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आदिवासियों ने मनाया सोहराय महोत्सव,नृत्य-गीत से बांधा समां

महोत्सव में आदिवासी महिलाओं ने पारंपरिक नृत्य पेश कर समां बांध दिया. गौरतलब है कि सोहराय पूस महीना के अंतिम सप्ताह तथा माघ महीने के प्रथम सप्ताह में धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ एक सप्ताह तक मनाया जाता है. पूर्णिया : गुरुवार को राजेंद्र बाल उद्यान में सोहराय महोत्सव का आयोजन किया गया. इसका आयोजन […]

महोत्सव में आदिवासी महिलाओं ने पारंपरिक नृत्य पेश कर समां बांध दिया. गौरतलब है कि सोहराय पूस महीना के अंतिम सप्ताह तथा माघ महीने के प्रथम सप्ताह में धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ एक सप्ताह तक मनाया जाता है.

पूर्णिया : गुरुवार को राजेंद्र बाल उद्यान में सोहराय महोत्सव का आयोजन किया गया. इसका आयोजन अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद द्वारा किया गया. बड़े ही धूम-धाम से महोत्सव का आयोजन हुआ जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग उपस्थित थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता सोहराय समिति के सचिव अनिल कुमार हेंब्रम ने किया और मुख्य अतिथियों एवं सभी श्रद्धालुओं का स्वागत किया. इस मौके पर आदिवासी महिलाओं ने पारंपरिक नृत्य पेश कर समां बांध दिया. गौरतलब है कि सोहराय पूस महीना के अंतिम सप्ताह तथा माघ महीना के प्रथम सप्ताह में धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ एक सप्ताह तक मनाया जाता है.
कुल देवता की होती है पूजा
महोत्सव के दूसरे दिन कुल देवता की पूजा की जाती है. इस पूजा में माल मवेशियों को स्नान कराया जाता है और सिंग में तेल लगाया जाता है. तीसरे दिन मवेशियों को स्नान करा कर तेल-सिंदूर लगाकर गले में फूल-माला पहनाया जाता है.
सड़क के बगल में खुट्टा गाड़ कर उसमे मवेशियों को बांध कर गाजा-बाजा के साथ नचाया जाता है. इस महोत्सव में मुख्य अतिथि भारतीय आदिवासी विकास परिषद के प्रदेश अध्यक्ष जितेंद्र उरॉव, जितेंद्र टुडू, दीपक बाड़ा, विजय उरॉव, राजकुमार मूर्मू, यमुना मूर्मू, रामलाल हांसदा, रामजी टुड्डू, रमेश टुड्डू, गंगा, राकेश टुड्डू संजू तिर्की आदि उपस्थित थे.
पूर्वजों के प्रति ज्ञापित करते हैं कृतज्ञता
सोहराय पर्व के अवसर पर लोग अपनी पूर्वज को याद करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करते हैं. इस पर्व में लोग नाते-रिश्तेदार और पूर्वजों की आत्माओं को आमंत्रित करते है. इस दौरान किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में कुल देवता और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए धूप -दीप जलाया जाता है. सोहराय पर्व के अवसर पर यह माना जाता है की विवाहिता कन्याएं अपने मायके में आयेगी. रिश्तेदार या गांव के लोग अपने साथ तोहफा लाते है.माना जाता है की इस शुभ अवसर पर मनुष्य,देवता,जीवित सभी उपस्थित होकर आनंद लेते है. पहले दिन गोट पूजा की जाती है. गोट पूजा का आशय गोशाला की पूजा से होता है.गोट पूजा में मवेशियों का पदचिह्न मिटाया जाता है. उसके बाद घर ले जाकर मवेशियों की आरती उतारी जाती है.

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