* सावन की रात आते ही ताजे हो जाते हैं रामपुर पितसिया के विस्थापितों के पुराने जख्म
मोहिउद्दीननगर : वह सावन का ही महीना था. अंधेरी रात में तेज हवा के साथ मूसलाधार बारिश हो रही थी. जिसके प्रभावित से उफनाई गंगा नदी ने रासपुर पतसिया के एक -एक कर करीब 5 सौ परिवार के आशियानों को अपनी कोख में समा लिया. चीख-पुकार के बीच लोग अपने जिगर के टुकड़ों को लेकर उसी कष्टहरिणी गंगा के तट पर शरण ली.
इस आस में कि उसके आंगन में फिर से बसंत आयेंगे. इस आस में एक-एक कर 40 सावन उसी बांध पर कटे. पैदा होने वाले बच्चे बुजुर्ग हो गये, लेकिन उनका आज तक ठिकाना नहीं हो सका. हां उनके उपर ‘विस्थापित’ का मुहर जरुर लगा, जो सरकारी फाइलों में उनकी पहचान दिलाया करती है. गंगा नदी के हाजीपुर-बाजिदपुर बांध पर वर्ष 1980 से झोपड़ियां बना कर रहने वाले इन परिवारों के करीब 70 फीसदी लोग भूमिहीन हैं.
जिसके कारण इन्हें पेट भर भोजन जुटाने के लिए मारा-मारा फिरना पड़ता है. विकास की बहती बयार अब तक यहां के आवो-हवा को बदल न सकी. नतीजा रोशनी, स्वच्छ पेयजल समेत अन्य बुनियादी जरुरतों की जिल्लत इनकी नीयत सी बनी हुई है.
विस्थान का दंश झेल रहे रामजनम महतो, हालो महतो, भरत महतो, रामपरी देवी, परमेश्वरी देवी, एतबरिया देवी, भुल्ली देवी, बेचन महतो, शिवजी महतो, कमली देवी, हीरा महतो, राम सिंहासन महतो आदि बताते हैं कि करीब 3 सौ परिवार भूमिहीन हैं.
जिन्हें अब तक सुविधा मयस्सर नहीं हुई है. पुनर्वास के लिए कई बार अनुरोध से लेकर आंदोलन तक कर चुके हैं. यहां तक कि एक बार विधायक ने इन परिवारों के विकास के लिए चुना था. तब थोड़ी आशा की किरण जगी थी. लेकिन उसे भी इंतजार के बादलों ने ही अब तक घेर रखा है.
जिसके कारण उनकी उम्मीदें अब धुंधली होने लगी है. नतीजा उनकी स्थिति किसी उस शायर की पंक्ति सी हो गयी जिसमें कहा है ‘ऐसा जगाया आपने की सो न सका, ऐसा रुलाया आपने कि चाहकर भी रो न सके.’
– ये हैं इनकी समस्याएं
* भोजन, वस्त्र, आवास, बिजली पेयजल, रोशनी व शिक्षा
* आवास के लिए जमीन,संपर्क पथ
* विद्यालय भवन, स्वास्थ्य केंद्र की व्यवस्था
* बच्चों की पढ़ाई व खेलने की व्यवस्था
* उचित मूल्य पर राशन केरोसिन
* सरकार द्वारा समय समय पर प्रदत सुविधाएं
* रोजी रोजगार,सौ दिनों की काम की गांरटी
* वृद्घावस्था व विधवा पेंशन