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… लेकिन नप को आती नहीं शर्म

सहरसा मुख्यालय : गांधी पथ मुख्य सड़क से सटे पश्चिम वार्ड नंबर आठ की घनी आबादी वाले महादलितों की बस्ती से गुजरने वाली पक्की सड़क पर तकरीबन दस वर्षों तक कचरा फेंका जाता रहा. कचरे का लेयर दो फीट की ऊंचाई तक चढ़ गया था. अधिकारियों से साफ कराने की गुहार लगायी जाती रही. अखबारों […]

सहरसा मुख्यालय : गांधी पथ मुख्य सड़क से सटे पश्चिम वार्ड नंबर आठ की घनी आबादी वाले महादलितों की बस्ती से गुजरने वाली पक्की सड़क पर तकरीबन दस वर्षों तक कचरा फेंका जाता रहा. कचरे का लेयर दो फीट की ऊंचाई तक चढ़ गया था.
अधिकारियों से साफ कराने की गुहार लगायी जाती रही. अखबारों में भी मुहल्ले की दुर्दशा प्रकाशित होती रही. लेकिन दस वर्षों में नप कभी संवेदनशील नहीं हो सका. इस बीच गांधी पथ के नाले का मुंह भी इधर ही खोल दिया. इससे नाले का गंदा व बदबूदार पानी इस रास्ते से होकर लोगों के घरों में घुसने लगा. लोग परेशान हो गये. संक्रमण फैलता ही जा रहा था. तेजी से लोग बीमार भी होने लगे थे.
चूल्हा पीछे सौ रुपये का चंदा : बस्ती के लोगों ने बताया कि अपनी जिंदगी अपने हाथ में है. नप के भरोसे कब तक रहते. बस्ती में हर चूल्हे (परिवार) के पीछे आपस में सौ-पचास रुपये का चंदा इकट्ठा किया और सड़क पर जमा कचरे पर मिट्टी डलवा दी. खुद मेहनत कर लोगों ने उसे चौरस कर एक बार फिर साफ रास्ते का रूप दिया. नाले का मुहाना भी मिट्टी से बंद कर दिया.
इतना ही नहीं, मुहल्ले के लोगों ने उस सड़क के किनारे लगे पोलों पर बिजली के बल्ब भी लगवा दिये. अब बस्ती के लोगों को आने-जाने के लिए सुंदर और साफ रास्ता है और रोशनी भी. लेकिन अपनी अकर्मण्यता पर नप को तनिक शर्म नहीं आयी. नालों की सफाई के प्रति नप के अधिकारी-कर्मचारी अब भी गंभीर नहीं हुए. आगे लोगों का हाल बेहाल ही है.

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