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प्रत्याशी पस्त, कार्यकर्ताओं की रोज मन रही दिवाली

प्रत्याशी पस्त, कार्यकर्ताओं की रोज मन रही दिवाली प्रतिनिधि, पूर्णिया जिले में विधानसभा चुनाव की तैयारी परवान पर है. प्रत्याशी जनसंपर्क एवं खर्च के बोझ से पस्त नजर आने लगे हैं, वहीं कार्यकर्ता नकद के साथ-साथ रोजाना चिकन, मटन और मछली का स्वाद लेकर आनंदित हो रहे हैं. चुनाव कार्यालयों में कार्यकर्ताओं की भीड़ देख […]

प्रत्याशी पस्त, कार्यकर्ताओं की रोज मन रही दिवाली प्रतिनिधि, पूर्णिया जिले में विधानसभा चुनाव की तैयारी परवान पर है. प्रत्याशी जनसंपर्क एवं खर्च के बोझ से पस्त नजर आने लगे हैं, वहीं कार्यकर्ता नकद के साथ-साथ रोजाना चिकन, मटन और मछली का स्वाद लेकर आनंदित हो रहे हैं. चुनाव कार्यालयों में कार्यकर्ताओं की भीड़ देख सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि कार्यकर्ताओं की रोज दिवाली मन रही है. हालांकि प्रत्याशी दर्द के बावजूद उफ नहीं कर रहे हैं, क्योकि उन्हें भी पता है कि कुछ दिनों की ही बात है, फिर अगले पांच साल तक उनकी दिवाली रहेगी.चुनाव कार्यालय हुआ भोज घर में तब्दीलचुनाव कार्यालयों में रोजाना मुर्गे-बकरे की पार्टी का दौर शुरू है. चुनाव प्रचार से लौटने के बाद कार्यकर्ता दैनिक प्रतिवेदन अर्थात कैसी हवा है, कौन किधर है, किसे तोड़ा और किसे जोड़ा, कितना खर्च हुआ आदि का हिसाब कार्यालय प्रभारी को देते हैं. उसके बाद रात में चिकन -मटन की पार्टी मिलती है. रसास्वादन के बीच कार्यकर्ता अपने-अपने प्रत्याशी के भारी मतों से जीत का दावा भी करने से नहीं चूक रहे हैं. सभी दलों के कार्यकर्ता अपने अपने गणित से मनगढ़ंत वोट के आंकड़े भी पेश कर रहे हैं. हालांकि प्रत्याशी संशय में हैैं कि कार्यकर्ताओं के दावे में कितना सच है और कितना झूठ है. लेकिन मजबूरी यह है कि वे सच बोल नहीं सकते हैं क्योंकि अंतत: कार्यकर्ता ही चुनाव की नैया को डुबोते हैं या फिर उबारते हैं.जितनी अधिक पारिश्रमिक, उतनी अधिक भीड़चुनाव कार्यालयों में कार्यकर्ताओं की भीड़ में रोजाना बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है. इसके पीछे यह कारण माना जा रहा है कि कार्यालयों में सिर्फ रुपयों के लिए भीड़ लग रही है. सभी दलों का अपने-अपने हिसाब से कार्यकर्ताओं को पारिश्रमिक देते हैं. प्रत्याशी अपने कार्यकर्ताओं को प्रतिदिन अधिकतम 400 से न्यूनतम 100 रुपये दे रहे हैं. स्वाभाभिक है कि अधिक मजदूरी देने वाले प्रत्याशी के कार्यालय में अधिक कार्यकर्ता भी जमा होते हैं. कम मजदूरी देने वाले प्रत्याशियों के कार्यालयों में अपेक्षाकृत कम भीड़ देखने को मिल रही है. कई चेहरे वाले कार्यकर्ताचुनावी बयार में कुछ कार्यकर्ताओं ने कई चेहरे बना रखे है. कुल मिला कर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जितना चेहरा, उतनी अधिक कमाई. एक कार्यकर्ता ने बताया कि अभी जहां जैसा मौका मिला, कार्यकर्ता वैसा चोला धारण कर लेते हैं, इसलिए दो शिफ्टों में दो दलों के लिए काम करते हैं. ऐसे में प्रतिदिन सात सौ से आठ सौ की कमाई हो रही है. कुछ कार्यकर्ता तो प्रत्याशियों से रुपये लेने के बाद घरों में आकर सो जाते हैं और शाम को गांवों का नाम बता कर वोट मैनेज करने के बड़े-बड़े बोल से कार्यालय प्रभारी को झूठी तसल्ली दिलाने के प्रयास में लगे रहते हैं.मतदाताओं का हिस्सा भी हो रहा है गुमपारिश्रमिक के अलावे बैठकों के खर्च के नाम पर प्रत्याशी से लिये गये पैसे को भी चालाक कार्यकर्ता हजम कर लेने से गुरेज नहीं करते हैं. मतदाताओं के चाय-नाश्ते की राशि को हजम कर मीठी-मीठी बातों की चासनी पिला कर चलते बनते हैं. ऐसे में मतदाता हमेशा की तरह खुद को ठगा महसूस कर रहे है.अंदर ही अंदर मतदाताओं ने कार्यकर्ताओं की इस वेवफाई का बदला वोट के समय देने की ठान रखी है.वहीं मतदाताओं में यह भी चर्चा गरम है कि नेताजी से प्रतिदिन किसको कितना रुपया मिल रहा है. जाहिर है कि चुनावी अखाड़े में एक दूसरे को टोपी पहनाने का खेल भी जारी है.

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