पटना : दक्षिण अफ्रीका से अपनी वापसी के दो साल बाद, इंग्लैंड में प्रशिक्षित एक वकील 10 अप्रैल 1917 को तीसरी श्रेणी के डिब्बे से बिहार की जमीन पर पहली बार पैर रखने के लिए उतरे जिसने देश के पूरे इतिहास को बदल दिया. वह वकील 48 वर्षीय मोहनदास करमचंद गांधी थे और चंपारण में उनकी अगुवाई में किसान आंदोलन सहित अगले कुछ सालों के घटनाक्रम ने उन्हें ‘महात्मा’ का असाधारण नाम दिलाया.
सीएम नीतीश ने की थी पहल
इस महीने के शुरू में नीतीश कुमार सरकार ने बिहार में उनकी पहली यात्रा और गांधी द्वारा सत्यग्रह आंदोलन की 100वीं जयंती मनाने की योजना बनायी थी. इसी आंदोलन ने आखिरकार राष्ट्र को आजाद करने की लड़ाई के लिए एक किया था. पर्यटन विभाग सत्याग्रह की शताब्दी के साथ ही गांधी सर्किट को बढ़ावा देने के तरीकों को तलाश रहा है.
आयोजित होगी कार्यशाला
इस दौरान कई गतिविधियां आयोजित करने की योजना बनायी गयी है जिसमें संगोष्ठी से लेकर कार्यशाला और प्रदर्शनी तक हैं जो पटना से लेकर मोतिहारी :पूर्वी चंपारण का जिला मुख्यालय: तक होनी है. गांधीजी नील की खेती करने वाले राज कुमार शुक्ला के बुलावे पर बिहार आये थे. वह किसानों की परेशानी को उठाना चाहते थे जिनको ब्रिटिश नील की खेती करने के लिए मजबूर कर रहे थे.
पटना स्टेशन भी बना था गवाह
गांधीजी 10 अप्रैल को बांकीपुर स्टेशन :पटना रेलवे स्टेशन का पुराना नाम: पहुंचे थे और उनके तीसरी श्रेणी के डिब्बे से उतरने के चित्र को पटना जंक्शन पर लगाया गया है जो गांधीजी की बिहार की पहली यात्रा की याद दिलाती है. जिस दिन शुक्ला गांधीजी को राजेंद्र प्रसाद के आवास पर ले गए थे उस दिन एक दिलचस्प घटना हुई. प्रसाद कांग्रेस नेता और वकील थे जिन्होंने पटना उच्च न्यायालय में वकालत शुरू ही की थी और बाद में वह देश के पहले राष्ट्रपति बने थे.