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जमींदोज हुए किसानों के अरमान

मुसीबत. प्राकृतिक आपदाओं के कहर से अभिशाप बनी किसानी लगातार तीन वर्षों से प्राकृतिक आपदा का कहर इस कदर जिले के किसानों पर बरपा है कि किसानी किसानों के लिए अभिशाप बन गयी है. कर्ज लेकर खेती करने के बाद फसल बरबाद हो चुकी है और इस आर्थिक मार की वजह से किसान परेशान हैं. […]

मुसीबत. प्राकृतिक आपदाओं के कहर से अभिशाप बनी किसानी

लगातार तीन वर्षों से प्राकृतिक आपदा का कहर इस कदर जिले के किसानों पर बरपा है कि किसानी किसानों के लिए अभिशाप बन गयी है. कर्ज लेकर खेती करने के बाद फसल बरबाद हो चुकी है और इस आर्थिक मार की वजह से किसान परेशान हैं. स्थिति यह है कि कभी फैलिन तो कभी बारिश, तूफान और भूकंप की त्रासदी को झेल चुके किसान इस बार बाढ़ की तबाही से अपनी जमा पूंजी गंवा बैठे हैं.
पूर्णिया : प्राकृतिक आपदा की मार से जिले के किसानों की कमर टूट गयी है. पिछले लगातार तीन वर्षों से प्राकृतिक आपदा का कहर इस कदर जिले के किसानों पर बरपा है कि किसानी किसानों के लिए अभिशाप बन गयी है. कर्ज लेकर खेती करने के बाद फसल बरबाद हो चुकी है और इस आर्थिक मार की वजह से किसान परेशान हैं. स्थिति यह है कि कभी फैलिन तो कभी बारिश, तूफान और भूकंप की त्रासदी को झेल चुके किसान इस बार बाढ़ की तबाही से अपनी जमा पूंजी गंवा बैठे हैं. धान और पाट की खेती को व्यापक तौर पर नुकसान पहुंचा है.
लिहाजा बाढ़ के साथ किसानों की उम्मीद और अरमान भी अब जमींदोज हो चुके हैं.
80 प्रतिशत फसल डूबने के हैं अनुमान : लगातार दो वर्षों से त्रासदी झेल रहे किसानों के लिए वर्ष 2016 भी घाव पर नमक छिड़कने वाला साबित हुआ है. जिले के सात प्रखंडों में बाढ़ की तबाही से फसलें व्यापक पैमाने पर बरबाद हो चुकी है.
बायसी में धान की रोपनी 5293 हेक्टेयर, बैसा में 6050 हेक्टेयर, अमौर में 7735 हेक्टेयर, डगरूआ में 5950 हेक्टेयर, रूपौली में 6100 हेक्टेयर, जलालगढ़ में 3315 हेक्टेयर में धान की खेती हुई थी. हालात यह है कि जिले के 14 प्रखंडों में कुल आच्छादन का 80 प्रतिशत लगभग फसल बरबाद हो चुका है. विडंबना तो यह है कि न तो बिचरा ही खेतों में बचा है और न ही अब खेती के लिए समय ही शेष है. सब्जी की खेती को भी व्यापक तौर पर नुकसान पहुंचा है. ऐसे में किसान निराश हैं और वो खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
वर्ष 2013-14 में आया था फैलिन
वर्ष 2013-14 में जब खेतों में धान, मक्का, दलहन एवं तेलहन की फसल अपने अंतिम पड़ाव पर थी तो फैलिन नामक चक्रवाती तूफान की तबाही ने उनके सारे सपने बिखेर दिये थे. जिले के 14 प्रखंडों में धान की खेती 98546 हेक्टेयर में हुई थी. मक्का 14500 हेक्टेयर, दलहन 790 हेक्टेयर तथा तेलहन की खेती 80 हेक्टेयर में हुई थी. चक्रवाती तूफान का कहर तब इस कदर बरपा कि जिले में लगे फसलों का तकरीबन 80 फीसदी हिस्सा बरबाद हो गया और जो खेतों में बचा, वह किसी काम का नहीं रहा था. यह प्राकृतिक आपदा की वजह से अब तक का सबसे बड़ा नुकसान था.
वर्ष 14-15 ने भी मिली थी निराशा
वर्ष 2013-14 में प्राकृतिक आपदा का दंश झेल चुके किसानों को वर्ष 2014-15 में भी निराशा ही मिली. वर्ष 2014-15 में भी बाढ़ से बायसी, रूपौली, अमौर और बैसा में फसल को व्यापक नुकसान पहुंचा. वहीं मक्का और गेहूं की फसलों में दाना नहीं आने की शिकायत के बाद किसानों पर दोहरी मार पड़ी. भूकंप और चक्रवाती तूफान से जिले के कई प्रखंडों में फसलों को नुकसान पहुंचा था. हालांकि इस बार क्षति आंशिक पूर्व की तुलना में आंशिक था, लेकिन लगातार नुकसान की वजह से किसानों की कमर ही टूट गयी.
बदरंग हुई किसानों की जिंदगी
बीते तीन वर्षों में किसानों की स्थिति बद से बदतर होती चली गयी है. लगातार प्राकृतिक आपदा की मार से जिले के किसानों की जिंदगी अब बदरंग हो गयी है. किसान केसीसी लोन के साथ महाजनी कर्ज तले लगातार दबते जा रहे हैं. हर वर्ष किसी न किसी रूप में प्राकृतिक की मार झेल रहे किसी की स्थिति अब यह है कि अब किसान किसानी से मुंह फेरने को विवश हैं. एक तरफ टूटे हुए आशियाना को दोबारा खड़ा करने की समस्या है तो दूसरी तरफ खेत से फसलें गायब है. लिहाजा आने वाले दिनों में दो वक्त की रोटी के लिए पलायन बड़े पैमाने पर होने की संभावना है.

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