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नये परिवेश में एक को जदयू का सम्मेलन

पटना: जदयू के बूथस्तरीय कार्यकर्ताओं का राजनीतिक सम्मेलन एक मार्च को होनेवाला है. पटना के गांधी मैदान में यह सम्मेलन नये परिवेश और नये मुख्यमंत्री के नेतृत्व में होगा. सम्मेलन में जदयू के गांव व बूथस्तरीय कार्यकर्ता आयेंगे. इसमें प्रखंड, जिला और प्रदेश के पदाधिकारी भी शामिल होंगे. इसकी तैयारी को लेकर शनिवार को जदयू […]

पटना: जदयू के बूथस्तरीय कार्यकर्ताओं का राजनीतिक सम्मेलन एक मार्च को होनेवाला है. पटना के गांधी मैदान में यह सम्मेलन नये परिवेश और नये मुख्यमंत्री के नेतृत्व में होगा. सम्मेलन में जदयू के गांव व बूथस्तरीय कार्यकर्ता आयेंगे. इसमें प्रखंड, जिला और प्रदेश के पदाधिकारी भी शामिल होंगे. इसकी तैयारी को लेकर शनिवार को जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की अध्यक्षता में जिलों के नेताओं की एक बैठक हुई.

बैठक में पार्टी के पदाधिकारियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में कार्यकर्ताओं को लाने को कहा गया. सम्मेलन में शामिल होने के लिए ‘प्रतिनिधि कार्ड’ भी जारी किये गये हैं. हर जिले को ‘प्रतिनिधि कार्ड’ का फॉर्मेट व डिजाइन भेज दिया गया है. इसी कार्ड के आधार पर पटना में होनेवाले राजनीतिक सम्मेलन में इंट्री मिलेगी. बैठक के बाद वशिष्ट नारायण

सिंह ने कहा कि यह कार्यक्रम परिवर्तनकारी होगा और सार्थक होगा. नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने को लेकर वैसे ही कार्यकर्ताओं का उत्साह चरम पर है. इस सम्मेलन के बाद जदयू की एक नयी राजनीतिक तसवीर भी दिखेगी.

भाजपा सत्ता नहीं, विपक्ष में आने की कर रही कोशिश

जदयू के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा के नेता अब नेता प्रतिपक्ष के लिए लड़ रहे हैं. वे आनेवाले समय में भी सत्ता के लिए नहीं विपक्ष में ही आने की कोशिश करेंगे. भाजपा की दोहरी चाल समझ में आ गयी है और उसका परदाफाश हो गया है. भाजपा ने जो षडयंत्र रचा वह सफल नहीं हुआ. जदयू को तोड़ने की कोशिश की गयी.

भाजपा परदे के पीछे से सामने तक आयी. उन्होंने कहा कि जीतन राम मांझी मामले पर भाजपा ने शुरू से रहस्य की स्थिति बनाये रखा. कभी कहा कि यह जदयू का आंतरिक मामला है, कभी कहा कि स्थिति देख कर निर्णय करेंगे, 20 फरवरी को निर्णय होगा और अंत में समर्थन की भी घोषणा कर दी. भाजपा ने मुख्यमंत्री के पद को जाति से जोड़ कर जो अभियान चलाया, वह राजनीति के लिए अच्छी बात नहीं है. बिहार में विकास कार्य छोड़ खरीद-फरोख्त चलने लगा, लेकिन इसका पटाक्षेप हुआ. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में बिना ट्रायल के ही इस्तीफा दे दिया. 10-12 दिन तक राजनीति में गंदगी फैलाने की कोशिश की गयी. ईमान का सौदा करने की कोशिश की गयी, लेकिन विधायकों ने उनके पक्ष में न जा कर यह परिचय दिया कि बिहार की संस्कृति में ऐसा नहीं है.

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