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सिर्फ पांच ट्रेनों में लगे एलएचबी कोच
एलएचबी कोच रहने पर दुर्घटना में नुकसान की संभावना होती है कम पटना : ट्रेन का सफर सुरक्षित हो और ट्रेन दुर्घटना में कम-से-कम यात्रियों को नुकसान झेलना पड़े, इसको लेकर दानापुर रेलमंडल क्षेत्र से खुलनेवाली सभी लंबी दूरी की ट्रेनों में लिंक हॉफमैन बुश (एलएचबी) कोच लगाने की योजना बनायी गयी. रेलमंडल से दिल्ली, […]
एलएचबी कोच रहने पर दुर्घटना में नुकसान की संभावना होती है कम
पटना : ट्रेन का सफर सुरक्षित हो और ट्रेन दुर्घटना में कम-से-कम यात्रियों को नुकसान झेलना पड़े, इसको लेकर दानापुर रेलमंडल क्षेत्र से खुलनेवाली सभी लंबी दूरी की ट्रेनों में लिंक हॉफमैन बुश (एलएचबी) कोच लगाने की योजना बनायी गयी. रेलमंडल से दिल्ली, बेंगलुरु, इंदौर, कोटा, श्रीगंगानगर, मुंबई, सूरत, उधना, सिकंदराबाद, पंजाब, एर्णनाकुलम आदि जगहों के लिए खुलनेवाली ट्रेनों में एलएचबी कोच लगाये जाने थे. लेकिन बीते नौ सालों मेें अब तक सिर्फ पांच एक्सप्रेस और सुपरफास्ट ट्रेनों में ही एलएचबी कोच लगाये जा सके हैं. इसमें राजधानी एक्सप्रेस को वर्ष 2007 में ही एलएचबी कर दिया गया, जबकि उसके सात साल बाद 2014 में संपूर्णक्रांति एक्सप्रेस में एलएचबी कोच लगाये गये. इस साल अर्चना एक्सप्रेस, जियारत एक्सप्रेस और राजेंद्र नगर-तिनसुकिया एक्सप्रेस में एलएचबी कोच लगाये गये.
इन ट्रेनों को है इंतजार : मगध, श्रमजीवी, दानापुर-उधना, संघमित्रा, पटना-कोटा, पटना-इंदौर आदि ट्रेन है, वहीं, विक्रमशिला, ब्रह्मपुत्र मेल, फरक्का एक्सप्रेस, पंजाब मेल, लोकमान्य तिलक-कामख्या एक्सप्रेस, लोकमान्य तिलक-गुआहाटी एक्सप्रेस आदि में एलएचबी कोच नहीं लगाये गये हैं.
जोन की सभी लंबी दूरी की ट्रेनों में एलएचबी कोच लगाया जाना है, लेकिन एलएचबी कोच की उपलब्धता के अनुसार कोच बदला जा रहा है. हाल ही में दो ट्रेनों में एलएचबी कोच लगाये गये हैं और धीरे-धीरे सभी लंबी दूरी की ट्रेनों में इसे लगाया जायेगा.
अरविंद कुमार रजक, मुख्य जनसंपर्क पदाधिकारी, पूमरे
एलएचबी कोच को सुरक्षा मानकों के अनुसार आम कोच से बेहतर माना जाता है. यह 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आसानी से ट्रैक पर दौड़ सकती है, जबकि आम कोचों की गति 110 किमी प्रतिघंटे से ज्यादा नहीं हो सकती है. दुर्घटना होने की स्थिति में में इसकी बोगियां पटरी से ज्यादा दूर नहीं जातीं और न ही कोच में लगी स्टील ज्यादा मुड़ती है. इस कारण यात्रियों के हताहत होने की संभावना बहुत कम हो जाती है.
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