अरुण जी कॉलम (इसमें फोटो भी है)पटना कलम के इतिहास से मानुक ने लोगों को परिचित कराया थापटना के अशोक राजपथ स्थित बीएनकॉलेज के लंबे चौड़े परिसर के उत्तरी छोड़ पर यह ईमारत कभी ब्रिटिश इंडिया में पटना हाईकोर्ट के जज और भारतीय चित्रकला के घोर प्रशंसक पी सी मानुक का आवास हुआ करता था. ब्रिटेन के सॉमरसेट में 1873 में पैदा हुए पी सी मानुक, जिनका पूरा नाम पेर्सीवल चतर मानुक था, भारतीय लघु चित्रकला के अग्रणी संग्रहकर्ता थे. उनके पास 1400 लघु चित्रकलाओं का विशाल और समृद्ध संकलन था. पटना कलम चित्रकला के इतिहास से लोगों का परिचय कराने का श्रेय मानुक को ही जाता है. मानुक ने ही सबसे पहले पटना कलम पर एक शोधपूर्ण आलेख लिखा था, जिसे बिहार रिसर्च सोसाइटी ने 1943 में अपने जर्नल में प्रकाशित किया था. यह मानुक ही थे, जिन्होंने मिल्ड्रेड आर्चर को पटना कलम से परिचित करवाया था और उन्हें उस पर पुस्तक लिखने को प्रेरित किया था. मिल्ड्रेड आर्चर डब्लयू जी आर्चर की पत्नी थी, जो बाद के दिनों में पटना के जिलाधीश बने. आर्चर को 1940 में जनगणना अधिकारी बना कर पटना भेजा गया था. मानुक ने मिल्ड्रेड को जो अपने करीबियों में टिम आर्चर के नाम से मशहूर थी, को पटना कलम के आखिरी चित्रकार ईश्वरी प्रसाद से मिलवाया था. टिम आर्चर की पुस्तक ‘पटना पेंटिंग’ 1947 में प्रकाशित हुई. मानुक ने बैरिस्टर के रूप में पटना हाईकोर्ट में अपने कैरियर की शुरुआत की थी. शीघ्र ही उनकी ख्याति एक तेज तर्रार वकील के तौर पर हो गयी थी. जस्टिस हरिहर महापात्र ने अपनी पुस्तक ‘माय लाइफ माय वर्क’ में मानुक की प्रशंसा करते हुए लिखा है, ‘मैंने सर अली इमाम, हसन इमाम,सर सुल्तान, पीके सेन, के बी दत्ता और पी सी मानुक जैसे जहीन वकीलों को पटना हाईकोर्ट में देखा है. ये मेरे आदर्श थे. मैं इन्हें जिरह करते देख-देख वकील बना.’अपने पेशे से अलग मानुक का पहला शौक भारतीय चित्रकला ही था. उनकी पटना के तत्कालीन चित्रकारों से गहरी मित्रता थी. वे अक्सर पटना सिटी स्थित उनके आवासों पर भी पहुंच जाया करते थे. यद्यपि उन दिनों पटना कलम चित्रकला अपने अवसान पर था. उन्होंने स्थानीय चित्रकारों और कला संग्राहकों से बड़ी मात्रा में तस्वीरों को खरीदा. पटना कलम के अतिरिक्त मुगल लघु चित्रकला, पहाड़ी पेंटिंग, कांगड़ा चित्रकला को भी उन्होंने इकठ्ठा किया. इस तरह उनके पास 1400 लघु चित्रों का विशाल संकलन तैयार हो गया. इसके अतिरिक्त उनके पास यूरोपियन चित्रकला, चाइनीज चीनी मिटटी के बर्तन, क्रिस्टल के बर्तन, दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह भी था. मानुक ने यह सारा संग्रह अपनी पत्नी की कमजोर मानसिक अवस्था के कारण अपनी महिला मित्र मैरी कोल्स, जो बांकीपुर में ही रहती थीं, को एक वसीयत के जरिये दे दिया था. लेकिन मानुक के पहले ही मैरी का निधन 4 जून 1946 को हो गया. मरने के पहले मैरी सारा संग्रह मानुक के लिए छोड़ गयी. इसके कुछ ही दिनों बाद 6 अगस्त 1946 को मानुक का भी निधन हो गया. दोनों उस वक्त देहरादून में रह रहे थे. दोनों को वहीं दफन किया गया.मरने के पहले मानुक ने अपना सारा संग्रह ब्रिटिश म्यूजियम, विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम, फिट्जविलियम और ब्रिस्टल म्यूजियम को सौंप दिया. यह संग्रह इन जगहों पर मानुक और उनकी मित्र मैरी कोल्स के नाम से प्रदर्शित किया जाता है.
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अरुण जी कॉलम (इसमें फोटो भी है)
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