पटना: बिहार पुलिस की सुस्त चाल और ढीले-ढाले रवैये को लेकर आप चाहे उसे जो भी संज्ञा दें, लेकिन बिहार पुलिस अमानवीय नहीं है. यह कहना है बिहार मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व ओडिशा हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश बिलाल नाजकी का.
उन्होंने कहा कि बिहार पुलिस के काम-काज को लेकर आप चाहे जो भी धारणा रखें, लेकिन आंकड़ों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिहार पुलिस का काम-काज अमानवीय नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि हिरासत में मौत या फर्जी मुठभेड़ के मामले में बिहार पुलिस देश के अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर है.
इस मामले में उसका स्थान देश में 14 वें स्थान पर है, जबकि महाराष्ट्र पहले और उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है. न्यायमूर्ति बिलाल नाजकी ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ों की चर्चा करते हुए कहा कि वर्ष 2011 से लेकर अब तक बिहार में पुलिस हिरासत में हुई मौतों की संख्या महज दो है. इनमें एक मौत वर्ष 2011 में तथा दूसरी मौत वर्ष 2012 में हुई थी. वहीं वर्ष 2013 और 2014 में सूबे में एक भी मौत पुलिस हिरासत में नहीं हुई है.
हालांकि न्यायमूर्ति नाजकी का कहना है कि आयोग में मानवाधिकारों के हनन की सबसे अधिक शिकायतें भी बिहार पुलिस की आती हैं. आयोग को मिलनेवाली कुल शिकायतों में इसकी संख्या 40 प्रतिशत से भी अधिक है, लेकिन ये ऐसे मामले हैं जो किसी अपराध की जांच और उससे संबंधित कार्रवाई के हैं. उन्होंने कहा कि पिछले साल यानी वर्ष 2014 में ही आयोग में मानवाधिकार हनन की कुल 5598 शिकायतें दर्ज करायी गयी हैं, जिनमें केवल पुलिस से संबंधित कुल 2120 मामले हैं. कुछ यही हाल वर्ष 2013 का भी है. तब आयोग में दर्ज कुल 4782 मामलों में पुलिस के खिलाफ 1922 मामले दर्ज किये थे. लेकिन इनमें हिरासत में मौत या फर्जी मुठभेड़ का एक भी मामला नहीं है. आयोग के सदस्य व राज्य के पूर्व डीजीपी नीलमणि ने बताया कि पुलिस के विरुद्ध मिल रही शिकायतों को लेकर आयोग ने राज्य के सभी पुलिस अधिकारियों और पुलिसकर्मियों को मानवाधिकारों के प्रति जागरूक करने का एक कार्यक्रम शुरू किया है.