निजी गैरसहायता वाले स्कूलों के संगठन फेडरेशन ऑफ पब्लिक स्कूल्स की दलील थी कि यह कानून सरकार के हस्तक्षेप के बगैर ही उनके स्कूल संचालन के अधिकार का हनन करता है़ यहां बता दें कि संसद ने 2009 में संविधान में अनुच्छेद 21-क को शामिल करके शिक्षा का अधिकार कानून पारित किया था़ इसके तहत 6 से 14 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य रूप से मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया गया था़
क्या है आरटीइ अधिनियम का भाग-13
प्रवेश लेने के दौरान कोई व्यक्ति या स्कूल किसी प्रकार का शुल्क या किसी बच्चे अथवा उसके माता-पिता या अभिभावक से किसी प्रकार की जांच नहीं ले सकता. कोई स्कूल या व्यक्ति सब-सेक्शन (1) का उल्लंघन करते हुए, कोई प्रवेश शुल्क प्राप्त करता है, तो उस उल्लंघन के लिए उसपर जुर्माना लगाया जा सकता है, जो मांगे जाने वाले शुल्क का 10 गुना होगा़ जो स्कूल बच्चे की जांच लेता है तो उसपर 25,000 रुपये प्रथम उल्लंघन के लिए व 50,000 रुपये द्वितीय उल्लंघन के लिए जुर्माना लगाया जायेगा.

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