पटनाकला की भाषा समय के साथ बदलती है. भारत के संदर्भ में यह भाषा ज्यादा प्रतिकात्मक है, जिस तरह मुक्तिबोध ने कहा था कि आओ हम शब्दों में नये अर्थ भर दें, उसी तरह कला में कलाकार नित नये बिम्स और उसके अर्थ गढ़ रहे हैं. प्राचीन से लेकर आधुनिक कलाओं के लिए यही कला की भाषा के सत्य हैं. यह बातें कला एवं शिल्प महाविद्यालय बिहार संगीत नाटक अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ शैलेश्वर सती प्रसाद ने कही. वह शनिवार को कैनवास व कला एवं शिल्प महाविद्यालय द्वारा आयोजित कैनवास व्याख्यान श्रृंखला में बोल रहे थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कलाकार व कला एवं शिल्प महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो श्याम शर्मा ने की. उन्होंने कहा कि प्रत्येक कलाकार अपनी सृजन यात्रा में अपनी कला भाषा स्वयं गढ़ता है. कार्यक्रम की शुरुआत विनय कुमार ने की. मंच का संचालन कार्यक्रम के को-ऑर्डिनेटर प्रो अजय कुमार पांडेय ने किया. मौके पर कॉलेज के प्राचार्य प्रो चंद्रभूषण श्रीवास्तव, रजनीश राज, संजय सिंह, विरेंद्र सिंह, डॉ राखी, बीके गुप्ता, प्रो विनोद कुमार, प्रो मजहर इलाही, डॉ रीता शर्मा, डॉ अजय सिंह, डॉ शशि रंजन के अलावा अन्य वरिष्ठ कलाकार व कॉलेज के स्टूडेंट्स मौजूद थे.
समय के साथ बदलती है कला की भाषा (फोटो दिया है)
पटनाकला की भाषा समय के साथ बदलती है. भारत के संदर्भ में यह भाषा ज्यादा प्रतिकात्मक है, जिस तरह मुक्तिबोध ने कहा था कि आओ हम शब्दों में नये अर्थ भर दें, उसी तरह कला में कलाकार नित नये बिम्स और उसके अर्थ गढ़ रहे हैं. प्राचीन से लेकर आधुनिक कलाओं के लिए यही कला […]
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