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भूसे के भाव बिक रहा धान, किसान परेशान
लागत पर भी आफत. किसान कह रहे-बंद करो पैक्स सरकारी दर : ~1410, बाजार दर : ~1010-1050, लागत : ~1600 पुष्यमित्र पटना : भोजपुर जिले के तरारी बाजार में बातचीत करते-करते किसान अचानक गरम हो उठते हैं. कहने लगते हैं- पैक्स मतलब बिचौलिया. सरकार अगर किसानों का हित चाहती है, तो पैक्स संस्था को बंद […]
लागत पर भी आफत. किसान कह रहे-बंद करो पैक्स
सरकारी दर : ~1410, बाजार दर : ~1010-1050, लागत : ~1600
पुष्यमित्र
पटना : भोजपुर जिले के तरारी बाजार में बातचीत करते-करते किसान अचानक गरम हो उठते हैं. कहने लगते हैं- पैक्स मतलब बिचौलिया. सरकार अगर किसानों का हित चाहती है, तो पैक्स संस्था को बंद करे, नहीं तो किसान मारे जायेंगे. बाजार ओपन करना होगा, फ्री सेल होना चाहिए.
पड़ोस के चंदा गांव के बुजुर्ग किसान बैद्यनाथ सिंह कहते हैं, जब पैक्स द्वारा खरीद नहीं होती थी, तो धान अमूमन 12-13 सौ रुपये क्विंटल बिक ही जाता था. पैक्स की खरीद जब से शुरू हुई है, धान की रेट मार खाने लगी है.
अब तो रेट हजार रुपये तक गिर गयी है. अगर सरकार पैक्स संचालकों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार और अनियमितता को रोक नहीं पा रही है, तो इसे बंद कर दे. पिछले एक साल से धान खरीद की गड़बड़ियों के खिलाफ आंदोलनरत तरारी बाजार के किसानों का गुस्सा जायज है. वहां के किसान नेता शेषनाथ सिंह कहते हैं, इलाके के कमजोर और सीमांत किसानों ने 1010 से 1050 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर अपना सारा धान बेच दिया है. वे पैक्स में होनेवाली सरकारी खरीद का इंतजार नहीं कर पाये. ऐसे ही किसान हैं दुलमचक गांव के रामजी सिंह और मोहन सिंह. उन्होंने हाल ही में अपना धान 1010 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेचा है. कहने लगे, अब लगता नहीं है कि पैक्स खुलेगा. रोज आजकल, आजकल करता है.ऊ भी हमलोग का धान थोड़े खरीदेगा. कह रहा था कि टारगेट कम आया है.
शेषनाथ सिंह बताते हैं, बहुत जटिल नियम है. अगर 1000 क्विंटल खरीदने का टारगेट है, तो पहले 250 क्विंटल खरीदना है, उसका चावल तैयार कराना है, उसको पहुंचाना है. फिर अगले 250 क्विंटल धान को खरीदने का परमिशन मिलेगा. मार्च, 2015 तक का ही टाइम है. गरीब किसानों का नंबर थोड़े आयेगा. पहले अपने परिवारवालों का खरीदेगा, फिर किसी और का. धान खरीद की विडंबनाओं से जुड़ी ये कहानियां धान का कटोरा कहे जाने वाले शाहाबाद इलाके का हर किसान इसी लहजे में सुनाता है.
इलाके के कुछ बड़े किसानों ने धान बचा कर जरूर रखा है. उनका धान दिसंबर से ही खलिहान में पड़ा है. किसी ने दौनी करवा लिया है, तो रोज धूप लगता है और समेट कर बोरे में रख लेते हैं.
मगर कई किसानों ने तो दिसंबर में कटे धान की अब तक दौनी भी नहीं करायी है. सोच रहे हैं दौनी की मजदूरी में पैसा तभी खर्च करेंगे, जब धान की रेट ठीक होगी या पैक्स वाले खरीदने के लिए तैयार हो जायेंगे. सहार प्रखंड के धनछुआं गांव में ऐसे किसान बहुतायत में मिलते हैं.
किसान बबन राय और दिनेश शर्मा कहते हैं, अब तक आठ से नौ हजार प्रति बीघा खर्चा कर चुके हैं, अब कितना खर्च करें. दाम मिले तब तो.
भोजपुर जिले के बड़कागांव के किसान अरविंद कहते हैं, जो लोग अब तक इंतजार करते रहे कि पैक्स की सरकारी खरीद शुरू होगी और उन्हें 1410 रुपये का सरकारी भाव मिलेगा, उन्हें भी झटका लगा है. खबर है कि जिले भर के पैक्स अध्यक्षों ने बैठक करके तय कर लिया है कि वे किसानों से 1200 रुपये की अघोषित दर पर ही धान लेंगे. जिसका धान बेचना है, बेचे. मतलब यह कि वे अगर आपसे एक क्विंटल धान लेंगे, तो रसीद 85 किलो की ही देंगे.
इस सुस्त रफ्तार खरीदी का असर यह हुआ है कि सहकारिता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 17 फरवरी तक कुल लक्ष्य का महज 17 फीसदी धान ही खरीदा जा सका है. हालांकि, सहकारिता मंत्री आलोक मेहता इसे भी अपनी उपलब्धि बताते हैं और कहते हैं कि पिछले साल के मुकाबले अभी ही 50 हजार टन अधिक धान की खरीद हुई है. वे कहते हैं, परेशानी उन्हीं लोगों को है जो पुरानी व्यवस्था के लाभुक थे. मगर जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है.
धान का कटोरा मानेजाने वाले पूरे शाहाबाद इलाके में हर किसान का यही कहना है कि पुरानी व्यवस्था बेहतर थी. कैमूर के सहुका गांव के किसान कहते हैं, पैक्स द्वारा खरीद की व्यवस्था शुरू होने के बाद से ही गड़बड़ियां शुरू हुई हैं. वे कहते हैं, पहले मिलर कटनी के वक़्त खेत से ही धान उठा लेते थे. रेट में थोड़ा-बहुत हेरफेर होता था, मगर पैसा टाइम पर मिल जाता था.
कैमूर जिले के सहुका गांव में किसान भोला सिंह, जो पूर्व सांसद जगदानंद सिंह के छोटे भाई हैं, कहते हैं- पैक्स अध्यक्ष की भी मजबूरियां हैं. उसे हर किसी को पैसा देना है. अब तो सीओ एक बार रसीद काटने का पैसा मांगता है, दुबारा पैक्स अध्यक्ष से रसीद सत्यापन का पैसा मांगता है. मतलब जो रसीद उसने काटी, उसके लिए दो बार घूस खाता है. सारा बोझ तो किसान पर ही पड़ता है न. फिर पैक्स अध्यक्षों को टारगेट भी कम दिया गया है. वह क्या करे.
हालांकि, पैक्स अध्यक्ष अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार करते हैं.बड़कागांव के पैक्स अध्यक्ष मदन तिवारी कहते हैं, जिनके धान में धूल-मिट्टी मिली होती है, उसी का वजन हम कम करते हैं. वे कहते हैं कि यह बात सच है कि हम हर किसान का धान नहीं खरीद सकते. मुझे सिर्फ 19 लाख रुपये का धान खरीदने का अधिकार मिला है. यानी 13 किसानों का 100-100 क्विंटल धान ही खरीद सकते हैं. बाकी लोगों का छूटना तो तय है. हमने आवेदन किया है कि हमारा अधिकार बढ़ाया जाये.
धान खरीद की गड़बड़ियों में एक महत्वपूर्ण किरदार राइस मिले हैं. किसान नेता शेषनाथ जी बताते हैं कि पैक्स को धान खरीद कर चावल तैयार करने के लिए राइस मिलों को उपलब्ध कराना है. मगर पिछले दो-तीन सालों में ऐसी गड़बड़ियां हुई हैं कि बड़ी संख्या में मिल मालिक डिफॉल्टर हो गये हैं. कई मिल मालिकों के खिलाफ सरकार ने मुकदमा किया हुआ है. सबके सब फरार हैं. ज्यादातर मिलें बंद पड़ी हैं. अब पैक्स वाले धान खरीद कर चावल तैयार करने दें, तो किस मिल को दें.
भाेजपुर जिले के हसन बाजार में पहले काफी राइस मिलें संचालित होती थीं. लोग बताते हैं कि महज कुछ साल पहले तक यहां से चावल उत्तर बिहार के इलाकों में तो जाता ही था, बांग्लादेश भी एक्सपोर्ट किया जाता था. मगर अब हालत यह है कि दूसरे राज्यों से चावल हसन बाजार आ रहा है.
यहां की तीन मिलें गंगा, जमुना और सरस्वती काफी मशहूर थीं. हम जब इन तीन मिलों के पास पहुंचते हैं, तो पता चलता है कि गंगा और सरस्वती तो बंद पड़ी हैं, जमुना को किसी अन्य व्यक्ति ने खरीद लिया है और उसका नाम बदल कर दुर्गा राइस मिल कर दिया है. मिल के नये मालिक राजकिशोर सिंह ने बताते हैं कि आजकल राइस मिल चलाना आसान काम नहीं है. वे किसी तरह से अपनी इज्जत बचा कर काम कर रहे हैं. ज्यादातर लोग डिफॉल्टर साबित हो जा रहे हैं.
जिलावार अद्यतन खरीद, लक्ष्य के सामानुपातिक
जिला लक्ष्य(टन में) अब तक खरीद(टन में)
1. अररिया 45000 8486.807 (18.85%)
2. अरवल 25000 6110.050 (24.44%)
3. औरंगाबाद 151000 39710.554 (26.29%)
4. बांका 86000 10188.345 (11.84%)
5. बेगुसराय 20000 3957.736 (19.78%)
6. भागलपुर 45000 5647.836 (12.55%)
7. भोजपुर 111000 13144.074 (11.84%)
8. बक्सर 87000 10121.400 (11.63 %)
9. दरभंगा 75000 10820.472 (14.42 %)
10. पूर्वी चंपारण 155000 19147.213 (12.35 %)
11. गया 107000 20434.628 (19.09 %)
12. गोपालगंज 76000 6904.064 (09.08 %)
13. जमुई 41000 10292.640 (25.10 %)
14. जहानाबाद 60000 5060.370 (08.43 %)
15. कैमूर 150000 33228.359 (22.15 %)
16. कटिहार 62000 6662.199 (10.74 %)
17. खगड़िया 55000 4600.040 (08.36 %)
18. किशनगंज 35000 8866.560 (25.33 %)
19. लखीसराय 26000 11407.400 (43.87 %)
20. मधेपुरा 35000 7450.640 (21.28 %)
21. मधुबनी 122000 13944.797 (11.43 %)
22. मुंगेर 26000 1935.555 (07.44 %)
23. मुजफ्फरपुर 132000 8981.680 (06.80 %)
24. नालंदा 150000 45987.144 (30.65 %)
25. नवादा 85000 22897.254 (26.93 %)
26. पटना 105000 23600.537 (22.47 %)
27. पूर्णिया 65000 16027.635 (24.65 %)
28. रोहतास 210000 37317.828 (17.77 %)
29. सहरसा 41000 10445.229 (25.47 %)
30. समस्तीपुर 67000 12365.495 (18.45 %)
31. सारण 75000 5290.030 (07.05 %)
32. शेखपुरा 22000 13679.540 (62.17 %)
33. शिवहर 23000 3815.980 (16.59 %)
34. सीतामढ़ी 88000 2737.482 (03.11 %)
35. सीवान 86000 6521.110 (07.58 %)
36. सुपौल 66000 11285.778 (17.09 %)
37. वैशाली 30000 3398.936 (11.32 %)
38. पश्चिमी चंपारण 160000 18153.300 (11.34 %)
कुल 3000000 500666.697 (16.68 %)
खरीद की मोनोपोली खत्म हो : जगदानंद
अपने गांव में मौजूद पूर्व सांसद जगदानंद सिंह पैक्स बंद करने की बात का सख्ती से विरोध करते हैं. कहते हैं, पैक्स बंद करना समाधान नहीं हैं. पैक्स भी तो किसानों की ही संस्था है. हां, खरीद की मोनोपोली खत्म करने से व्यवस्था सुधर सकती है. एफसीआइ, बिस्कोमान, व्यापर मंडल, मिलर सभी को धान खरीदने की छूट मिले. प्रतिस्पर्धा होगी तभी बेहतर कीमत किसान को मिल पायेगी.
सहकारिता मंत्री कहते हैं
पिछले साल के मुकाबले अधिक हुई है खरीद
1. धान खरीद सुस्त गति से हो रही है.
आरोप गलत है. हम अभी ही पिछले साल के मुकाबले 50 हजार टन अधिक धान खरीद चुके हैं.
2. धान खरीद प्रक्रिया देर से शुरू हुई. ज्यादातर किसानों से अपना धान औने-पौने दर पर बेच दिया.
अक्तूबर-नवंबर के महीने में वातावरण में 20 फीसदी से अधिक नमी रहती है. धान सूखा नहीं होता है. इसी वजह से देर हुई.
3. पैक्स अध्यक्षों को कम टारगेट दिया गया है.
नयी प्रक्रिया है, इसलिए कई चीजें में दिक्कत आ रही हैं. इन्हें जल्द ठीक कर लिया जायेगा.
4. किसानों का आरोप है कि पैक्स अध्यक्ष 12 सौ रुपये से अधिक देने को तैयार नहीं हैं.
पैक्स तो किसानों की संस्था है. किसानों को विरोध करना चाहिए. उचित प्रमाण के साथ शिकायत की जायेगी, तो हम मुकदमा भी करेंगे.
5. पैक्स की मोनोपोली खत्म हो, हर किसी को धान खरीदने का मौका दिया जाये.
ऐसा वे लोग कर रहे हैं, जिनको नयी व्यवस्था से परेशानी है. इसमें विपक्ष के लोग भी हैं. हम तो इस कोशिश में हैं कि 90 फीसदी खरीद पैक्सों के जरिये हो. साथ ही हम राइस मिलों और गोदामों को बढ़ाने की कोशिश भी कर रहे हैं.
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