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प्रकृति से गांधीजी की निकटता से सीख लेंगे आज के नेता?
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक दक्षिण अफ्रीका में वकालत करते समय मोहनदास करमचंद गांधी पेट की बीमारी से ग्रस्त हो गये थे. उन्होंने दवाएं खाईं, पर कोई लाभ नहीं हुआ. वेजिटेरियन सोसाइटी के एक मित्र ने उन्हें एक किताब दी. एडोल्फ जस्ट लिखित ‘रिटर्न टू नेचर’ उन्होंने ध्यान से पढ़ी. उस पुस्तक ने गांधी को बड़ी […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
दक्षिण अफ्रीका में वकालत करते समय मोहनदास करमचंद गांधी पेट की बीमारी से ग्रस्त हो गये थे. उन्होंने दवाएं खाईं, पर कोई लाभ नहीं हुआ. वेजिटेरियन सोसाइटी के एक मित्र ने उन्हें एक किताब दी. एडोल्फ जस्ट लिखित ‘रिटर्न टू नेचर’ उन्होंने ध्यान से पढ़ी. उस पुस्तक ने गांधी को बड़ी सीख दी. गांधी प्रकृति के करीब हो गये. उन्होंने अपने आहार में बदलाव किया. उन्होंने महसूस किया कि मिट्टी, पानी, धूप और हवा में बड़ी ताकत है. ये चीजें शरीर को खुद-ब-खुद स्वस्थ होने और रखने में बड़ी मदद करती हैं.
यह भारत जैसे देश के लिए भी अनुकूल है, जहां के अधिकतर लोग गांवों में यानी प्रकृति के पास रहते हैं. खुद महात्मा गांधी अपना इलाज धूप स्नान, पेट और शरीर पर मिट्टी की लेप तथा इसी तरह के अन्य प्राकृतिक उपायों से करते रहे. उसका उन्होंने जीवन भर पालन किया.
उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना भी की. उनके आश्रम के अन्य सहवासी भी प्राकृतिक जीवन जीते थे. नतीजतन आजादी के लड़ाई में लगे अधिकतर गांधीवादी नेता और कार्यकर्ताओं ने लंबा जीवन जिया. देश गांधी के चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष मना रहा है. क्या आज के नेतागण गांधी की तरह ही भरसक प्राकृतिक जीवन जीने का संकल्प लेंगे? कुछ आधुनिक नेतागण तो प्राकृतिक जीवन से काफी दूर हैं.
थोड़े से लोग पालन करते हैं. बढ़ते प्रदूषण और जानलेवा मिलावट के इस दौर में यह और भी जरूरी है कि लोग प्रकृति के करीब जाएं. नेता इस मामले में भी देश को नेतृत्व दे सकते हैं. इस संदर्भ में भी आज के कई बड़े नेताओं के बारे में अच्छी खबरें नहीं आतीं. सुना जाता है कि साठ-सत्तर की उम्र में ही बीमार रहने लगते हैं. उन्हें देश-विदेश के अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ते हैं. इससे खुद उन्हें, उनके परिजन और उनके समर्थकों-प्रशंसकों में निराशा फैलती है. इनमें से तो कुछ नेता समाज के एक बड़े हिस्से में बड़े लोकप्रिय होते हैं. उन्हें कोई अधिकार नहीं है कि वे खान-पान, रहन-सहन में अतिशय कुसंयम अपना कर अपने प्रशंसकों को निराश करें. आज के नेता यदि चाहें तो प्राकृतिक जीवन और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति अपना कर वे इस चंपारण शताब्दी वर्ष में बापू को बेहतर श्रद्धांजलि दे सकते हैं.
क्यों बार-बार टूट जाता है पीपा पुल : दानापुर के पास गंगा नदी पर बना पीपा पुल गत चार महीनों में तीसरी बार विसंधित हो गया यानी टूट गया. नदी में पानी कम होने पर हर साल पीपा पुल बनता है.
डेढ़ करोड़ रुपये की लागत आती है. इतने अधिक खर्च के बावजूद निर्मित पुल को आंधी से बचाने का कोई उपाय क्यों नहीं है, यह बात समझ में नहीं आती. क्या हर साल नये पीपे का निर्माण कराया जाता है? गांधी सेतु के जर्जर हो जाने की स्थिति में दानापुर का यह अस्थायी पुल लाखों लोगों को राहत देता है. इसके बावजूद इसके निर्माण और रख-रखाव में इतनी बड़ी लापरवाही? आश्चर्य होता है. अच्छा तो होता कि दानापुर से दिघवारा के बीच गंगा नदी पर स्थायी पुल के निर्माण पर सरकार विचार करती. पर जब तक ऐसा नहीं होता है, तब तक ऐसा पीपा पुल तो बने जो आंधियों को झेल सके!
कोयला सचिव को तो सजा, पर कोयला मंत्री? दिल्ली की विशेष अदालत ने गत 22 मई को पूर्व केंद्रीय कोयला सचिव तथा दो अन्य कार्यरत आइएएस अफसरों को दो-दो साल की सजा सुनाई है. इस मामले में कुछ अन्य संबंधित लोगों को भी सजा दी गयी है. अदालत ने यह अच्छा किया है. हालांकि सजा कम लगती है. बड़े अफसरों को इस तरह सजा होगी तो शायद देश के संसाधनों की लूट कम होगी. क्योंकि यदि बड़े अफसरगण सरकारी भ्रष्टाचार के धंधे में पूरी हिम्मत से असहयोग करने लगें तो सत्ताधारी नेतागण देश को लूट नहीं सकेंगे.
हालांकि खबर तो यह भी आती रहती है कि पहले से लगभग ईमानदार रहे मंत्रियों को भी कुछ घाघ अफसर ही लूटने का मंत्र सिखा देते हैं. पर इस मामले में एक बड़ा सवाल देश के सामने है.
सिर्फ अफसरों को ही क्यों सजा दी जाये? कोयला मंत्री को क्यों नहीं? सचिव के प्रस्ताव पर कोयला ब्लाॅक के आवंटन का अंतिम आदेश तो कोयला मंत्री का ही था! उन दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही तो कोयला मंत्री भी थे. शायद इस मामले में ऊपरी अदालत में अपील होगी तो यह सवाल उठेगा कि कोयला मंत्री कैसे सजा से बच सकते हैं? यह मामला मध्य प्रदेश में गलत ढंग से कोयला खान आवंटन का था.
वैसे तो देश भर में ऐसे घोटाले हुए थे. सीएजी ने कहा था कि इस तरह के आवंटन से सरकारी खजाने को एक लाख 86 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. हालांकि वास्तविक नुकसान और अधिक था. 24 सितंबर, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने 214 कोल ब्लाॅक के आवंटन को रद्द कर दिया था. अब सवाल है कि 214 कोल ब्लाॅक के आवंटन में घोटाला सिर्फ सचिव स्तर के अफसरों की मिलीभगत से संभव है? जब यह घोटाला सामने आया था तो चर्चा यह थी कि इस घोटाले में परदे के पीछे बड़ी हस्तियां शामिल थीं. पर उम्मीद है कि ऊपरी अदालत उन लोगों को भी सजा देगी जिन सत्ताधारियों के दस्तखत से कोयला घोटाले को अंजाम दिया गया.
त्रिशंकु शत्रुघ्न सिन्हा : अन्य लाखों लोगों के साथ-साथ मैं भी कुछ बातों को लेकर शत्रुघ्न सिन्हा का प्रशंसक रहा हूं. आगे भी रहूंगा. वह एक अच्छे कलाकार हैं. कैरियर के शुरुआती दौर में उन्होंने विलेन के रूप में भी दर्शकों की तालियां बटोरी थीं. यह एक नयी बात थी.
जब पूरे देश में बिहारियों को उपहास की नजर से देखा जाता था, उस समय भी उन्होंने खुद को ‘बिहारी बाबू’ कहलाना पसंद किया. जब फिल्मी दुनिया के लोग आमतौर पर प्रतिपक्षी राजनीति का दामन नहीं थामते थे, शत्रुघ्न सिन्हा ने सत्ता के खिलाफ जेपी का साथ दिया था. पर अनेक शालीन हलकों में शत्रुघ्न सिन्हा की मौजूदा राजनीतिक भूमिका अच्छी नहीं मानी जा रही है. कायदे की राजनीति की मांग तो यही है कि या तो भाजपा बिहारी बाबू को पार्टी से निकाल दे या फिर वह खुद ही पार्टी छोड़ दें. खुद दल छोड़ने में उन्हें दिक्कत हो सकती है. क्योंकि तब उनकी लोकसभा की सदस्यता चली जायेगी. पर कार्रवाई करने में पार्टी को क्या दिक्कत है? यह बात अनेक लोगों की समझ से बाहर है.
और अंत में : बिहार भाजपा के मंत्री ऋतुराज सिन्हा
ने कहा है कि शत्रुघ्न सिन्हा को ख्याल रखना
चाहिए कि वह भाजपा के चुनाव चिह्न पर सांसद बने हैं. ऋतुराज ने ठीक ही कहा है. पर सवाल है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की शत्रुघ्न सिन्हा के बारे में क्या राय है? क्या शाह जी ने बिहारी बाबू को कभी इस बात की याद दिलायी कि वे भाजपा के सांसद हैं? यदि दिलायी भी होगी तो इस बात का पता आम लोगों को नहीं है. दरअसल ‘शत्रु जी’ फिल्म में तो विलेन से हीरो बने थे.
राजनीति में वे विपरीत दिशा में चल रहे हैं. कम से कम भाजपा के लिए तो विलेन ही बन गये हैं. हां, भाजपा विरोधी दलों के लिए शत्रुघ्न सिन्हा जरूर हीरो बने हुए हैं. टेढ़े-मेढ़े और परोक्ष-प्रत्यक्ष बयानों के जरिये अपनी ही पार्टी को सार्वजनिक रूप से जितनी परेशानी में बिहारी बाबू ने डाला, वह भी एक रिकाॅर्ड है. अभी और क्या-क्या करेंगे, वह सब देखना दिलचस्प होगा.
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