चिकित्सकों की कमी का सबसे अधिक खामियाजा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ता है. चिकित्सक के मामले में सदर अस्पताल की स्थिति तो थोड़ी बेहतर भी है, लेकिन पीएचसी और एपीएचसी का हाल बेहाल है. पीएचसी के अलावा एपीएचसी और उप स्वास्थ्य केंद्र पर तो आयुष डाॅक्टरों के भरोसे ही मरीजों का इलाज होता है
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37 लाख लोगों पर 104 डॉक्टर परेशानी. जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था बीमार, भगवान भरोसे हैं मरीज
चिकित्सकों की कमी का सबसे अधिक खामियाजा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ता है. चिकित्सक के मामले में सदर अस्पताल की स्थिति तो थोड़ी बेहतर भी है, लेकिन पीएचसी और एपीएचसी का हाल बेहाल है. पीएचसी के अलावा एपीएचसी और उप स्वास्थ्य केंद्र पर तो आयुष डाॅक्टरों के भरोसे ही मरीजों का इलाज होता […]
पूर्णिया : जिले के स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों का टोटा है, लिहाजा स्वास्थ्य सुविधा का हाल बेहाल है. कम से कम विभागीय आंकड़े इस बात की ताकीद कर रहे हैं कि स्वास्थ्य विभाग डॉक्टरों के मामले में दिवालिया हो चुकी है. चौंकाने वाली बात यह है कि जिले में 36 हजार की आबादी पर महज एक डॉक्टर उपलब्ध हैं. जिले की कुल आबादी 37.53 लाख है. वहीं आबादी की तुलना में कुल 104 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं. इनमें से सिविल सर्जन सहित 32 डॉक्टरों की तैनाती सदर अस्पताल में है. इस प्रकार जिले की 37 लाख आबादी डॉक्टर से अधिक भगवान के रहमोकरम पर जिंदा है.
एपीएचसी का हाल है बेहाल
चिकित्सकों की कमी का सबसे अधिक खामियाजा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ता है. चिकित्सक के मामले में सदर अस्पताल की स्थिति तो थोड़ी बेहतर भी है, लेकिन पीएचसी और एपीएचसी का हाल बेहाल है. पीएचसी के अलावा एपीएचसी और उप स्वास्थ्य केंद्र पर तो आयुष चिकित्सकों के भरोसे ही मरीजों का इलाज होता है. जिले के तमाम एपीएचसी में सृजित पद 48की तुलना में मात्र 15 डॉक्टर ही कार्यरत है. स्याह सच यह है कि चिकित्सकों के अभाव में सभी पीएचसी रेफर सेंटर बन कर रह गया है. गंभीर मरीजों को तत्काल ही सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है, क्योंकि पीएचसी में डॉक्टरों का टोटा है.
36 हजार लोगों पर एक डॉक्टर
आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि एक डॉक्टर के कंधे पर लगभग 36 हजार से अधिक लोगों को स्वस्थ रखने की जिम्मेवारी है. ऐसे में सीमित डॉक्टरों के बूते इतनी बड़ी आबादी को स्वास्थ्य लाभ की गारंटी दे पाना कतई संभव नहीं है. इसका खामियाजा भी गाहे-बगाहे चिकित्सकों को भुगतना पड़ता है. बावजूद यदि स्वास्थ्य विभाग सबको स्वास्थ्य लाभ देने का दंभ भर रहा है तो खुद को झूठी तसल्ली देने के समान है. चिकित्सकों की कमी की वजह स्वास्थ्य विभाग की नीतियां मानी जाती है. मेडिकल की शिक्षा लेने के बाद तैयार चिकित्सक सरकारी सेवा की बजाय स्वयं की प्रैक्टिस को अधिक तरजीह देते हैं. कई उदाहरण हैं कि विभाग द्वारा साक्षात्कार आयोजित की जाती है. लेकिन बहाल होने में चिकित्सक दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं.
पहचान बनाने का जरिया है सरकारी सेवा : डॉक्टरों का मानना है कि डॉक्टरी शिक्षा में लागत एवं समय के अनुरूप मानदेय की व्यवस्था नहीं है. जो सरकारी सेवा को नीरस बनाती है. इसलिए निजी प्रैक्टिस की ओर चिकित्सक आकर्षित होते हैं. वहीं कई चिकित्सक शुरुआती दौर में सरकारी सेवा में आ तो जाते हैं और जब ऐसे डॉक्टरों की गाड़ी चल निकलती है तो अपना निजी नर्सिंग होम एवं क्लिनिक का संचालन करने लगते हैं. इसके कई उदाहरण भी हैं. वहीं कई ऐसे चिकित्सक हैं, जो सरकारी सेवा का उपयोग अपनी पहचान स्थापित करने में करते हैं.
सदर अस्पताल में भी है डॉक्टरों का टोटा
सदर अस्पताल में सृजित पद 60 की तुलना में महज 32 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. जिसमें एक सिविल सर्जन,एक जिला यक्ष्मा पदाधिकारी शामिल है.सृजित पद की तुलना में इस महत्वपूर्ण स्थान पर महज 50 फीसदी डॉक्टरों का पदस्थापित रहना पूरी व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है. गौरतलब है कि सदर अस्पताल में पूर्वोत्तर बिहार के कोसी,सीमांचल,पश्चिम बंगाल व बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाके से लोग इलाज हेतु पहुंचते हैं. डॉक्टरों की कमी के कारण बीमार पड़े अस्पताल पहुंच कर लोग निराश हो कर वापस लौट जाते हैं.सदर अस्पताल में फिलहाल हर विभाग में डॉक्टरों का अभाव देखने को मिल रहा है. जाहिर है कि संसाधन के स्तर पर ही सदर अस्पताल फिसड्डी साबित हो रहा है.
पीएचसी में डॉक्टर
प्रखंड आबादी डॉक्टर
श्रीनगर 117000 03
डगरुआ 227000 03
बी कोठी 240000 03
के नगर 252000 04
बायसी 243000 04
भवानीपुर 182000 03
जलालगढ़ 124000 03
कसबा 218000 03
पूर्णिया पूर्व 256000 04
रुपौली 270000 07
बैसा 214000 04
अमौर 318000 01
बनमनखी 413000 03
धमदाहा 335000 08
कुल 3753000 53
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