– कुलभूषण –
पटना : पशुपालकों को दरवाजे पर पहुंच कर पशुओं के इलाज के लिए मंगाये गये 50 मोबाइल वेटनरी क्लिनिक एंबुलेंस साल भर से गोदाम से निकले ही नहीं . पशुपालन विभाग की इस महत्वाकांक्षी योजना को अमली रूप देने के लिए तीन करोड़ रुपये भी खर्च कर दिये. अब तो उसके कल-पुर्जे खराब होने की आशंका है. इसके लिए रोज गाड़ी स्टार्ट करनी पड़ती है.
विभाग ने वाहनों की खरीद में जितनी तत्परता दिखायी, उतनी आगे की प्रक्रियाओं में नहीं दिखायी. कई प्रक्रियाएं, तो पूरी ही नहीं की गयीं. मोबाइल क्लिनिक को फंक्शनल बनाने के लिए उपकरण, जेनसेट, फ्रीज, माइक्रोस्कोप, जांच के लिए रसायनों की खरीद की जानी थी.
नहीं हुई नियुक्ति
हर मोबाइल क्लिनिक के लिए चिकित्सकों की टीम और ड्राइवरों की नियुक्ति की जानी थी. इस तैयारी के बाद विभाग को इसका रूट चार्ट तैयार करना था. किसान मोबाइल क्लिनिक का लाभ उठा सकें, इसके लिए विभाग को टॉल फ्री कॉल नंबर जारी करना था. वाहन खरीदने के बाद इनमें से एक भी कार्य नहीं हुआ. परिणाम सामने है. बिहार पशु चिकित्सा संघ के संरक्षक डॉ वीरेश प्रसाद सिन्हा ने कहा कि यह किसानों के लिए विडंबना ही है.
अन्यथा एक साल से एंबुलेंस गोदाम में पड़ा है और राज्य के पशुपालक मजबूरी में झोला छाप डॉक्टरों से पशुओं का इलाज करा रहे हैं. प्रभारी निदेशक डॉ धर्मेद्र सिंह ने विभाग द्वारा 50 एंबुलेंस की खरीद और कंपनी के गोदाम में ही पड़े रहने की पुष्टि की और निकट भविष्य में इस संबंध में काम होने की बात कही.