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राजनीति का चेहरा बदला और समाज का अंदाज

केंद्र में कांग्रेस सत्ताच्यूत हो चुकी थी और अब राज्यों की बारी थी. 1990 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए और उसमें कांग्रेस आजादी के बाद अब के अपने प्रदर्शन के निचले पायदान पर थी. उसे महज 71 सीटें हासिल हुईं. जनता दल 122 विधायकों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में सामने था. […]

केंद्र में कांग्रेस सत्ताच्यूत हो चुकी थी और अब राज्यों की बारी थी. 1990 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए और उसमें कांग्रेस आजादी के बाद अब के अपने प्रदर्शन के निचले पायदान पर थी. उसे महज 71 सीटें हासिल हुईं. जनता दल 122 विधायकों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में सामने था. केंद्र की तर्ज पर जनता दल की बनने वाली सरकार को भाकपा, माकपा और भाजपा ने समर्थन दिया था. पर कुछ ही महीनों बाद भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर बने मोरचा से बाहर हो गयी. 1990 से 2005 तक लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की सरकार रही और इस दौरान राजनीति का चेहरा, उसके सामाजिक समीकरण पूरी तरह बदल गये. लगभग एक ही सामाजिक समीकरण पर किसी सरकार का डेढ़ दशक तक सत्ता में बने रहना दूसरी परिघटना थी. इसके पहले 1952 से 1967 तक कांग्रेस की सरकार थी जो पंद्रह साल तक चली.

10 मार्च 1990: राजनीति का बदला चेहरा
बिहार की राजनीति का एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ. उस दिन लालू प्रसाद ने राज्य के 20 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. जनता दल विधायक दल का नेता चुने जाने से पहले मुख्यमंत्री पद के तीन दावेदार थे. लालू प्रसाद, रामसुंदर दास और रघुनाथ झा. इन दावेदारों के बीच चुनाव हुआ और लालू प्रसाद ने 58 वोट पाकर अपनी जीत पक्की कर ली.
गांधी मैदान में उनका शपथ ग्रहण समारोह हुआ. मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठते ही लालू प्रसाद ने सरकार और सत्ता के अभिजात चेहरे को पलटने का सिलसिला शुरू कर दिया. वह अपनी खास शैली में लोगों से संवाद करते. गांव-गिरांव के अपने बीच का आदमी होने का वह अहसास कराते. उनकी बातों पर लोग आह्लादित होते. आम लोगों के मनोभावों को समझकर ही लालू प्रसाद कहते: ई उड़नखटोला मिसिर जी ने अपने उड़ने के लिए मंगवाया था. अब हम इस पर चढ़ते हैं. दरअसल, सत्ता-प्रतिष्ठान का चेहरा और मुहावरा, दोनों ही बदल गया था. विधानसभा की संरचना में भी बड़ा बदलाव आया.
आडवाणी की गिरफ्तारी
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए जनमत तैयार करने रथयात्र पर निकले भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी ने लालू प्रसाद को रातों-रात बड़े सामाजिक आधार का हीरो बना दिया. आडवाणी की गिरफ्तारी 30 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में हुई थी. भाजपा नेता की गिरफ्तारी ने लालू प्रसाद की छवि सांप्रदायिकता विरोधी नेता की बनाने में मदद की. पिछड़ी, अति पिछड़ी, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय पर लालू का जबरदस्त जादू कायम हो गया था. बिहार में पहली बार इस किस्म की सामाजिक गोलबंदी कायम हुई थी.
1995: अहम पड़ाव
इस समय तक जनता दल के अंदर लालू प्रसाद की कार्यशैली को लेकर सवाल उठने लगे थे. पार्टी नेता और लालू प्रसाद के निकटस्थ नीतीश कुमार ने 1994 में उन्हें लंबी चिट्ठी लिखी. आगाह किया कि किस तरह सामाजिक न्याय की राजनीति बेपटरी होती जा रही है. पर लालू प्रसाद पर उन खतों का कोई असर नहीं हुआ और 1995 के चुनाव में उन्हें टक्कर देने के लिए जॉर्ज फर्णाडीस और नीतीश कुमार के नेतृत्व में समता पार्टी भी उतरी. चुनाव वेिषकों की भविष्यवाणी थी कि लालू सौ सीट भी हासिल नहीं कर पायेंगे. लेकिन चुनाव नतीजों ने तमाम भविष्यवाणियों को गलत ठहरा दिया. जनता दल को 167 सीटें मिलीं. यानी विधानसभा में अकेले बहुमत. लालू ने कहा: मतपेटियों से जिन्न निकला. दरअसल, यह जिन्न उन जातियों की जबरदस्त एकजुटता की बानगी थी जिसकी चुनाव प्रक्रिया में उसके पहले कोई खास भूमिका नहीं मानी जाती थी. समता पार्टी को केवल सात सीटों पर कामयाबी मिली.
दोबारा सत्ता में पहुंचे, संकट की शुरुआत
लालू प्रसाद को विधानसभा में अकेले भले बहुमत मिल गया और सरकार चलाने को लेकर पहले कार्यकाल की तरह दूसरे दलों की ओर नहीं देखना पड़ा हो, पर उनके संकटों से घिरने की शुरुआत भी हो गयी थी. कई तरह के घोटाले उजागर होने लगे. मेधा घोटाला से लेकर सड़क घोटाला तक. लेकिन उनके लिए जंजाल साबित हुआ पशुपालन घोटाला.
1996 से पशुपालन घोटाले की खबरें आनी शुरू हो गयी थी. इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने की मांग को लेकर पटना हाइकोर्ट में याचिका भी दायर की गयी. तब तक जनता दल ने लालू प्रसाद से मुख्यमंत्री पद छोड़ने का निर्देश दिया. लेकिन उन्होंने जनता दल से अलग होकर पांच जुलाई 1997 के राष्ट्रीय जनता दल नाम से नयी पार्टी बना ली. उधर, अदालत की निगरानी में सीबीआइ जांच तेजी से चल रही थी. लालू प्रसाद को उसने आरोपी बना दिया. ऐसे में लालू को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा. उनकी जगह राजद विधायकों ने उनकी पत्नी राबड़ी देवी को विधायक दल का नया नेता चुन लिया. इस तरह राबड़ी देवी बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. उन्होंने 25 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
सामाजिक न्याय की शक्तियों में क्षरण
वर्ष 2000 और 2005 के चुनाव परिणाम से साफ हो गया कि सामाजिक न्याय की जो शक्तियां लालू के आकर्षण में बंधी थीं, उसमें क्षरण आने लगा था. समता पार्टी का जनता दल (यू) में विलय से साफ हो गया था कि एक ही सामाजिक आधार के लिए लड़ाई और तीखी होगी. जदयू-भाजपा गठजोड़ ने दोनों पार्टियों के आधार को विस्तार दिया. 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद की सीटें घटकर 88 पर पहुंच गयी और वह सरकार से बाहर हो गया. जदयू और भाजपा की अगुआई में नये सामाजिक आधार वाले गठबंधन की सरकार सत्ता में पहुंची. लालू प्रसाद के माय (मुसलिम-यादव) समीकरण की ऐसी ताकत नहीं रह गयी थी कि वह उन्हें सत्ता में पहुंचा सके. सदी के अंतिम साल, यानी 15 नवंबर 2000 को बिहार का विभाजन हुआ और झारखंड अस्तित्व में आया. विधानसभा की सीटें 324 से घटकर 243 हो गयीं.

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