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संक्रमित होने का रहता है खतरा

सदर अस्पताल . एसएनसीयू में 18 बेड पर भरती होत हैं 30 नवजात बच्चे सदर अस्पताल का एसएनसीयू नवजात बच्चों की भीड़ के आगे अब दबने लगा है. यहां औसतन 30 नवजात बच्चे भरती होते हैं. यही कारण है कि यहां के हर एक बेड पर दो से अधिक बच्चों को रखा जाता है, जिससे […]

सदर अस्पताल . एसएनसीयू में 18 बेड पर भरती होत हैं 30 नवजात बच्चे

सदर अस्पताल का एसएनसीयू नवजात बच्चों की भीड़ के आगे अब दबने लगा है. यहां औसतन 30 नवजात बच्चे भरती होते हैं. यही कारण है कि यहां के हर एक बेड पर दो से अधिक बच्चों को रखा जाता है, जिससे उनमें संक्रमित होने का खतरा बना रहता है.
पूर्णिया : सदर अस्पताल के एसएनसीयू के एक बेड पर दो से अधिक बच्चे रखने के कारण यहां के नवजात बच्चों में संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. दूसरी ओर अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ व वार्डेन का अभाव भी दाद में खाज साबित हो रहा है. विभागीय आश्वासनों के बावजूद अब तक यहां डॉक्टरों की कमी को पूरा नहीं किया गया है, जिससे यहां नवजात बच्चों का भगवान भरोसे ही इलाज हो रहा है.
बेड पड़ने लगे कम : सदर अस्पताल के स्पेशल न्यू बोर्न चाइल्ड यूनिट यानि एसएनसीयू में कुल 18 बेड हैं.
इस वार्ड के शुरुआती दौर से ही एक बेड पर दो बच्चों को रखा जाता है. अमूमन रोजाना इस वार्ड में 30 बच्चे रखे जाते हैं. आलम यह है कि अब तो बच्चों की पहचान के लिए उसके पांव में मां के नाम का टैग लगा दिया जाता था. यह व्यवस्था बच्चे की अदला बदली के बाद हुए हंगामे के बाद से किया गया है. निरंतर एसएनसीयू में नवजात बच्चों की संख्या में वृद्धि हो रही है. इस वृद्धि के लिहाज से तमाम व्यवस्थाएं नाकाफी साबित हो रही हैं. अब यहां एसएनसीयू को विस्तारित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है.
बच्चे हो सकते हैं संक्रमित : समय से पहले पैदा होने वाले शिशु, सामान्य से कम वजन के शिशु, पीलिया से पीड़ित शिशु, ह्रदय रोग से पीड़ित शिशु, जन्म के समय नहीं रोने वाले शिशु, इंफेक्शन से पीड़ितत शिशु, जन्मजात विकृतियों से पीड़ित शिशुओं को यहां रखा जाता है. यहां के एसएनसीयू में बेड की कमी के कारण संक्रमित शिशुओं को भी अन्य रोग से ग्रसित बच्चों के साथ ही रखा जाता है. इससे साथ वाले नवजातों को भी संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में वार्ड का विस्तार ही इसका स्थायी समाधान माना जा रहा है, लेकिन अस्पताल प्रशासन इस यूनिट के विस्तार के प्रति लाचारी प्रकट कर रहा है.
बेड पर अक्सर लग जातीं हैं चींटियां
सदर अस्पताल में महज एक ही बाल रोग विशेषज्ञ हैं, जिनके जिम्मे आउट डोर, इनडोर व एसएनसीयू की बागडोर है. यहां स्थायी डॉक्टर नहीं होने के कारण हमेशा भागमभाग की स्थिति बनी रहती है. दूसरी ओर यहां रात के समय वार्डन नहीं होने से नवजात बच्चों की बेहतर देखभाल नहीं हो पाती है. कई बार ग्लूकोज आदि के प्रभाव से नवजात बच्चों के बेड पर चींटियां चली आती हैं, जिसे वहां से हटाने वाला भी कोई नहीं होता है. इससे नवजात चींटी के काटने से परेशान रहते हैं. निश्चय यात्रा के दौरान पूर्णिया पहुंचे स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने यहां के लिए बाल रोग विशेषज्ञ देने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन अब तक डॉक्टर की नियुक्ति नहीं की गयी. इससे यहां के एसएनसीयू की व्यवस्था में व्यवधान पड़ रहा है.

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