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प्रोटेक्शन ऑफिसर की बहाली अब तक नहीं

लापरवाही. वर्ष 2005 में ही हुआ था प्रावधान घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए की जानी थी बहाली अनुपम कुमारी पटना : महिलाओं को घरेलू हिंसा से निजात दिलाने के लिए कानून भले ही बन गया हो. लेकिन, उनका पालन करनेवाले पदाधिकारियों की अब तक नियुक्ति नहीं हो सकी है. इससे […]

लापरवाही. वर्ष 2005 में ही हुआ था प्रावधान
घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए की जानी थी बहाली
अनुपम कुमारी
पटना : महिलाओं को घरेलू हिंसा से निजात दिलाने के लिए कानून भले ही बन गया हो. लेकिन, उनका पालन करनेवाले पदाधिकारियों की अब तक नियुक्ति नहीं हो सकी है. इससे घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय मिलने में देरी हो रही है. घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत हिंसा से पीड़ित महिलाओं को तीन माह के अंदर न्याय दिलाने के लिए प्रत्येक जिले में एक स्पेशल प्रोटेक्शन ऑफिसर और एक सर्विस प्रोवाइडर की नियुक्ति की जानी थी. ताकि घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को जल्द-से-जल्द न्याय मिल सकें. पर अधिनियम के दस साल बाद भी प्रोटेक्शन ऑफिसर की नियुक्ति नहीं हो सकी है.
अस्थायी अॉफिसर
वर्ष 2007 में हाइकोर्ट के आदेशानुसार अधिनियम के अंतर्गत महिला विकास निगम की ओर से संचालित महिला हेल्पलाइन के परियोजना प्रबंधक को अस्थायी रूप में प्रोटेक्शन ऑफिसर का पदभार दिया गया, जो कि महिला हेल्पलाइन में आनेवाले मामलों के अलावा घरेलू हिंसा के मामलों को भी देख रही हैं.
परियोजना प्रबंधक के रूप में हेल्पलाइन में दर्ज मामलों की काउंसेलिंग से लेकर अन्य कार्यों की जिम्मेवारी होने से अधिनियम का लाभ महिलाओं को समय पर नहीं मिलता है. वहीं, पिछले साल समाज कल्याण विभाग की ओर से महिला विकास निगम को घरेलू हिंसा अधिनियम का नोडल एजेंसी भी बनाया गया है. इसके तहत जिले में प्रोटेक्शन ऑफिसर बहाल करने से लेकर हिंसा से निबटने की जिम्मेवारी महिला विकास निगम को दी गयी है. लेकिन, एक वर्ष बाद भी इस संबंध में कोई कार्य नहीं हो सका है.
अफसर के ये हैं काम
अधिनियम के तहत प्रत्येक जिले में एक सर्विस प्रोवाइडर व प्रोटेक्शन ऑफिसर बहाल किये जाने थे. सर्विस प्रोवाइडर की जिम्मेवारी मामलों को चिह्नित कर उसे प्रोटेक्शन ऑफिसर के पास भेजने की है. उसके बाद प्रोटेक्शन आॅफिसर मामले को अधिनियम के अनुसार बने फॉरमेट पर आवेदन कर मजिस्ट्रेट के पास भेज देती है. जहां से महिला को तीन माह के अंदर न्याय दिलाया जाना है. इसके अलावा पीड़िता को मामले की सुनवाई तक सुरक्षित रखने की जिम्मेवारी भी प्रोटेक्शन ऑफिसर की है, जो महिला को जिले में बने शॉर्ट स्टे होम में रखवा सकें.

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