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चुनावी मौसम में आयी वोट ठेकेदारों की बाढ़

चुनावी मौसम में आयी वोट ठेकेदारों की बाढ़ फोटो: 31 पूर्णिया 2 -वोट के लिए प्रत्याशी ले रहे हैं ठेकेदारों का सहारा प्रतिनिधि, पूर्णिया चुनाव का मौसम है और मतदान में अभी चार दिन शेष रह गये हैं. पांच नवंबर को जिले के सात विधानसभा सीटों पर विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण में मतदान होगा. […]

चुनावी मौसम में आयी वोट ठेकेदारों की बाढ़ फोटो: 31 पूर्णिया 2 -वोट के लिए प्रत्याशी ले रहे हैं ठेकेदारों का सहारा प्रतिनिधि, पूर्णिया चुनाव का मौसम है और मतदान में अभी चार दिन शेष रह गये हैं. पांच नवंबर को जिले के सात विधानसभा सीटों पर विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण में मतदान होगा. चुनाव प्रचार 03 नवंबर को थम जायेगा.लिहाजा प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार चरम पर है. चुनाव प्रचार हाइटेक हो चुका है, लेकिन पारंपरिक तकनीक भी प्रत्याशी आजमा रहे हैं. यही कारण है कि वोट बैंक की ओर भी प्रत्याशियों की निगाह है. इसके लिए कई प्रकार के ठेकेदारों से संपर्क किया जा रहा है. प्रत्याशियों के भले ही पसीने छूट रहे हो, लेकिन वोट के इन ठेकेदारों की इन दिनों चांदी कट रही है. ऐसा हो भी क्यों ना, आखिर मौका पांच साल में एक बार ही तो आता है और हाथ आये मौके को कौन चूकना चाहता है. धर्म के ठेकेदारों की बढ़ी पूछ वोट बैंक के लिए प्रत्याशियों की पहली पसंद धर्म के ठेकेदार बन रहे हैं.चाहे दलीय उम्मीदवार हो, या स्वतंत्र कोई भी प्रत्याशी इससे अछूता नहीं है.सभी प्रत्याशी इन ठेकेदारों को खुश करने में जुटे हैं, ताकि उस धर्म का अधिक से अधिक वोट प्राप्त किया जा सके.जाहिर है, प्रत्याशियों का दांव सटीक बैठा तो उनकी जीत के मार्ग प्रशस्त हो जायेंगे.धर्म के इन तथाकथित ठेकेदारों की अपनी बिरादरी में खासी पैठ बतायी जाती है.हिंदू, मुसलिम और इसाई धर्म के लोग मूल रूप से यहां वोटर हैं और सभी धर्मों के वोट के अपने-अपने ठेकेदार भी हैं. हालांकि प्रत्येक धर्म के भी कई ठेकेदार हैं और इनमें से कुछ का तो एक-दूसरे से 36 का आंकड़ा भी है.लिहाजा इस बात की भी गोपनीयता रखी जाती है कि कौन किससे डील किया है. जातीय ठेकेदारों की भी है डिमांड धर्म के ठेकेदारों के बाद प्रत्याशी की अगली कड़ी जाति के ठेकेदारों की होती है.हिंदू हो या मुसलमान सभी धर्म में जाति के भी अलग-अलग ठेकेदार हैं.प्रत्याशियों के लिए इन ठेकेदारों के दरवाजे हर वक्त खुले हुए हैं.कुछ ठेकेदारों से प्रत्याशी संपर्क साध रहे हैं और कुछ प्रत्याशियों से इन ठेकेदारों द्वारा संपर्क साधा जा रहा है.ठेकेदारों के साथ डील के दौरान इस बात का ख्याल रखा जाता है कि जातिगत वोट पर उसकी कितनी पकड़ है और उस जाति के कितने लोग क्षेत्र में वोटर हैं.डील की रकम भी इसी के अनुरूप तय होती है. सच तो यह है कि जातीय ठेकेदारों की पूछ भी दलों की वजह से ही बढ़ी है. जातिगत समीकरण को देख नेताओं के चुनावी सभा आयोजित हो रहे हैं और जाति विशेष के लोगों को प्रचार के लिए उनके स्वजातीय इलाके में भेजा जाता है. जनप्रतिनिधि भी ठेकेदारी में जुटेचुनाव का मौसम है और हर कोई अपनी जेब गरम करने में जुटा है.ऐसे में जनप्रतिनिधि इस मैदान में भला पीछे क्यों रहें.जनप्रतिनिधियों ने भी चुनाव में वोट की ठेकेदारी आरंभ कर दी है.इस श्रेणी के वोट के ठेकेदार प्रतिनिधित्व के प्राप्त वोटों की संख्या गिनाना नहीं भूलते.दरअसल इनके डील का मूल आधार भी यही होता है.इस श्रेणी के ठेकेदार अपने संबंधित क्षेत्र में प्रत्याशी के समर्थन में अधिक से अधिक वोट जुटाने का दावा करते हैं और बदले में प्रत्याशियों की जेब ढ़ीली कराने में कोई कसर नहीं छोड़ते.लेकिन प्रत्याशियों के सामने मजबूरी यह है कि ऐसे ठेकेदारों से भी किनारा नहीं किया जा सकता.क्या पता कौन सा पत्ता तुरूप का इक्का साबित हो जाये. जाहिर है स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भी चुनावी मौसम में बल्ले-बल्ले है. पेशेवर ठेकेदारों की चहल कदमी तेजचुनाव के वक्त वोट के ठेकेदारों की जैसे बाढ़ सी आ गयी है.विभिन्न जाति व समुदाय के अलावा वोट के कुछ पेशेवर ठेकेदार भी कमाई की जुग्गत में हैं.लिहाजा इन ठेकेदारों ने चहल कदमी तेज कर दी है.प्रत्याशियों ने अब तक इस श्रेणी के अधिकांश ठेकेदारों से संपर्क साधा है, जिनसे किसी का संपर्क नहीं हुआ वे खुद प्रत्याशियों के दरवाजे पहुंच रहे हैं.ऐसे ठेकेदार लगभग सभी प्रत्याशियों से मिल रहे हैं और सभी को वोट दिलाने का आश्वासन दे रहे हैं.दरअसल हर चुनाव में इनका मूल पेशा यही होता है और चुनाव के दौरान इनकी अच्छी कमाई भी हो जाती है.साथ ही जीत मिलने पर ऐसे लोग प्रतिनिधियों के सबसे करीबी हो जाते हैं और इनकी रसूख भी बढ़ जाती है.

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