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बदल गयी परमिनियां गांव की पहचान

कहरा (सहरसा): कल तक परमिनियां की पहचान महज मवेशियों के चारा (भूसा) तैयार करनेवाले गांव के रूप में हुआ करती थी. यह देहाती क्षेत्र इतना उपेक्षित रहा है कि जब राज्य में पंचायत स्तर तक अच्छी सड़कों के होने का डंका पीटा जा रहा है. तब भी इस गांव तक पहुंचने का मार्ग सुगम नहीं […]

कहरा (सहरसा): कल तक परमिनियां की पहचान महज मवेशियों के चारा (भूसा) तैयार करनेवाले गांव के रूप में हुआ करती थी. यह देहाती क्षेत्र इतना उपेक्षित रहा है कि जब राज्य में पंचायत स्तर तक अच्छी सड़कों के होने का डंका पीटा जा रहा है. तब भी इस गांव तक पहुंचने का मार्ग सुगम नहीं बनाया जा सका है.

लेकिन, शनिवार को पति की मौत के बाद जल रही चिता में पत्नी द्वारा कूद जान दे देने की घटना ने सुदूर परमिनियां गांव की पहचान ही बदल दी है. घटना की कहानी सुनने वाले लोग जितने हतप्रभ हो रहे हैं. इस वृद्ध दंपति के प्रति उनकी आस्था भी उतनी ही मजबूत होती जा रही है. गांव भर में दिवा देवी पतिव्रता नारी की पर्याय बन चुकी है. लोगों की जुबान पर बस उसकी ही कहानी तैर रही है. दाह संस्कार स्थल से गुजरने वाले लोगों के सिर श्रद्धा से झुक जा रहे हैं.

साक्षात परमेश्वर समझती थी पति को : रामचरित्र व दिवा की कहानी जानने वाले कहते हैं कि घटना अत्यंत दर्दनाक है. ऐसा होना नहीं चाहिए. लेकिन वे यह भी कहते हैं. जो हो गया, उसे बदला नहीं जा सकता. मिटाया नहीं जा सकता. हां, उससे सीख ली जा सकती है. उसकी पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है. दिवा देवी से जुड़ी रहने वाली गांव की अनार देवी कहती है कि वैसे तो हिंदू धर्म में हर पत्नी अपने पति को परमेश्वर मानती है. लेकिन दिवा उन सबमें भी अलग थी. वह पति को साक्षात देवता समझती थी. कुमोद देवी कहती है कि दोनों दो जिस्म लेकिन एक जान थे. जीते जी एक दूसरे के बगैर अधूरे थे. रामचरित्र के गुजर जाने के बाद दिवा को चंद घंटों के संसार में ही पूरा अकेलापन दिखा और उसने ऐसा कदम उठा लिया. फूलो देवी कहती है कि पति के कैंसर से ग्रसित हो जाने के बाद दिवा का जीवन ईश्वर की भक्ति और पति के चरणों में ही बीतता था. सरस्वती देवी ने कहा कि वह पति को खोने का गम बरदाश्त नहीं कर सकी. पति का अतिरेक प्रेम ही उसे चिता तक खींच लाया.

सती नहीं, इसे समर्पण ही कहिए : पति की जलती चिता में पत्नी का कूद कर जान दे देने की घटना इतिहास की सती प्रथा की ही याद दिलाती है. लेकिन गांव वाले कहते हैं कि इस अनहोनी को सती प्रथा नही, बल्कि पत्नी का पति के प्रति समर्पण ही कहिए. पति व पत्नी के दाह संस्कार स्थल पर मंदिर बनाने की बात पर गांव दो अलग-अलग मतों में बंटा है. एक पक्ष कहता है कि चूंकि दिवा देवी स्वेच्छा से पति की चिता में कूद जान दी है. इसलिए वह सती हुई. यहां सती मंदिर बनने से किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए. दूसरी ओर कुछ लोग कहते हैं कि सती प्रथा इतिहास के पन्नों में दब चुका है. उस पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा हुआ है. सती प्रथा के नाम पर मंदिर बनने से लुप्त हो चुकी प्रथा के पुनजीर्वित होने का खतरा हो सकता है. अंतिम संस्कार स्थल पर स्मारक बने तो उनका सहर्ष समर्थन रहेगा.

क्या है मामला

बीते शनिवार को परमीनियां गांव में पति रामचरित्र मंडल के निधन के बाद पत्नी दिवा देवी ने उसी चिता में कूद कर अपनी जान दे थी. रामचरित्र मंडल पिछले एक साल से कैंसर से पीड़ित था. उनका इलाज टाटा से चल रहा था. लेकिन शनिवार की उसकी मौत हो गयी. पत्नी द्वारा जान देने की घटना की गांव ही नहीं अब हर ओर चर्चा हो रही है.

स्मारक तो बनवायेंगे ही : रमेश

मृतक रामचरित्र मंडल व दिवा देवी के इकलोते पुत्र रमेश मंडल ने बताया कि वे अपने माता-पिता की चिता स्थल पर स्मारक तो बनवाएंगे ही. रमेश कहते हैं कि उनके पिता ने उन्हें जीवन दिया. पाल-पोष व पढ़ा-लिखा कर एक काबिल इनसान बनाया. समाज में प्रतिष्ठा दिलायी. सारी संपत्ति उनकी ही अरजी हुई है. दुनियां से उनके चले जाने के बाद उनकी स्मृति को युग-युगांतर तक जीवित रखने के लिए जो भी करना होगा, करेंगे. रमेश बताते हैं कि उन्होंने अपने माता-पिता का अंतिम संस्कार अपनी जमीन में किया है. वे उस चिता स्थल पर भव्य स्मारक बनवाएंगे. रमेश कहते हैं कि उनके माता-पिता हमेशा से ही उनके लिए पूजनीय रहे थे. अंतिम सांस तक वे पूजनीय बने रहेंगे. विचार बना तो उस स्थल पर एक मंदिर का भी निर्माण कराएंगे.

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