समस्तीपुर : जिले के बच्चों व युवाओं में खेल प्रतिभा की कमी नहीं है. अपनी प्रतिभा के दम पर यहां के बच्चे व युवाओं ने सीमित संसाधनों के बीच भी कई बार क्रिकेट, बैडमिंटन जैसे खेल में जिले का मान बढ़ाया है. अवसर मिलने पर बच्चियों ने भी राज्य व देश स्तर पर अपनी पहचान […]
समस्तीपुर : जिले के बच्चों व युवाओं में खेल प्रतिभा की कमी नहीं है. अपनी प्रतिभा के दम पर यहां के बच्चे व युवाओं ने सीमित संसाधनों के बीच भी कई बार क्रिकेट, बैडमिंटन जैसे खेल में जिले का मान बढ़ाया है. अवसर मिलने पर बच्चियों ने भी राज्य व देश स्तर पर अपनी पहचान बनायी है. बावजूद यहां खेल संसाधनों व प्रशिक्षकों की कमी से खेल दम तोड़ रहा है.
ऐसे में खेल के साथ हो रहे खिलवाड़ से बच्चों व खिलाड़ियों की प्रतिभा कुंठित होती जा रही है. जिले के 58 फीसदी विद्यालयों में खेल के मैदान का अभाव है. जिले में अंगीभूत कॉलेजों की संख्या 12 है. उसे हर साल विश्वविद्यालय की ओर से जारी कैलेंडर में शामिल कर कई तरह की खेल प्रतियोगिता में शिरकत करने के लिए आमंत्रित किया जाता है. संसाधन व खेल प्रशिक्षक के अभाव में कॉलेज खेल कैलेंडर पर भी खरा नहीं उतर पा रहा है. हालांकि, क्रिकेट, फुटबॉल व वॉलीबॉल की टीम तैयार कर ली गयी है.
इसके खिलाड़ियों को बेहतर प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है. सरकारी स्तर पर जिले में पायका के तहत खेल आयोजन कराये जाते हैं. इनमें प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक सिर्फ खानापूरी ही की जाती है. कहीं कोई पूर्व तैयारी, ट्रेनिंग या क्षमता संवर्धन की कवायद नजर नहीं आती. जैसे-तैसे आयोजन निबटा भर दिये जाते हैं. नतीजतन अच्छे खिलाड़ियों की पौध नहीं पनप पा रही.
प्रतिभा की नहीं हो पाती है परख : स्कूल व कॉलेजों में खेल प्रशिक्षकों के कमी की वजह से खिलाड़ियों की प्रतिभा बाधित रहती है. बच्चे अवसर के अभाव में आगे बढ़ने से चूक रहे हैं. विद्यालयी खेल प्रतियोगिताओं में बच्चों को शिरकत करने का मौका भी मिलता है, तो वहां भी उसकी प्रतिभा पक्षपात की बलि चढ़ जाती है. पारंपरिक खेल के अलावा अन्य खेलों में अक्सर खिलाड़ियों का टोटा रहता है.
सरकार ने हाल ही में स्कूली खेल प्रतियोगिता में हैंडबॉल को शामिल किया. हैंडबॉल के प्रशिक्षक नहीं रहने से स्कूली बच्चों का रूझान इस खेल की ओर नहीं हो पा रहा है. इससे यहां कबड्डी, क्रिकेट, फुटबॉल व वॉलीबॉल को छोड़ अन्य खेलों में हमेशा ही खिलाड़ियों का टोटा रहता है. जिले में खेल संगठनों की भरमार है. क्रिकेट, फुटबॉल, बैडमिंटन, शतरंज, कबड्डी, एथलेटिक्स के जिला संगठन हैं. इनकी निरंतर सक्रियता नहीं रहती. टूर्नामेंट आयोजनों से चंद रोज पहले ही ये नमूदार होते हैं व फिर सालों भर निष्क्रियता की चादर ओढ़े पड़े रहते हैं.
82% स्कूलों में शारीरिक शिक्षक नहीं
जिला में अभी सभी स्तर उच्च विद्यालयों की संख्या 211 है. इसमें 82 फीसदी स्कूलों में शारीरिक शिक्षक नहीं है. ऐसे में प्रतिभावान बच्चों को निखारने के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है. उत्क्रमित हाइ स्कूलों में तो शारीरिक शिक्षकों के पद ही नहीं हैं. जिला खेल पदाधिकारी किशोर कुमार कहते हैं कि खेल के क्षेत्र में उपलब्ध कराये गये संसाधन के मुताबिक बच्चों का चयन कर उसे जिला व राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में शिरकत करने के लिए भेजा जा रहा है. शारीरिक शिक्षकों की कमी की वजह से थोड़ी परेशानी हो रही है. फिर भी बच्चों की प्रतिभा की परख हो और उसकी प्रतिभा को ऊंची उड़ान मिले इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है. वहीं पढ़ोगे-लिखोगे तो होगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब की मानसिकता से अभी भी यहां के अभिभावक पूरी तरह उबरे नहीं हैं.