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शिक्षा माफिया की गिरफ्त में अधिकारी

समस्तीपुरः शिक्षा माफिया की गिरफ्त में पूरी तरह अधिकारी आ गए हैं. जिले में अधिकारियों की शह से बगैर रजिस्ट्रेशन के धड़ल्ले से कोचिंग चल रहे हैं. तत्कालीन जिलाधिकारी कुंदन कुमार के निर्देश पर पांच सौ से अधिक संचालकों ने रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन भी किया. संस्थानों की जांच के लिए टीमें भी गठित हुई. […]

समस्तीपुरः शिक्षा माफिया की गिरफ्त में पूरी तरह अधिकारी आ गए हैं. जिले में अधिकारियों की शह से बगैर रजिस्ट्रेशन के धड़ल्ले से कोचिंग चल रहे हैं. तत्कालीन जिलाधिकारी कुंदन कुमार के निर्देश पर पांच सौ से अधिक संचालकों ने रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन भी किया. संस्थानों की जांच के लिए टीमें भी गठित हुई.

इसमें वरीय उपसमाहर्ता व शिक्षा विभाग के अधिकारियों को शामिल किया था. टीम द्वारा कुछ संस्थानों की उस समय जांच भी की गई. लेकिन डीएम के जाते ही सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया. वर्तमान डीएम नवीनचंद्र झा ने भी एक पखवाड़ा पूर्व कोचिंग एक्ट को लेकर कड़े निर्देश जारी किये लेकिन समय के साथ उसे भी दबा दिया गया. जानकारों की मानें तो एक्ट को लागू नहीं होने देने के पीछे जिले के शिक्षा माफिया है.जिनकी मर्जी के बगैर कोचिंग एक्ट लागू होना संभव नहीं है. वरीय अधिकारियों के दवाब पर थोड़ी हरकत होती है लेकिन फिर सब सामान्य हो जाता है.

नहीं है इंफ्रास्ट्रक्चर
शहर सहित जिले भर में एक हजार से अधिक कोचिंग खुल चुके है. कोचिंगों के खुलने का सिलसिला लगातार जारी है. एक दो को छोड़कर किसी के पास इंफ्रास्टर नहीं है. किसी ने झोपड़ी खड़ी कर कोचिंग चलाना शुरू कर दिया तो कोई छत की जगह एस्बेस्ट्स लगा रखा है.

गर्मी में छात्रों को काफी परेशानी हो रही है. संचालक छात्रों की परेशनी का कोई ख्याल नहीं रखते है. संस्थानों के पास पेयजल व शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं की भी व्यवस्था नहीं है. छोटे कमरे में क्षमता से ज्यादा छात्रों को बिठाया जाता है.

अयोग्य शिक्षकों के सहारे संस्थान
जिले के अधिसंख्य कोचिंग संस्थानों के पास योग्य शिक्षकों का अभाव है. मैट्रिक व इंटरमीडिएट पास भी मैट्रिक व इंटर के छात्रों को किताब के सहारे पढ़ाकर खानापूर्ति कर रहे हैं. शिक्षकों के पास विषयों का खुद क्लीयर कंस्पेट नहीं है. आर्ट्रस के शिक्षक भी विज्ञान पढ़ा रहे हैं.

ठगी का शिकार बन रहे ग्रामीण छात्र व अभिभावक इन संचालकों का शिकार ज्यादातर सीधे साधे ग्रामीण छात्र व अभिभावक हो रहे हैं. उन्हें लुभावने बैनर व पोस्टर के जरिए आकर्षित किया जा रहा है. अनजान छात्रों को उन्हें ठगी का एहसास परीक्षा परिणाम के बाद होता है. तबतक तो काफी विलंब हो गया रहता है.पछतावा के अलावा उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगता है.

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