बिक्रमगंज : शराब पीना व पीलाना दोनों अपराध है. नीतीश सरकार के इस फैसले को मानने में इनसान के साथ देवताओं की भी रजामंदी दिख रही है. शायद यही कारण है कि सालो भर शराब के नशे में चूर रहने वाले ब्रह्मबाबा सरीखे देवता भी अब शराब पीना छोड़ चुके हैं और देसी-बिदेशी शराब की बोतलों की जगह अब सुगंधित गुलाब जल पी रहे है.
भले ही देसी-बिदेशी शराब की बोतले नहीं मिलती हो, पर ब्रह्म बाबा के अनुयायी उनके भक्त गुलाब जल के प्रसाद को दो बूंद पी कर भूतों को सबक सिखाते हुए उसी स्थल पर बांध देते हैं. यह कारनामा भूतों के प्रसिद्ध मेला सांझौली के घिन्हुब्रह्म स्थान के पास हो रहा है. नीतीश सरकार का पूर्ण शराबबंदी पर मेला परिसर काफी शांत है.
कोई ओझा बिना शराब पीये ही पचरा गाता है और अपने इष्ट देव का आह्वान करता है. जब ओझा के इष्ट देव उनके शारीर में प्रवेश करते हैं, तो वह तपावन मांगते हैं, यह तपावन वर्षों पहले तक बोतल में होता था. समय बीतने पर यही तपावन पाउच में आने लगा और फिर बोतल में आया.
पहली अप्रैल वर्ष 2016 से लागू पूर्ण शराब बंदी की घोषणा होते ही पहले तो लोगों को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि आखिर कैसे इतना बड़ा फैसला लागू होगा. फैसला लागू हुआ और शराब इस कदर हमारे जेहन से गायब होगी इसकी कल्पना शायद ही किसी ने सोची होगी.
खैर सरकार का फैसला है लोगों को मानना ही पड़ा. अब जब भूतों के मेले में शराब की बात ओझा-गुणी लोग करते हैं तो पास बैठे बाबा के अनुयायी कहते हैं कि सरकार ने शराब बंद कर दिया है बाबा, तो ओझा जिनके ऊपर ब्रह्म बाबा का साया होता है कहते हैं कि कोई बात नहीं गुलाब जल पीलाओ. अब भागते हुए लोग गुलाब जल लाते हैं और बाबा पी कर भूतों को सही दिशा दिखाते हैं.
संझौली थाने के खैरा, रवनी, पतरावल, इसरपुरा, चांदी गावों के बीच एक टीलेनुमा स्थान पर स्थित घिंहुब्रम्ह बाबा का एक प्राचीन मंदिर है, जिसे भूतों का देवता कहा जाता है. वहां हर साल चैती व दशहरी नवरात्र में नव दिनों का एक ऐसा मेला लगता है. इसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड व बंगाल से भूतों से परेशान लोग अपने दुखों को शांत कराने यहां आते हैं.
अपनी ख्याति के लिए प्रसिद्ध घिन्हुब्रह्म बाबा के मेले की सरजमी को छूते ही इंसान के ऊपर बैठी प्रेत आत्माए चिल्लाने लगती है और यहां से भागना चाहती है.
पर, यहां आये प्रेत बाधा से ग्रसित लोग के ऊपर की बुरी आत्मा यही पर हो कर रह जाती है. पतरावल निवासी मनोज सिंह कहते हैं कि यहां आते तो हैं पागलों की तरह मगर लौटते वक्त सामान्य इनसान की तरह.