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सड़क किनारे मेडिकल वेस्ट

जिले में हर रोज बड़े स्तर पर बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है. बायो मेडिकल वेस्ट के सही निस्तारण का हर कोई दावा कर रहा है, लेकिन असलियत इससे कोसों दूर है. जिले भर में मौजूद सरकारी व प्राइवेट अस्पताल बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के नियमों का खुले में उल्लंघन कर रहे हैं. बायो मेडिकल वेस्ट […]

जिले में हर रोज बड़े स्तर पर बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है. बायो मेडिकल वेस्ट के सही निस्तारण का हर कोई दावा कर रहा

है, लेकिन असलियत इससे कोसों दूर है. जिले भर में मौजूद सरकारी व प्राइवेट अस्पताल बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के नियमों का खुले में उल्लंघन कर रहे हैं. बायो मेडिकल वेस्ट जहां इंसीनेरेटर में डिस्पोज होना चाहिए. इसको खुले में फेंका जा रहा है.’
समस्तीपुर : पटना हाइ कोर्ट ने मेडिकल वेस्ट निस्तारण को लेकर वर्ष 1998 में बने कानून का पालन नहीं होने पर सख्त नाराजगी जतायी थी. नियमों का पालन न करने वाले अस्पतालों पर कार्रवाई करने के आदेश दिये गये थे. शहर में मेडिकल वेस्ट के निस्तारण पर नजर डालें, तो यहां पर भी तमाम अस्पतालों में नियमों को ठेंगा दिखाया जा रहा है. 19 साल पहले बने मेडिकल वेस्ट निस्तारण के नियम आज तक पूरी तरह अमल में नहीं लाये गये हैं.
शहर के कुछेक अस्पताल व नर्सिंग होम को छोड़ अधिकांश मेडिकल वेस्ट आज भी बाहर खुले में फेंका जा रहा है. हैरत यह कि इन पर कार्रवाई तक नहीं होती है. हालांकि, अब संबंधित अधिकारी इनके लाइसेंस रद्द करने की प्रक्रिया शुरू करने की बात कह रहे हैं. शहर में करीब 60 से अधिक छोटे-बड़े नर्सिंग होम है.
सीएस अवध कुमार का कहना है कि मेडिकल वेस्ट के निस्तारण की व्यवस्था है. लेकिन जो इसका लाभ नहीं उठा रहे उनपर कार्रवाई की जायेगी.
गली-गली खुले नर्सिंग होम की हो जांच
सरकारी आंकड़ों में मेडिकल वेस्ट को लेकर लापरवाह अस्पतालों की संख्या भले शून्य हैं, लेकिन हकीकत चिंताजनक है. शहर में गली-गली नर्सिंग होम खुल रहे हैं. जहां पर मेडिकल वेस्ट निस्तारण की समुचित व्यवस्था नहीं है. इनकी जांच की याद भी जिम्मेदारों को कभी नहीं आयी. सूत्रों के मुताबिक, शहर में करीब चार हजार किलो ग्राम मेडिकल वेस्ट रोजाना निकलता है. इसमें ढाई से तीन हजार किलोग्राम का ही निस्तारण हो रहा है. सरकारी अस्पतालों में मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के पूरे प्रबंध है,
लेकिन कुछ समस्याएं अभी भी दिखाई पड़ती हैं. रात के समय मरीजों के तीमारदार डस्टबीन का प्रयोग गलत तरीके से कर देते हैं. इससे पृथक्कीकरण (कचरे का वर्गीकरण) में समस्या पैदा होती है. इसके पीछे बड़ा कारण आम लोगों का जागरूक न होना है. इंसीनेरेटर में ही इसे नष्ट करना होता है. शिक्षाविद् डाॅ दशरथ तिवारी का कहना है
कि अस्पताल का काम बीमारों का उपचार व बीमारी को खत्म करने का है, लेकिन यदि अस्पताल ही बीमारी बढ़ाने, प्रदूषण फैलाने पर्यावरण को बिगाड़ने का काम करने लगे, तो फिर नई-नई बीमारियों का बढ़ना व इनसे लोगों को पीड़ित होने से कौन रोक सकता है?
वेस्ट से होनेवाली हानि
खुले पड़े मेडिकल कचरे से निमोनिया, हैजा, कालरा, डेंगू, स्वाइन फ्लू, मेनेंजाइिटस, हेपेटाइिटस बी व कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. मवेशी भी इस कचरे को खा लेते हैं. इससे जानलेवा इंफेक्शन होता है. पर्यावरण को नुकसान होने के साथ ही बीमारियां फैलने की आशंका होती हैं.
बायो मेडिकल वेस्ट के नियम
हॉस्पिटल मैनेजमेंट को हॉस्पिटल से निकलने वाला वेस्ट तीन हिस्सों में बांटना होता है.
ब्लड, मानव अंग जैसी चीजों को रेड डिब्बे में डालना होता है.
कॉटन, सिरिंज, दवाइयों को पीले डिब्बे में डाला जाता है.
मरीजों के खाने की बची चीजों को ग्रीन डिब्बे में डाला जाता है.
इन डिब्बे में लगी पॉलीथिन के आधे भरने के बाद इसे
पैक करके अलग रख दिया जाता है, जहां इंन्फेक्शन के चांस न हो.

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