17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

श्रद्धा, भक्ति, आस्था व संस्कृति का संगम है छठ महापर्व

सासाराम शहर : छठ यूं तो पूरे देश में मनाया जाता है. लेकिन यह बिहार व यूपी के लिए महापर्व है. नहाय खाय से आरंभ होकर चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का समापन उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के साथ होता है. व्रती चार दिनों तक श्रद्धा-भक्ति के साथ भगवान भास्कर व […]

सासाराम शहर : छठ यूं तो पूरे देश में मनाया जाता है. लेकिन यह बिहार व यूपी के लिए महापर्व है. नहाय खाय से आरंभ होकर चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का समापन उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के साथ होता है. व्रती चार दिनों तक श्रद्धा-भक्ति के साथ भगवान भास्कर व छठी मइया की पूजा में लीन रहते हैं.

इस त्योहार में पवित्रता का बहुत ही महत्व है. प्रसाद के लिए गेहूं धोने से लेकर गेहूं सुखाने व पिसाने के अलावा प्रसाद बनाने तक पवित्रता का विशेष ध्यान रख जाता है. निर्जला रहकर व्रती पूरी तन्मयता के साथ अस्ताचलगामी व उदीयमान सूर्य को अर्घदान करते हैं. इसके आरंभ को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि पहला छठ सूर्यपुत्र कर्ण ने किया था. यह माता सीता तथा द्रौपदी के भी करने की बात कही जाती है.

लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है. इसलिए छठ पर्व के अवसर पर सूर्य की आराधना की जाती है.
इस तरह शुरू हुई यह पूजा: अनुश्रुति है कि नि:संतान राजा प्रियंवद से महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया तथा राजा की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी. इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मरा हुआ पैदा हुआ. राजा प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान चले गए और उसके वियोग में प्राण त्यागने लगे. कहते हैं कि श्मशान में भगवान की मानस पुत्री देवसेना ने प्रकट होकर राजा से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण षष्ठी कही जाती हैं. उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करने को कहा. उन्होंने ऐसा करने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति का वरदान दिया.इसके बाद राजा ने पुत्र की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया. उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. कहते हैं कि राजा ने ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की थी. तभी से छठ पूजा इसी दिन की जाती है.
माता सीता ने भी की थी सूर्य की आराधना: छठ से जुड़ी एक कहानी भगवान राम व माता सीता से भी जुड़ी है. कहा जाता है कि जब भगवान राम व सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया.भगवान राम ने यज्ञ के लिए ऋषि मुद्गल को आमंत्रित किया. मुद्गल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया. इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया. तब माता सीता ने मुद्गल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी.
कर्ण ने सबसे पहले की थी सूर्य की पूजा
छठ से जुड़ी एक कहानी इसका आरंभ महाभारत कालीन बताती है. कहते हैं कि सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा कर छठ पर्व का आरंभ किया था. भगवान सूर्य के भक्त कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की परंपरा प्रचलित है.
द्रौपदी को मिला मनोवांछित फल
एक और कहानी बताती है कि जब पांडव अपना राजपाठ जुए में हार गए तब द्रौपदी ने राजपाट वापस पाने की मनोकामना के साथ छठ व्रत किया था. इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट वापस मिला था.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें