सहरसा : बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने वाला त्योहार होली रविवार और सोमवार को उत्साह के साथ मनाया जायेगा. शहर व जिले में धूमधाम के साथ रविवार शाम को होलिका दहन किया जायेगा. शहर के प्रमुख चौक-चौराहों पर होलिका दहन के लिए लकड़ी व अन्य सामग्री जुटा ली गयी है.इस रंगीली होली को तो असल में धुलंडी कहा जाता है. होली तो असल में होलीका दहन का उत्सव है, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है.
यह त्यौहार भगवान के प्रति हमारी आस्था को मजबूत बनाने व हमें आध्यात्मिकता की और उन्मुख होने की प्रेरणा देता है. पंडित विभाष चंद्र झा बताते है कि होलिका दहन से पहले होली बनाई जाती है. इसकी प्रक्रिया एक महीने पहले ही माघ पूर्णिमा के दिन शुरू हो जाती है. इस दिन गुलर वृक्ष की टहनी को गांव या मोहल्ले में किसी खुली जगह पर गाड़ दिया जाता है, इसे होली का डंडा गाड़ना भी कहते हैं. इसके बाद कंटीली झाड़ियां या लकड़ियां इसके इर्द गिर्द इकट्ठा की जाती हैं.
घनी आबादी वाले गांवों में तो मोहल्ले के अनुसार अलग-अलग होलियां भी बनाई जाती हैं. नारद पुराण के अनुसार होलिका दहन के अगले दिन प्रात: काल उठकर आवश्यक नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं के लिए तर्पण-पूजन करना चाहिए. साथ ही सभी दोषों की शांति के लिए होलिका की विभूति की वंदना कर उसे अपने शरीर में लगाना चाहिए.