सहरसा नगर : कहते है जैसा राजा वैसी प्रजा…यह कहावत काफी अनुभवों के आधार पर हमारे पूर्वजों ने कही थी. सिगरेट व शराब से होने वाली दुष्परिणामों से सभी लोग अवगत है. रोजाना बीमारी छलकते जाम व धुंए के कश के बीच हमारे आंतरिक अंगों को हानि पहुंचा रहे है.
इसके बावजूद सरकार व प्रशासन सख्ती से रोक लगाने में अक्षम साबित हो रही है. इन वस्तुओं के उपयोग से पीड़ित लोगों की तादाद अस्पतालों में लगातार बढ़ रही है. ज्ञात हो कि राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्र में शराबबंदी की घोषणा कर आंशिक कदम बढ़ाने की बात कर रही है, वहीं धु्रमपान को प्रतिबंध करने की बातें महज मौसमी खबर बन कर दम तोड़ देती है.
चलंत मयखाना बन रहा शहर
यहां शराब पीने वालों को शाकी या पैमाने की जरुरत नहीं रहती है, नशा का अजीब लत इस कदर हावी है कि लोग सड़क किनारे भी मूंह में बोतल उड़ेलते मिल जाते हैं. खासबात यह है कि पियक्कड़ों की स्पीड पानी पीने वालों को हैरत में डाल देती है. चौक -चौराहा सहित होटल व ढ़ाबा मयखाने में तब्दील हो गया. सभी जगह सामान्य रूप से सिगरेट के छल्ले उड़ाये जा रहे हैं और जाम टकरायी जा रही है.
ये जो पुलिस है…
सभ्य समाज को पुलिस की कार्रवाई से जो आस रहती है, वह सहरसा के लोगों को भी है.लेकिन आमजनों की उम्मीद पूरी होने से पहले ही दफन हो जाती है. शाम ढ़लते ही शहर की सड़कों पर पियक्कड़ों की जमात उतर जाती है. असभ्य एवं अश्लील बातों का सिलसिला शुरू हो जाता है. तंग आकर लोग यह कहने से नहीं चूकते कि खाकी वर्दी का खौफ ही नहीं रहा तो स्थिति कैसे बदलेगी.