एकाउंट में राशि, फिर भी अटकीं विकास योजनाएं- विवादों से नहीं उबर पा रहा नगर निगम- मेयर-आयुक्त एक दूसरे पर आरोप लगाने में व्यस्त- नगर आवास विकास विभाग निगम प्रशासन की कार्यप्रणाली से है खफा – प्रधान सचिव ने नगर आयुक्त से सात दिनों में मांगा था जवाब – सरकार से मिली राशि बढ़ा रही निगम एकाउंट की शोभाप्रभात रंजन, पटना :नगर निगम में स्थायी समिति और बोर्ड की बैठक नियमित होती है. इसमें एजेंडा पर विचार-विमर्श कर योजनाओं की स्वीकृति भी दी जाती है. हालांकि, स्थायी समिति व बोर्ड से स्वीकृत योजना प्रोसिडिंग और फाइलों में ही दब कर रह जाती है.स्वीकृत योजनाओं को पूरा करने के लिए राशि की कमी नहीं है. राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं के मद में निगम को करोड़ों रुपये की राशि उपलब्ध करायी है. यह राशि निगम एकाउंट में वित्तीय वर्ष 2014-15 से पड़ी हुई है. लेकिन मेयर व नगर आयुक्त विवाद में सार्वजनिक स्थलों पर एक यूरिनल तक का निर्माण तक नहीं कराया जा सका. एक बार फिर मेयर व नगर आयुक्त के बीच विवाद शुरू होने लगा है. विवाद कब खत्म होगा, यह तो भविष्य में पता चलेगा. फिलहाल, नगर आवास विकास विभाग में दिसंबर माह की समीक्षा की गयी है. इसमें निगम की स्थिति काफी निराशाजनक है. 23 से 29 प्रतिशत राशि ही खर्च निगम एकाउंट में एक अप्रैल 2015 को चतुर्थ राज्य वित्त आयोग की 8039.31 लाख रूपये की राशि उपलब्ध थी, जिसमें से 2384.10 लाख रुपये ही खर्च हुए. 14वें वित्त आयोग से 3776.19 लाख रुपये दिये गये. इसमें से 929.95 लाख रुपये ही खर्च हुए. राज्य योजना के पिछले वत्तीय वर्ष का 7267.06 लाख रुपये होने के बावजूद चालू वित्तीय वर्ष में 3180.31 लाख रुपये दिये गये. इसमें से भी 2466.31 लाख रुपये ही खर्च किये जा सके. कुल मिलाकर निगम प्रशासन द्वारा राज्य सकरार से मिली राशि में सिर्फ 23 से 29 प्रतिशत ही खर्च किया गया है. इसका खामियाजा निगम क्षेत्र में रहने वाले लोग भुगतने को मजबूर है. हालांकि, निगम प्रशासन ने 13वें वित्त आयोग के तहत मिली राशि का ही 75.75 प्रतिशत खर्च किया है. हर स्तर पर फिसड्डीनगर आवास विकास विभाग ने समय-समय पर नगर निगम को विभिन्न मद में राशि उपलब्ध करायी है, लेकिन निगम प्रशासन हर स्तर पर विफल रहा है. स्थिति यह है कि ठोस कचरा प्रबंधन योजना हो या फिर मुख्यमंत्री स्वच्छता अनुदान की राशि खर्च करने का मामला, प्रगति शून्य है. आलम यह है कि निगम प्रशासन खर्च की गयी राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र भी विभाग को उपलब्ध नहीं कराया है. इतना ही नहीं, चतुर्थ राज्य वित्त आयोग, 13वें वित्त आयोग, 14वें वित्त आयोग, राज्य आयोग, ठोस कचरा प्रबंधन, मुख्यमंत्री स्वच्छता अनुदान, उपयोगिता प्रमाण पत्र, नजर सेवा प्रबंधन, होल्डिंग टैक्स वसूली, स्वच्छ भारत मिशन, सब के लिए आवास योजना, पीएल खाता, लंबित अंकेक्षण रिपोर्ट आदि में कोई कार्य नहीं किया गया है.होल्डिंग टैक्स वसूली की रफ्तार भी काफी धीमी निगम प्रशासन ने दो वित्तीय वर्ष से होल्डिंग टैक्स वसूली का लक्ष्य 70 करोड़ निर्धारित कर रहा है. लेकिन, पिछले वित्तीय वर्ष में सिर्फ 18 करोड़ की वसूली की गयी. वहीं चालू वित्तीय वर्ष में 31 दिसंबर तक सिर्फ 23.32 करोड़ रूपये की ही वसूली हुई है. निगम प्रशासन अपने निर्धारित लक्ष्य का 33 प्रतिशत प्रतिशत होल्डिंग ट्रैक्स वसूल कर ही खुश है.मोबाइल टावर, विज्ञापन, लाइसेंस, बस स्टैंड, सैरात आदि से होने वाली राजस्व प्राप्ति की स्थिति भी निराशाजनक है. विज्ञापन एजेंसियों पर 15 करोड़ से अधिक बकाया है, लेकिन वसूली 66.88 लाख रुपये ही हुई है. निगम को लाइसेंस से सिर्फ छह हजार रुपये ही प्राप्त हुए हैं. एक नजर में निगम की राशि – स्टेट प्लान- 90.37 करोड़ शेष – 14वां वित्त- 24.91 करोड़ शेष – 13वां वित्त- 1.79 करोड़ शेष – 12वां वित्त- 69 लाख शेष राजस्व प्राप्ति- होल्डिग टैक्स- 23.32 करोड़- मोबाइल टावर- 30.85 लाख – लाइसेंस- छह हजार- विज्ञापन शुल्क- 66.88 लाख – चुग्गी कर- 1.3 करोड़- सैरात- 17.48 लाख – म्यूटेशन- 3.72 लाख नोट : सभी रकम रुपये में
एकाउंट में राशि, फिर भी अटकीं विकास योजनाएं
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