13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

वक्षिप्तिों की तादाद हजारों, अदद अस्पताल भी नहीं हैं नसीब

विक्षिप्तों की तादाद हजारों, अदद अस्पताल भी नहीं हैं नसीब प्रभात खासमरीज व उनके परिजन इलाज के लिए खा रहे ठोकरलगातार बढ़ रहे हैं रोगी, प्रमंडलीय मुख्यालय में है मेंटल हॉस्पीटल की आवश्यकता प्रतिनिधि, सहरसा नगरबिहार से झारखंड को अलग हुए 15 साल बीत गए, लेकिन इन 15 वर्षों में बिहार सरकार राज्य में एक […]

विक्षिप्तों की तादाद हजारों, अदद अस्पताल भी नहीं हैं नसीब प्रभात खासमरीज व उनके परिजन इलाज के लिए खा रहे ठोकरलगातार बढ़ रहे हैं रोगी, प्रमंडलीय मुख्यालय में है मेंटल हॉस्पीटल की आवश्यकता प्रतिनिधि, सहरसा नगरबिहार से झारखंड को अलग हुए 15 साल बीत गए, लेकिन इन 15 वर्षों में बिहार सरकार राज्य में एक भी मानसिक अस्पताल की स्थापना नहीं कर सकी है. लिहाजा मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्तियों के परिजनों को उसके इलाज के लिए दर-दर की ठोकर खानी पड़ रही है. उनके साथ अमानवीय व्यवहार हो रहा है. झाड़-फूंक व ग्रामीण डॉक्टरों का सहारा लेना पड़ रहा है और वैसे परिजनों को बहुमूल्य जीवन का एक बड़ा हिस्सा चिंतन व तनाव में ही बिताना पड़ रहा है. राज्य के विभाजन से पूर्व रांची के कांके स्थित मेंटल अस्पताल बिहार के मानसिक रोगियों के लिए वरदान साबित होता था. उस वक्त जिला अस्पताल से रेफर मरीज भी रांची पहुंच मरीजों का इलाज आसानी से करा लेते थे. विभिन्न कारणों से सूबे में मानसिक मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. इसके बावजूद मानसिक रोगियों के लिए अस्पताल नहीं खोला जाना सरकार के मानसिक रूप से बीमार होने की ही बात बताता है. –वर्ष 2006 में हुई थी घोषणावर्ष 2006 में राज्य की एनडीए सरकार के मुखिया सीएम नीतीश कुमार ने प्रदेश में दो जगहों पर मानसिक अस्पताल खोलने की घोषणा की थी, जो घोषणा के दस वर्ष बाद भी पूरी नहीं हो सकी है. हालांकि इस बाबत कभी भी किसी जनप्रतिनिधि व अधिकारियों ने पहल भी नहीं की और घोषणा सिर्फ घोषणा तक ही सीमित रह गयी. इधर, प्रमंडलीय मुख्यालय, सहरसा में मानसिक आरोग्यशाला की आवश्यकता शिद्दत के साथ महसूस की जा रही है. क्योंकि यहां सड़कों पर हर रोज नये मानसिक रोगियों के दर्शन हो जाते हैं. सहरसा से हटिया भाया पटना जाने वाली कोसी एक्सप्रेस में ऐसे मरीजों को ले जाते परिजन रोज दिख जाते है. –जादू-टोना के चक्कर में जा रही जानमानसिक अस्पताल नहीं रहने की वजह से मरीजों के इलाज के लिए लोगों को जादू-टोना का सहारा लेना पड़ता है. अंधविश्वास के चक्कर में कई मरीजों को जान भी गंवानी पड़ी है. परिजन अपनों की पीड़ा कम करने के लिए देशी टोटके व ग्रामीण चिकित्सकों की शरण में जाने को मजबूर हैं, जबकि संपन्न लोग दूसरे प्रदेश का रूख कर लेते हैं, लेकिन गरीब तबके के लोगों को अपनी आंखों के सामने बीमार परिजन की बेबसी देखते रह जाते हैं. –मौसम के साथ बढ़ जाती है बैचेनीवातावरण में परिवर्तन होने के साथ ही मानसिक रोगियों की समस्या सामने आने लगती है. खासकर गरमी व सर्दी के शुरुआती समय में सड़कों पर मानसिक दिव्यांगों को विभिन्न आपत्तिजनक अवस्था में देखा जा सकता है. कभी-कभी लोगों को इनके हिंसक व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है. –मानवाधिकार का भी होता है हननगरीबी में भी लोग हरसंभव कोशिश कर परिजनों का इलाज कराते हैं, लेकिन मुक्कमल सुधार नहीं होने की स्थिति में दिव्यांग को घरों के अंदर कैद कर देते हैं. कभी-कभी आसपास रस्सी व जंजीर में बंधे लोग भी नजर आ जाते हैं. इस स्थिति में मानवाधिकार की चर्चा तो होती है, लेकिन दर्द के स्थायी समाधान के लिए लोग आगे नहीं आते हैं. फोटो- जंजीर से बंधे किसी विक्षिप्त का फाइल फोटो लगा देंगे…

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें