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मूर्ति चोरी की घटनाओं से पुलिस ने नहीं लिया सबक

सबसे अधिक 2008 में हुई मूर्ति चोरी की घटना 2009 में 11 चोर को किया गया था गिरफ्तार पूर्णिया : मंदिरों में मूर्ति की सुरक्षा के प्रति न तो मंदिर की प्रबंध कमेटी गंभीर है और न ही पुलिस के स्तर पर इस दिशा में कभी भी मुकम्मल कोशिश की गयी है. पुलिस तो इस […]

सबसे अधिक 2008 में हुई मूर्ति चोरी की घटना

2009 में 11 चोर को किया गया था गिरफ्तार
पूर्णिया : मंदिरों में मूर्ति की सुरक्षा के प्रति न तो मंदिर की प्रबंध कमेटी गंभीर है और न ही पुलिस के स्तर पर इस दिशा में कभी भी मुकम्मल कोशिश की गयी है. पुलिस तो इस हद तक बेपरवाह है कि चोरी की घटना के बाद चोरों की धर-पकड़ की जरूरत भी महसूस नहीं करती है. लिहाजा मूर्ति चोरी की घटनाएं भी जारी है. आंकड़ों पर गौर करें तो 2008 में मूर्ति चोरी की सबसे अधिक घटनाएं हुई थी.
2009 में जिला मुख्यालय के फोर्ड कंपनी चौक पर 11 मूर्ति चोरों की गिरफ्तारी हुई और पूर्णिया से कोलकाता ले जा रही मूर्तियां भी जब्त की गयी थी, लेकिन इसके बाद से आज तक किसी भी मूर्ति चोरी के मामले में पुलिस को कोई सफलता हासिल नहीं हुई है.
चोरी से पहले होती है रेकी
जानकारों की मानें तो मूर्ति चोरी से पहले उसकी रेकी होती है. रेकी के क्रम में मोबाइल के जरिये तसवीर ली जाती है. इसके बाद आका तय करते हैं कि मूर्ति चोरी लायक है अथवा नहीं. कई बार स्थानीय स्तर पर चोर मूर्ति की चोरी से पहले जांच कर निश्चित हो जाते हैं. जांच के चार तरीके हैं. इनमें तीन तरीका स्थानीय है. पहले तरीका काे राइस पुलिंग सिस्टम (आरपी) कहते हैं. जो मूर्तियां बेशकीमती होती है, उनमें चावल को आकर्षित करने की क्षमता होती है.
ऐसी मूर्तियों के सामने जब चावल ले जाया जाता है तो वह आकर्षित होकर मूर्ति से चिपक जाती है. मूर्ति जितनी दूर से जितनी जल्दी चावल को आकर्षित करता है, उसकी कीमत उतनी अधिक होती है. दूसरा तरीका यह है कि कीमती मूर्तियों पर पानी डाला जाये तो पानी सतह से नहीं गिर कर मूर्ति के किनारे से गिरती है. तीसरा तरीका यह है कि अगर कीमती मूर्ति के पास जलता हुआ टॉर्च ले जाया जाये तो टॉर्च का बल्ब फ्यूज हो जाता है.
लैब में लगती है अंतिम मुहर
मूर्ति बेशकीमती है और इसमें इट्रियम है कि नहीं, इसका अंतिम निर्णय प्रयोगशाला में होता है. मूर्ति की कीमत और क्वालिटी जांचने के लैब कोलकाता और हैदराबाद में अवस्थित है, जो सरकारी प्रयोगशाला है. मूर्ति तस्कर जांच के लिए सीधे प्रयोगशाला में नहीं पहुंचते हैं, बल्कि पुरातात्विक कारोबार से जुड़े लाइसेंसधारियों के माध्यम से मूर्ति के सैंपल को प्रयोगशाला तक भेजा जाता है.
लैब रिपोर्ट के बाद ही मूर्ति की कीमत अंतिम रूप से तय होती है. सुपौल जिला के वीरपुर में 08 जून 2013 को पांच लैब की जांच रिपोर्ट भी बरामद हुई थी. स्पष्ट है कि मूर्ति तस्करी से जुड़े मामलों का हाइ प्रोफाइल व अंतराष्ट्रीय कनेक्शन है.
अंतरिक्ष कार्यक्रम में होता है उपयोग
बेशकीमती मूर्तियों में इट्रियम नामक मेटेरियल मौजूद होता है. इट्रियम का प्रयोग अंतरिक्ष और परमाणु कार्यक्रम में होता है. इट्रियम होने पर मूर्ति की मुंहमांगी कीमत दी जाती है. मूर्ति को तोड़ कर उसमें मौजूद इट्रियम को निकाला जाता है. चूंकि विदेशों में ऐसी मूर्तियों की अधिक मांग है. इसलिए चोरी की गयी मूर्तियों का नेपाल या कोलकाता के रास्ते अंतिम पड़ाव विदेश ही होता है.
हाल के वर्षों में मूर्ति चोरी की घटनाएं
2007: पूर्णिया सिटी स्थित पूरणदेवी मंदिर से अष्टधातु का लगौटा चोरी
2008: जलालगढ़ के जीवछपुर ठाकुरबाड़ी से दो मूर्तियां चोरी, बीकोठी स्थित मंदिर से तीन मूर्तियां चोरी, रूपौली स्थित महबल्ला से रामजानकी मूर्ति चोरी, बनमनखी लादूगढ़ से रामजानकी मूर्ति चोरी
2009: भवानीपुर, ठाकुरबाड़ी एवं भवानीपुर मंदिर से चार मूर्तियों की चोरी
2011: मधुबनी टीओपी के अमला टोला के ठाकुरबाड़ी से अष्टधातु की मूर्ति चोरी
2012: बनमनखी थाना के सरसी से 13 अष्टधातु की मूर्तियां चोरी
2013: बीकोठी के रामपुर तिलक ठाकुरबाड़ी से अष्टधातु मूर्ति चोरी
2015: पूर्णिया सिटी के जैन मंदिर से दो अष्टधातु मूर्ति चोरी
2017: टीकापट्टी थाना अंतर्गत टीकापट्टी रामजानकी ठाकुर से अष्टधातु की चार मूर्तियां चोरी

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