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पटना : हर दल में जिताऊ उम्मीदवार की खोज

फतुहा सीट बंटवारे पर कयास फतुहा पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. इस सीट पर फिलवक्त राजद का कब्जा है. पिछले चुनाव में इसके डॉ रामानंद यादव ने जदयू के अजय कुमार सिंह को करीब नौ फीसदी मतों के अंतर से परास्त किया था. रामानंद यादव को 50218 व अजय कुमार सिंह को 40562 […]

फतुहा

सीट बंटवारे पर कयास

फतुहा पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. इस सीट पर फिलवक्त राजद का कब्जा है. पिछले चुनाव में इसके डॉ रामानंद यादव ने जदयू के अजय कुमार सिंह को करीब नौ फीसदी मतों के अंतर से परास्त किया था.

रामानंद यादव को 50218 व अजय कुमार सिंह को 40562 वोट मिला था. 1951 में यह सीट सामान्य यानी अनारक्षित थी. 1957 से लेकर अक्तूबर 2005 तक यह आरक्षित सीट थी. 2010 में इसे फिर से अनारक्षित किया गया.

इस सीट से सबसे अधिक चार बार पुनीत राय चुनाव जीते. कामेश्वर पासवान व सरयुग पासवान को दो-दो बार यहां से विधायक बनने का मौका मिला. महागंठबंधन में इस बार इस सीट के राजद के खाते में जाने और डॉ रामानंद यादव के उम्मीदवार होने की पूरी संभावना जतायी जा रही है.

राजग में यह सीट किस घटक दल के हिस्से जाती है, इस पर फिलवक्त कयास ही लगाये जा रहे हैं. वैसे लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा वोट मिले थे. कांग्रेस दूसरे और जदयू तीसरे स्थान पर रहे थे. भाजपा में इस सीट से उम्मीदवारी को लेकर ज्यादा मारा-मारी है.

अब तक

48 साल बाद पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त यह सीट अनारक्षित हुई थी. पिछले चुनाव के विजेता राजद और उपविजेता जदयू अब एक ही गंठबंधन में हैं.

इन दिनों

राजद बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने में लगा है. राजद परिवर्तन की लहर पैदा करने मे जुटी है. जदयू का जनसंर्क अभियान चल रहा है.

प्रमुख मुद्दे

जाम से मुक्ति की व्यवस्था

विधि व्यवस्था में सुधार

शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में पीने के पानी और बिजली की व्यवस्था

फुलवारी (अजा)

टिकट की खातिर दलबदल

फुलवारी (सुरिक्षत) विधानसभा सीट पर फिलवक्त जदयू का कब्जा है. इसके श्याम रजक ने पिछले चुनाव में राजद के उदय कुमार को करीब 16 फीसदी मतों के अंतर से हराया था.

उदय कुमार अब भाजपा में हैं. राजधानी से सटी यह अकेली विधानसभा सीट है, जिस पर अब तक भाजपा को जीत का स्वाद नहीं मिला है. लिहाजा वह यहां पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में है. जातीय आधार पर भी कुमार को हम पार्टी के समर्थन का लाभ मिल सकता है.

इस बार माले से जयप्रकाश पासवान भी प्रत्याशी हो सकते हैं. 2009 के उपचुनाव में श्याम रजक को यहां हार मिली थी, लेकिन नौ माह बाद हुए विधानसभा के आमसभा चुनाव में वह जदयू के टिकट से फिर निर्वाचित हुए. भाजपा से अलग होने के बाद यहां जदयू को बड़ा नुकसान हुआ. लोकसभा चुनाव में उसे केवल 15.11 फीसदी वोट मिले. वहीं भाजपा को यहां सबसे ज्यादा वोट मिले. राजद दोनों ही चुनाव में दूसरे स्थान पर रहा.

हालांकि उसके वोट प्रतिशत में करीब चार फीसदी की गिरावट आयी. इस बार महागंठबंधन में इस सीट का फिर से जदयू के खाते में रहना और श्याम रजक का उम्मीदवार होना तय है. राजग में भाजपा का इस सीट पर दावा ज्यादा मजबूत है. लिहाजा उम्मीदवारी को लेकर कई नेता दावा ठोंक रहे हैं.

क्षेत्न की समस्या

ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति

शहरी क्षेत्र में जल जमाव और यातायात की समस्या निदान

नये सिरे से बसे राम कृष्ण नगर आदि इलाकों में संपर्कपथ

विधि व्यवस्था क्षे

की मूल समसया है.

120 करोड़ रुपये की योजना स्वीकृत है.

अब तक

पिछली बार दूसरे स्थान पर रहे राजद के उदय कुमार अब भापजा में हैं. इस सीट पर भाजपा को अब तक जीत का स्वाद नहीं मिला है.

इन दिनों

सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. जदयू की ओर से हर घर दस्तक कार्यक्रम चला. भाजपा का जनसंपर्क चल रहा है.

प्रमुख मुद्दे

ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति

शहरी क्षेत्र में जल जमाव और यातायात समस्या निदान

राम कृष्ण नगर में संपर्कपथ

विधि व्यवस्था

दानापुर

किस खाते में जायेगी सीट

दानापुर विधानसभा सीट राजनीतिक रूप से अहम है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद भी यहां का दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. यह राजद का कभी गढ़ माना जाता था, लेकिन क्षेत्र की नयी बसावट ने इसमें बदलाव लाया.

पिछले चुनाव में भाजपा की आशा देवी ने निर्दलीय प्रत्याशी रीत लाल राय को करीब 15 फीसदी वोट के अंतर से हराया था. राजद के सच्चिदानंद राय यहां तीसरे स्थान पर रहे थे. उन्हें महज 9.19 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस ने भी यहां उम्मीदवार दिया था.

उन्हें 2.89 फीसदी वोट मिले. उसके प्रत्याशी की जमानत तक जब्त हो गयी थी. भाजपा की जीत में जदयू के वोट बैंक का भी योगदान था. हालांकि उससे अलग होने के बाद भाजपा के लाभ हुआ. लोकसभा चुनाव में उसके वोट में करीब दो फीसदी की बढ़ोतरी हुई. उसे इस क्षेत्र में 49.78 प्रतिशत मत मिले, जबकि जदयू को बड़ा नुकसान हुआ.

इस चुनाव में उसे केवल 7.22 फीसदी वोट मिले और उसके प्रत्याशी की जमानत तक जब्त हो गयी. इस बार राजग गंठबंधन में इस सीट का भाजपा के खाते में रहना और आशा देवी के फिर से उम्मीदवार होना लगभग तय है. महागंठबंघन में यह सीट किस घटक दल को मिलेगी, यह देखना दिलचस्प होगा.

अब तक

इस सीट से आशा देवी लगतार प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं. राजद से मीसा भारती के भी चुनाव लड़ने के आसार हैं. राजद की ओर से राजिकशोर यादव भी चुनाव की तैयारी में हैं. विधान परिषद के सदस्य रीतलाल यादव इस क्षेत्न से अपनी पत्नी व भाई को मैदान में उतारेंगे.

इन दिनों

भाजपा की ओर से हर तरफ परिवर्तन रथ घुमाया जा रहा है. महागंठबंधन स्वाभिमान रैली की समीक्षा में लगा है. राजद ग्रास रूट पर कार्यकर्ताओं की बैठकें कर रहा है.

प्रमुख मुद्दे

दियारा क्षेत्र का विकास

गंगा नदी पर पक्का पुल

कटाव रोकने की मांग

24 घंटे बिजली

गलियों और नालियों की व्यवस्था

मसौढ़ी (अजा)

इतिहास दोहराने की कवायद

मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र में भाकपा माले की मजबूत पकड़ रही है. पहले यह सामान्य सीट थी. परिसीमन के बाद इसे अनुसूचित जाति के लिए सुरिक्षत किया गया. फिलवक्त इस सीट पर जदयू का कब्जा है.

पिछले चुनाव में इसके अरुण मांझी ने लोजपा के अनिल कुमार को बहुत कम वोटों के अंतर से हराया था. मांझी को 56977, यानी 39.94 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि अनिल कुमार को 51945, यानी 36.41 प्रतिशत. माले के गोपाल रविदास को 14532 मत मिला था.

वह तीसरे स्थान पर रहे थे. इस सीट के सीटिंग गेटिंग के आधार पर इस बार भी जदसू के खाते में रहने और अरुण मांझी के फिर से उसके टिकट पर चुनाव लड़ने की संभावना पक्की है. वहीं भाजपा और हम की ओर से आधा दर्जन से अधिक प्रत्याशी दावे पेश कर रहे हैं.

लोकसभा चुनाव में प्रमुख दलों के प्रदर्शन की बात करें, जो राजद को सबसे ज्यादा वोट मिले थे. उसने लहर के बावजूद भाजपा को दूसरे स्थान पर रोका. गंठबंधन टूटने का जदयू को ज्यादा नुकसान हुआ. उसके उम्मीदवार को केवल 13.18 फीसदी वोट मिले और वह दूसरे स्थान पर रहा.

अब तक

मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र से 2000 में राष्ट्रीय जनता दल के धर्मेंद्र प्रसाद, 2005 में पूनम देवी और 2010 में जनता दल-यू के अरु ण मांझी चुनाव जीते. वाम दल यहां तीसरा कोण रहा है.

इन दिनों

राजद और जदयू जीत के रिकॉर्ड को दोहराने के लिए लगातार जन संपर्कअभियान चला रहे हैं. हालांकि अब दोनों एक ही गंठबंधन में हैं. भाजपा का परिवर्तन रथ गांव-गांव घूम रहा है.

प्रमुख मुद्दे

तेजी से हो रहे शहरीकरण के अनुरूप नागरिक सुविधाओं का विस्तार

जाम की समस्या का समाधान.

मना करना पड़ता है. मसौढ़ी रेलवे स्टेशन के पास आह्यवर ब्रीज बनाने की पूरानी मांग आज भी कायम है. राजधानी की जिला होने के बावजूद बिजली की समस्या मसौढ़ी में कायम है. किसानों को सिंचाई के लिए निजी नलकूप पर निर्भरता आज भा बनी हुई है. कई इलाकों में संपर्क सड़क इस बार की चुनाव में मुद्दा बन सकता है.

विक्रम

विचारधाराओं की राजनीति का रहा केंद्र

विक्रम विधानसभा सीट राजनीतिक रूप से अहम रहा है. इस सीट से भाजपा के कैलाशपति मिश्र भी चुनाव लड़े थे. हालांकि 1980 में वह यहां से हार गये. उनकी हार के बाद से इस सीट पर भाकपा का कब्जा हो गया.

उसके कामरेड रामनाथ यादव 1980, 1985, 1990 और 1995 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करते गये. 2000 के चुनाव में भाजपा ने बाजी मारी. इसके रामजन्म शर्मा यहां से चुनाव जीते थे. यह सीट अभी भी भाजपा के कब्जे में है. इसके अनिल कुमार लगातार दो बार यहां से विधायक चुने गये. 2010 के चुनाव में उन्होंने लोजपा के सिद्धार्थ को हराया था. सिद्धार्थ करीब तेइस सौ मतों के अंतर से हारे थे.

इस बार ये दोनों पार्टियां एक ही गंठबंधन में है. लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट मिले थे. लिहाजा इस सीट पर सिटिंग गेटिंग के आधार पर भाजपा अपना उम्मीदवार उतारेगी और अनिल कुमार एक बार फिर उसके उम्मीदवार होंगे, इसकी संभावना ज्यादा है.

ऐसे में सिद्धार्थ अगर फिर चुनाव लड़ना चाहेंगे, तो उन्हें विकल्प तलाशना होगा. उधर महागंठबंधन में यह सीट किस घटक दल को मिलेगी और उसका उम्मीदवार कौन होगा, इस पर फिलवक्त कयास ही लगाये जा रहे हैं. वैसे संभावनाओं के आधार पर सभी दलों के कई नेता चुनावी तैयारी में जुटे हुए हैं. करीब-करीब हर दल में टिकट के दावेदारों की सूची लंबी है.

अब तक

पिछले चुनाव के विजेता और उपविजेता अब एक ही गंठबंधन के घटक दल हैं. लिहाजा यह सीट उनमें से किसी एक के ही खाते में जायेगी. इसके अलावा स्थानीय स्तर पर कोई बड़ा उलट-फेर नहीं हुआ है.

इन दिनों

भाजपा इस सीट पर अपनी ताकत को बरकरार रखने के लिए जनसंपर्क कर रही है और राज्य सरकार की विफलताओं को गिनाने में जुटी है. वहीं जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम पूरा हो चुका है. राजद जनसंपर्क में लगी है.

इस बार के चुनाव में वर्तमान विधायक अनिल कुमार के अलावा भाजपा के अन्य नेताओं की भी नजर इस सीट पर टिकी है. महागंठबंधन के दोनों दलों की नजर इस सीट पर है.

प्रमुख मुद्दे

ट्रामा सेंटर की स्थापना नहीं, नेशनल 98 के निर्माण, सोन नहर को ठीक किया जाना. बिजली की उपलब्धता.

मनेर

उम्मीदवारों की फेहरिश्त लंबी

मनेर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में इस बार रोचक मुकाबला होने वाला है. पिछले कई चुनावों से मनेर दो ही उम्मीदवारों के इर्द-गिर्द घुमता रहा है. श्रीकांत निराला और भाई वीरेंद्र यहां से चुनाव जीतते-हारते रहे हैं.

2010 के विधानसभा चुनाव में राजद का इस सीट पर कब्जा हुआ. भाई वीरेंद्र यहां से विधायक चुने गये. उन्होंने जदयू के श्रीकांत निराला को करीब मतों के बड़े अंतर से हराया. उन्हें 57818 एवं निराला को 48217 वोट मिले.

कांग्रेस के अशोक गगन तीसरे स्थान पर रहे थे. यह 1951 से कांग्रेस की परंपरागत सीट रही, लेकिन 1977 के बाद उसे केवल दो बार 1985 व 1990 में उसे जीत मिली. बाकी चुनावों में समाजवादी धारा के लोग ही चुने जाते रहे हैं.

1977 में जनता पार्टी से सूर्यदेव सिंह, 1980 में निर्दलीय रामनगीना सिंह,1985 में कांग्रेस की राजमती देवी, 1990 में श्रीकांत निराला, 1995 में जनता दल के टिकट पर श्रीकांत निराला, 2000 के चुनाव में समता पार्टी की टिकट पर भाई वीरेंद्र, फरवरी 2005 में राजद के टिकट पर श्रीकांत निराला, अक्तूबर 2005 के चुनाव में राजद के टिकट पर फिर श्रीकांत निराला ने चुनाव जीता. इस बार समीकरण बदल गया है.

अब तक

श्रीकांत निराला जदयू छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं. भाजपा अगर उन्हें उम्मीदवार बनाती है, तो एक बार फिर दोनों पुराने प्रतिद्वंदियों के बीच मुकाबला होने के आसार ज्यादा हैं.

इन दिनों

भाजपा इस सीट पर कब्जे को लेकर पुराने समाजवादियों के जरिये रणनीति बनाने में जुटी है. जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम पूरा हो चुका है. राजद ग्रास रूट पर सक्रिय है.

प्रमुख मु्द्दे

दियारा में पक्का पुल

24 घंटे बिजली

कानून व्यवस्था में सुधार

सड़क

शहर के लिए मास्टर प्लान

पीने का पानी.

बख्तियारपुर

बढ़ी नेताओं की सक्रियता

बख्तियारपुर कभी कांग्रेस का गढ़ था. 1995 तक इस विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार जीतते रहे. उसके बाद राजद ने इस सीट पर कब्जा किया. 2005 के चुनाव में भाजपा ने राजद को पटकनी दी और इस सीट पर कब्जा जमाया.

पिछले चुनाव में एक बार फिर राजद ने जीत दर्ज की और भाजपा से सीट छीनी. फिलवक्त इस सीट पर राजद का कब्जा है. इसके अनिरुद्ध यादव ने पिछले चुनाव में भाजपा के विनोद यादव को करीब आठ फीसदी वोटों के अंतर से हराया था. लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में भाजपा को सबसे अधिक वोट मिले थे.

राजद ने कांग्रेस को समर्थन दिया था और उसका प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहा था. भाजपा से अलग होने के बाद जदयू को बड़ा नुकसान हुआ. लोकसभा चुनाव में उसे केवल 15.38 फीसदी वोट मिले. इस बार गंठबंधनों के नये समीकरण में बहुत कुछ उलट-पुलट हो चुका है. महागंठबंधन में यह सीट ऐ बार फिर राजद को और राजग में भाजपा को मिलेगी, इस अनुमान के आधार पर दोनों में टिकट के उम्मीदवारों की सक्रियता

बढ़ गयी है.

अब तक

यह कांग्रेस की परंपरागत सीट थी. 1995 से 2005 तक यहां राजद का कब्जा रहा. 2005 में भाजपा जीती. 2010 में राजद ने फिर से इस सीट पर कब्जा किया.

इन दिनों

भाजपा का परिवर्तन रथ घूम रहा है. राजद का जनसंपर्क अभियान चल रहा है. जदयू हर घर दस्तक कार्यक्रम को पूरा कर चुका है. अन्य दल भी केंद्र या राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ सक्रिय हैं.

प्रमुख मुद्दे

शहरी क्षेत्र में पेयजल की समस्या का समाधान

टाल क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा

दियारा में बाढ़ से बचाव के उपाय

बुनियादी सुविधाएं.

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