खुद दिव्यांग, लेकिन साइकिल से बच्चों को पहुंचाता है स्कूल
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जवाहर की हिम्मत देख लौट गयी बेबसी
खुद दिव्यांग, लेकिन साइकिल से बच्चों को पहुंचाता है स्कूल शारीरिक अक्षमता को पीछे छोड़ बन रहा प्रेरणास्रोत सुपौल के छातापुर का है रहनेवाला साइकिल से बच्चे को स्कूल पहुंचाता िदव्यांग जवाहर. सहरसा : कहते हैं कि आत्मविश्वास से बड़ी कोई पूंजी नहीं होती, जिसके पास आत्मविश्वास की शक्ति है वह असंभव को भी संभव […]
शारीरिक अक्षमता को पीछे छोड़ बन रहा प्रेरणास्रोत
सुपौल के छातापुर का है रहनेवाला
साइकिल से बच्चे को स्कूल पहुंचाता िदव्यांग जवाहर.
सहरसा : कहते हैं कि आत्मविश्वास से बड़ी कोई पूंजी नहीं होती, जिसके पास आत्मविश्वास की शक्ति है वह असंभव को भी संभव कर सकता है. इसी प्रकार की कहानी है शहर के हटियागाछी में रहनेवाले जवाहर कुमार की. जेठ की धूप हो या सरदी की ठिठुरन अपने एक पैर से सड़कों पर साइकिल की सवारी करते जवाहर की कर्तव्य निष्ठा अनायास ही सभी का ध्यान खींच लेती है. माता शारदा के गर्भ से जन्मे जवाहर का जन्म
जवाहर की हिम्मत….
सामान्य बच्चों की तरह ही हुआ था. जन्म के दो साल बाद प्रकृति को जवाहर की तंदुरुस्ती रास नहीं आयी. आैर जवाहर का दाहिना पैर पोलियो की भेंट चढ़ गया. गरीबी में जीवन बसर कर रहे माता-पिता ने भगवान की मरजी समझ बच्चे की अपंगता को स्वीकार कर लिया. हालांकि गरीबी की छाया में ही ककहरा की पढ़ाई करता जवाहर स्कूल होते कॉलेज की दहलीज तक पहुंच गया. शहर के आरएम कॉलेज से स्नातक प्रथम वर्ष का छात्र जवाहर इंटर में प्रथम श्रेणी लाने की वजह से गांव में प्रेरणा का स्रोत बन चुका था. साइकिल पर दाहिने पैर के बिना लाठी को सहारा बना साइकिलिंग करते जवाहर के आत्मविश्वास को देख लोग उसके जज्बे को सलाम करना नहीं भूलते हैं.
चलने में परेशानी, साइकिल ही है सवारी
जवाहर बताता है कि रोजाना बीस किमी तक साइकिल चला कर अपने दैनिक काम को पूरा करता है. हालांकि पैदल चलने या घर के अंदर काम करने में परेशानी होती है, लेकिन लंबी दूरी के सफर को तय करने में साइकिल मददगार बनती है. वह बताता है कि स्कूल के कई बच्चों को नया बाजार व गंगजला से रोजाना हटिया गाछी में स्कूल तक पहुंचाने की भी इसकी जिम्मेवारी है. ऐसा करने में अच्छा लगता है. ये वैसे बच्चे हैं, जिनके माता-पिता बच्चे को घर से दूर भेजने में अक्षम हैं. जवाहर कहता है कि शुरुआती दौर में दिव्यांगता को देख लोग मजाक भी उड़ाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. सभी आगे बढ़ने में मदद करते हैं.
दिव्यांगता नहीं, गरीबी को भी दी मात
जवाहर बताता है कि पिता के हिस्से में जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा आया था. आज भी उसी के सहारे परिवार की गाड़ी आगे बढ़ती है. शहर में रह कर पढ़ाई करना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था, लेकिन एक स्कूल में मिली नौकरी व कुछ होम ट्यूशन के बदौलत पढ़ाई के लिए धन की जरूरत पूरी होने लगी. अब स्नातक की पढ़ाई पूर्ण होने तक और भी ज्यादा परिश्रम करनी होगी. जवाहर बताता है कि देश में अक्षम लोगों को आगे बढ़ाने के लिए काफी योजनाएं चल रही हैं, लेकिन उसे अभी तक कोई सुविधा मयस्सर नहीं हुई है. सुविधा के नाम पर पांच सौ रुपये मासिक पेंशन देकर खानापूर्ति की जा रही है. वह बताता है कि ट्राइसाइकिल या बाइक मिलने से समय की बचत होती.
आइएएस बनना है सपना
जवाहर बताता है कि मैट्रिक की परीक्षा देने के दौरान परीक्षा कक्ष में व्यंग्य करते एक वीक्षक ने दिव्यांगता को केंद्रित कर काफी तीखा व्यंग्य किया था. उन दिनों की बातें आज भी याद आती हैं. वह बताता है कि लोगों की सोच को बदलने के लिए कामयाबी की जरूरत है. कामयाबी ऐसी हो कि जिससे व्यवस्था में बदलाव लाया जा सके, इसलिए स्नातक के बाद यूपीएससी की परीक्षा पास कर आइएएस बन समाज के प्रगति में सक्षम लोगों के साथ कदमताल करने की इच्छा है.
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