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गरमी ने दी दस्तक तो हरे हुए अग्निपीडितों के जख्म

नहीं है आग बुझाने के मुकम्मल साधनपिछली घटनाओं से सबक नहीं ले रहा प्रशासनप्रतिनिधि, मोरवागरमी के दस्तक के साथ ही अग्निपीडि़तों के जख्म फिर से हरे होने लगे हैं. न उनका आशियाना बना और न ही प्रशासन ने उसकी सुधि ली. लरूआ, सारंगपुर, केशानेनारायणपुर, धर्मपुर समेत दर्जनभर गांवों में आग की विनाश लीला लोगों के […]

नहीं है आग बुझाने के मुकम्मल साधनपिछली घटनाओं से सबक नहीं ले रहा प्रशासनप्रतिनिधि, मोरवागरमी के दस्तक के साथ ही अग्निपीडि़तों के जख्म फिर से हरे होने लगे हैं. न उनका आशियाना बना और न ही प्रशासन ने उसकी सुधि ली. लरूआ, सारंगपुर, केशानेनारायणपुर, धर्मपुर समेत दर्जनभर गांवों में आग की विनाश लीला लोगों के जेहन में अब भी ताजा है. इन अग्निकांडों में लोगों की भारी तबाही हुई थी और अग्निपीडि़तों के शरीर पर के वस्त्र के अलावे कुछ नहीं बचा था. प्रशासन ने तत्काल सहायता के रूप में पॉलीथिन और कुछ नकद रुपये देकर मरहम लगाने का जरूर काम किया. लेकिन अग्निपीडि़तों का दर्द इससे कमा नहीं है. लोगों के आशियाने अब तक नहीं बन सके हैं. अपना सब कुछ गंवा चुके लोगों को अब भी प्रशासन के भरोसे का इंतजार है. लेकिन इसका दूसरा पहलू लोगों को खूब सता रहा है. अग्निकांड के इतनी बार घटना होने के बाद भी लगता है कि प्रशासन इससे चेता नहीं है. मोरवा प्रखंड में आग बुझाने की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है. अगर आग लग जाये तो भारी तबाही होगी. आग लगने की सूरत में पटोरी या समस्तीपुर से फायर ब्रिगेड की गाड़ी मंगायी जाती है. वरूणा पुल बाधित होने की वजह से इसे पहुंचने में कई गुणा ज्यादा समय लगता है. आग लग जाने के घंटों बाद ही गाड़ी पहुंचती है तब तक सब कुछ स्वाहा हो चुका होता है. गांंव के टोलों में पंपिंग सेट की संख्या काफी कम है व बोरिंग गांव के बाहर खेतों में लगाये गये हैं. यानी अगलगी के समय कोई व्यवस्था कारगर नहीं होती है और नजर के सामने लोगों का सब कुछ लुट जाता है.

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