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मिथिलेश भारी बहुमत के साथ एक बार फिर से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बनने वाले हैं चौथी बार बिहार की बागडोर संभालेंगे़ इस बार उनके साथ उनके पुराने साथी रहे लालू प्रसाद भी हैं विधानसभा चुनाव में नीतीश ने बिहार के सम्मान की बात उठाई थी, जिसे शायद यहां की जनता ने सही ठहाराया़ […]

मिथिलेश
भारी बहुमत के साथ एक बार फिर से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बनने वाले हैं चौथी बार बिहार की बागडोर संभालेंगे़ इस बार उनके साथ उनके पुराने साथी रहे लालू प्रसाद भी हैं
विधानसभा चुनाव में नीतीश ने बिहार के सम्मान की बात उठाई थी, जिसे शायद यहां की जनता ने सही ठहाराया़ अगले पांच साल अगर नीतीश िबहार के सीएम पद पर रह गये, तो एक नया रिकॉर्ड कायम करेंगे़
राज्य में सबसे लंबे दिनों तक मुख्यमंत्री रहने का िरकॉर्ड नीतीश कुमार के नाम हो जायेगा, जो अभी तक सूबे के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण िसंह के नाम है़ नीतीश कुमार की इस महाजीत पर आज हम बता रहे हैं 1985 से अब तक का सफर, जो अनवरत जारी है़ विधानसभा से शुरू हुआ नीतीश का सफर केंद्रीय मंत्री के रास्ते मुख्यमंत्री तक जारी है़
पटना : नीतीश कुमार का जलवा एक बार फिर सामने आया है. चुनाव परिणाम ने यह तय कर दिया है कि नीतीश कुमार चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभालेंगे. इस बार की सरकार पांच साल चली तो 2020 तक की अवधि में नीतीश कुमार सबसे अधिक दिनों तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड बनायेंगे.
बिहार में सरकारें आयीं, गयीं. पांच बार राष्ट्रपति शासन लगे. इस बार के चुनाव के बाद नीतीश कुमार राज्य में सबसे लंबे दिनों तक मुख्यमंत्री बने रहने वाले पहले मुख्यमंत्री बन जायेंगे. अब तक यह रिकार्ड राज्य के पहले सीएम श्रीकृष्ण सिंह के नाम रहा है. श्री बाबू के नाम से मशहूर बिहार केसरी डा श्रीकृष्ण सिंह के नाम सबसे अधिक 5446 दिनों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का रिकार्ड है.
वह आजादी मिलने के पहले से इस पद पर आसीन रहे. 15 अगस्त, 1947 की तिथि से उनके निधन की तिथि तक की अवधि में वह पूरे 4945 दिनों तक वह बिहार के मुख्यमंत्री रहे. श्री बाबू के बाद नीतीश कुमार दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें सबसे अधिक दिनों तक शासन काल रहा.
उनके कार्यकाल में 2000 के 10 दिनों को शामिल कर लिया जाये तो अब तक वे 3365 दिन एक मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल बीत चुका है. इस बार सरकार बनने के बाद 2020 के चुनाव तक सीएम बने रहने की स्थिति में नीतीश कुमार राज्य के सबसे अधिक दिनों तक सीएम का रिकाॅर्ड बनायेंगे. राबड़ी देवी राज्य की तीसरी सबसे अधिक दिनों तक सीएम रहने वाली नेता हैं. एक महिला सीएम के रूप में वह पहली नेता हैं.
जब उन्होंने अपना पद त्यागदिया था
नीतीश कुमार ने प्रदेश की राजनीति में अपनी पकड़ बरकरार रखी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने अपना पद त्याग दिया.
उनके करीबियों की मानें तो नीतीश कुमार को राजनीति से विरक्ति होने लगी थी. इसी दौरान उन्होंने अपने कैबिनेट सहयोगी जीतन राम मांझी को सीएम की कुरसी सौंपने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था. हालांकि, बाद में उन्होंने इस बात को खुले तौर पर स्वीकारा कि उनका मांझी को सीएम बनाने का फैसला राजनीतिक तौर पर सही साबित नहीं हुआ.
1985 में पहली बार बिहार विधानसभा पहुंचे नीतीश कुमार की 30 वर्षों की राजनीतिक यात्रा कम रोचक नहीं रही. डॉ लोहिया और जेपी के समाजवादी विचारधारा से ओत-प्रोत नीतीश कुमार की गिनती 1990 के दशक में लालू प्रसाद के करीबी नेताओं में होती थी.
1994 में कुरमी रैली के दिन से लालू प्रसाद से अलग हुए नीतीश कुमार के लिए बिहारी की जातीय तपिश में उबली राजनीति इतनी आसान भी नहीं थी. बाद में वह भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी बाजपेयी के करीब आये. अटल जी ने एनडीए बनाया उसमें 24 पार्टियों को शामिल कर एक बड़ा गंठबंधन तैयार किया. नीतीश उनके सबसे बड़े और भरोसे के साथी साबित हुए.
17 साल तक उनका रिश्ता रहा. 2013 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार विधानसभा का चुनाव जीता और उनकी धमक राष्ट्रीय राजनीति में दिखने लगी और भाजपा के चेहरे में बदलाव नजर आने लगा तो नीतीश कुमार ने अपनी सतरह साल की दोस्ती को ठुकराने में पलभर भी देर नहीं किया.
उन्होंने एनडीए से अलग होने का कड़वा फैसला लिया और खुद अपने दम पर सरकार चलाने की कोशिश की. 2013 की इस राजनीतिक उठापटक के बाद आया लोकसभा का चुनाव. इस चुनाव में नीतीश बुरी तरह पराजित हो गये.
पराजय को स्वीकार तो कर लिया पर उनके मन में एक नयी राजनीतिक पटकथा जन्म ले रही थी जो आने वाले दिनों में बिहार में बड़ी ध्रुवीकरण की ओर बढती दिखायी दी. फिर आया राज्यसभा का चुनाव. इसी समय वह अपने अब तक के घोर विरोधी लालू प्रसाद के एक बार फिर निकट आये. परस्थितियां बदली, विधानसभा के उप चुनाव में लालू और नीतीश एक मंच पर हाजीपुर के सुभई की सभा में जब खुले तौर पर एक मंच पर आये तो राजनीतिक पंडितों ने मंडल राज पार्ट 2 के रूप में इसे देखा.
वही तीस साल पुरानी स्पिरिट
निजी बातचीत में वह स्वीकारते हैं कि अभी भी उनमें वही तीस साल पुरानी स्पिरिट है. जब सांसद निर्वािचत हुए तो उन दिनों दिल्ली में डीटीसी की मेटाडोर चलती थी. वह अपने आवास से संसद तक पहुंचने के लिए इसी मेटाडोर का उपयोग करते थे.
1974 का आंदोलन चल रहा था. जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में यह आंदोलन आगे बढा. इस समय से ही लोग उनके नाम जानने लगे थे. इमरजेंसी लगी, सब कोई जेल में थे. रिहा होकर बाहर निकले और जिस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने गया वहां लोग देखने और सुनने आने लगे. इससे आत्मविश्वास बढा. जब जेपी ने छात्रों से कक्षा बहिष्कार का नारा दिया तो करीब तीन महीने तक कक्षाएं खाली रहीं. इसके बाद इक्के-दुक्के छात्र कक्षाएं में दिखने लगे तो आंदोलनकारियों की चिंता बढने लगी.
चिंता यह थी कि कहीं आंदोलन का दम कम तो नहीं हो रहा. नीतीश कुमार को कक्षा बहष्किार कराने की जिम्मेवारी सौंपी गयी. उन्होंने बीएन कालेज से इस कार्य को आरंभ कराया. छात्रों को कक्षा से बाहर निकाला. विश्वविद्यालय में यह खबर फैली. कुलपति बाहर आये उनसे शास्त्रार्थ हुआ. वह अलग दौर था.
1974 के छात्र और जेपी आंदोलन के प्रमुख किरदार 1977 के आम चुनाव में जिस समय जीत रहे थे, वह चुनाव हार गये. इसके बाद 1980 का विधानसभा चुनाव भी वह हार गये. हारने के बाद लोग उनकी प्रशंसा में यह कहते कि आदमी अच्छे हैं, पर वोट नहीं मिल रहा था. तीसरी बार पुन: उम्मीदवार बने.
एक चुनावी सभा में उन्होने ऐलान कर दिया कि इस बारनहीं जीता तो चुनाव लडने फिर कभी नहीं आयेंगे. उनकी इन बातों से चुनावी सभा में बैठे कई लोगों के आंखों में आंसू आ गये, लेकिन नीतीश के इस भावनात्मक अपील की असर भी हुआ. वह भारी मतों से चुनाव जीत गये.
‘पहली बार बड़ी मुश्किल से बना था विधायक’
कर्पूरी ठाकुर ने मुझे देखा तो सहज उनके मुंह से निकला कि आपको मैं युवा लोकदल का अध्यक्ष बनाउंगा. लेकिन, चुनाव में कहीं हार न जाउं, इसिलए मैं इस जिम्मेवारी से भाग रहा था. हमने हाथ जोड़ लिया. बाद में उनके आवास पर जाना ही छोड दिया. कोई भी काम हो निर्वाचन क्षेत्र पहुंचने में देर नहीं करता. एक बार क्षेत्र में घूमने के दौरान खेत में काम कर रहे एक किसान ने टोका, आपका इलाका ठीक है, आप इसकी चिंता मत करिये, आप आगे बढिये हमलोग आपको एक विधायक से ऊपर देखना चाहते हैं
संसदीय जीवन के तीस साल पूरे होने पर आद्री की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने कहा था, पहली बार बड़ी मुश्किल से विधायक बना था. हमारी पार्टी लोकदल थी और कर्पूरी ठाकुर हमारे नेता थे. क्षेत्र से लगातार संपर्क में था. कर्पूरी ठाकुर युवा लोकदल का अध्यक्ष नियुक्त करना चाहते थे. यह 1986 का आखिरी और 1987 का शुरुआती दौर था.
कर्पूरी ठाकुर ने मुझे देखा तो सहज उनके मुंह से निकला कि आपको मैं युवा लोकदल का अध्यक्ष बनाउंगा. लेकिन, चुनाव में कहीं हार न जाउं मैं इस जिम्मेवारी से भाग रहा था. हम हाथ जोड लेते थे. बाद में हम उनके आवास पर जाना ही छोड दिये. कोई भी काम हो नर्विचन क्षेत्र पहुंचने में देर नहीं करता. एक बार क्षेत्र में घुमने के दौरान खेत में काम कर रहे एक किसान ने टोका, आपका इलाका ठीक है, आप इसकी चिंता मत करिये, आप आगे बढिये हमलोग आपको एक विधायक से उपर देखना चाहते हैं.
किसान की वह बात मुझे घर कर गयी. मैं पटना आया तो रात में सोचता रहा. सुबह जब उठा तो मन से तैयार हो कर कर्पूरी ठाकुर के आवास पर पहुंचा. कर्पूरी जी उछल पड़े. अरे आप आ गये, मैं आज ही ऐलान कर दूंगा. उनकी बातों पर मैं चुप रहा, यह मेरी मौन स्वीकृति थी.
फिर मैं दोबारा पीछे मुड़ कर नहीं देखा. छह मार्च 1985 को नीतीश कुमार पहली बार विधानसभा के लिये चुने गये. यह होलिका दहन का दिन था. रंग से भागने वाला आदमी रहे नीतीश को उस दिन उनके शुभचिंतकों ने रंग से सराबोर कर दिया था. लोगों में खुशी थी कि यह लडका एमएलए बन गया. बिहार विधानसभा में उन्हें राज्य की बजट पर बोलने का मौका मिला. तत्कालीन वित मंत्री ने अपने भाषण में जिन दो लोगों का जक्रि किया, उसमें एक विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर थे और दूसरा नीतीश कुमार थे.
जनहित के मुद्दों पर वाद-विवाद में हस्सिा लेते रहे. असेंबली से जब शाम को जब घर लौटता तो युवा साथी विधायकों की टोली घर पर पहुंच जाती और अपने-अपने सवालों को अगले दिन उठाने का आग्रह होता. इसके बाद नौवीं लोकसभा के लिये बाढ संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गये.
कर्पूरी विदा हो चले थे. अब नयी पीढी के हाथों में सत्ता आयी थी. लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बने और नीतीश कुमार सांसद. पहली बार लोकसभा का चुनाव लडे तो उनके सामने दग्गिज कांग्रेसी नेता जिन्‍हें शेरे बिहार कहा जाता था रामलखन सिंह यादव उम्मीदवार थे. हालांकि, इस सीट पर भाजपा का भी उम्मीदवार था. क्षेत्र के बाहरी लोग यही कहते , बेचारा, दुबला पतला आधा लीवर का आदमी यह क्या चुनाव लडेगा.
नीतीश कुमार ने यह चुनाव अस्सी हजार मतों से जीता. लोकसभा में सीखने की इच्छा थी. लेकिन, जब तक समझ पाता, केंद्र में राज्य मंत्री बना दिये गये. यह उनकी आदतों में शुमार रही है कि संसद में जब तक वह सदस्य रहे, नर्धिारित समय पर पहुंचना और कार्यवाही खत्म होने के बाद ही घर लौटना होता था. समता पाटी के गठन की प्रक्रिया चली.
11 वीं, 12 वीं और 13 वीं लोकसभा में दो अवसरों पर उनके दिये गये भाषणों को काफी सराहा गया. पहली बार बाबरी मस्जिद वध्विंश होने के बाद संसद में दिये गये भाषण को बड़ी रूचि से लोगों ने सुना और सराहा. दूसरा अवसर वह था, जब पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जी के सरकार से कॉग्रेस द्वारा समर्थन ले लिये जाने के बाद वश्विासमत के वाद-विवाद में बोलने का उन्हें मौका मिला. बिहार की सरकार में काम के उनके दस सालों में प्रदेश ने कई मामलों में केंद्र और दूसरे राज्यों के लिए रोल माडल बना.
राजनीति में ऐसे बढ़ते गए कदम
खेत में काम कर रहे एक किसान की बातों ने नीतीश कुमार जीवन को दिशा को बदल दिया. नीतीश कुमार की राजनीतिक राह इतनी आसान नहीं थी.
अपने संसदीय जीवन के तीस वर्ष पूरे होने के उपलक्षय में उन्होंने खुद आद्री की एक सभा में बताया था कि किस प्रकार खेत में काम कर रहे एक किसान की बोली उनके लिए सही साबित हुई. वह विधायक से सांसद बने, फिर केंद्र में राज्य मंत्री, कैबिनेट मंत्री और अब प्रदेश की बागडोर. बेहतरीन कैरिअर के बावजूद एक सांसद के तौर पर 10 वीं और 11 वीं लोकसभा में बिताये समय को राजनीति का बेहतरीन समय मानने वाले नीतीश कुमार ने इसी वर्ष 24 मार्च को अपने तीस वर्षों के संसदीय जीवन पूरे किये हैं.
अब तक के सीएम
1. श्रीकृष्ण सिंह : 02-04-1946 से 31-1961
2. दीप ना. सिंह : 01-02-1961 से 18-02-1961
3. विनोदानंद झा : 18-02-1961 से 02-10-1963
4. केबी सहाय : 02-10-1963 से 05-03-1967
5. महामाया प्र.सिन्हा : 01-03-1967 से 28-01-1968
6. सतीश प्र.सिंह : 28-01-1968 से 01-02-1968
7. बीपी मंडल : 01-2-1968 से 02-03-1968
8. भोला प्रसावान शास्त्री : 22-3-1968 से 29-6-1968, 22-6-1969 से 04-7-1969, 02-6-1971 से 09-01-1971
9. राष्ट्रपति शासन : 29-6-1968 से 22-2-1969
10. हरिहर प्र. सिंह : 26-2-1969 से 22-6-1969
11. राष्ट्रपति शासन : 06-07-1969 से 16-2-1970
12. दारोगा प्रसाद राय: 16-2-1970 से 02-06-1971
13. कर्पूरी ठाकुर : 22-12-1970 से 02-6-1971
14. राष्ट्रपति शासन : 09-01-1972 से 19-3-1972
15. केदार पांडेय : 19-3-1972 से 02-7-191973
16. अब्दुल गफुर : 02-7-1973 से 11-4-1975
17. जगन्नाथ मिश्र : 11-4-1975 से 30-4-1975, 08-06-1980 से 14-3-1983,
06-12-1989 से 10-3-1990
18. राष्ट्रपति शासन : 30-4-1977 से 24-6-1977
19. कर्पूरी ठाकुर : 24-6-1977 से 21-4-1979
20. रामसुंदर दास : 21-4-1979 से 17-2-1980
21. राष्ट्रपति शासन : 17-2-1980 से 08-6-1980
22. चंद्रशेखर सिंह : 14-3-1983 से 12-3-1985
23. बिंदेश्वरी दूबे : 12-3-1985 सेे 13-2-1988
24. भागवत झा आजाद : 14-2-1988 से 10-3-1989
25. सत्येंद्र ना. सिंह : 11-3-1989 से 06-12-1989
26. लालू प्रसाद : 10-3-1990 से 03-04-1995, 04-04-1995
27. राबड़ी देवी : 25-7-1997 से 11-2-1999, 09-03-1999 से 02-3-2000,
11-3-2000 से 06-3-2005
28. राष्ट्रपति शासन : 12-2-1999 से 08-3-1999
29. राष्ट्रपति शासन : 07-03-2005 से 24-11-2005
30. नीतीश कुमार : 03-03-2000 से 10-3-2000, 24-11-2005 से 19-5-2014.
31. जीतन राम मांझी : 20-5-2014 से 22-02-2015
32. नीतीश कुमार : 22-2-2015 सेअब तक.

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