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54 दिन बाद रिपोर्ट, वो भी अधूरी

पटना: दशहरा के मौके पर राजधानी के गांधी मैदान में आयोजित रावण वध कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मामले की जांच रिपोर्ट शुक्रवार को मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को सौंप दी गयी. गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी ने कहा कि उन्होंने शुक्रवार को दशहरा हादसे की जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी है. इस […]

पटना: दशहरा के मौके पर राजधानी के गांधी मैदान में आयोजित रावण वध कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मामले की जांच रिपोर्ट शुक्रवार को मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को सौंप दी गयी. गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी ने कहा कि उन्होंने शुक्रवार को दशहरा हादसे की जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी है.

इस मौके पर जांच कमेटी में शामिल एडीजी (मुख्यालय) गुप्तेश्वर पांडेय भी उनके साथ थे. हालांकि, गृह सचिव ने रिपोर्ट के संबंध में और किसी तरह की जानकारी देने से साफ इनकार कर दिया. शनिवार को गृह सचिव मीडिया को इस संबंध में जानकारी देंगे. तीन अक्तूबर को विजयादशमी के मौके पर मची भगदड़ में 33 लोगों की मौत हो गयी थी और 30 लोग गंभीर रूप से घायल हो गये थे. सूत्रों के अनुसार, जांच कमेटी ने हादसे का मुख्य कारण प्रशासनिक लापरवाही को बताया है. हालांकि रिपोर्ट में किसी वरिष्ठ अधिकारी की भूमिका को चिह्न्ति नहीं किया गया है. इसका प्रशासनिक अर्थ यही लगाया जा रहा है कि इस मामले में वरिष्ठ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों पर न सही, लेकिन निचले स्तर के अधिकारियों पर कार्रवाई तय है. सूत्र बताते हैं कि जांच रिपोर्ट में कार्यक्रम की प्रशासनिक तैयारी पर कई सवाल उठाये गये हैं.

3 नवंबर को पटना हाइकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट को भरोसा दिया था कि दशहरा हादसे की जांच रिपोर्ट 15 दिनों में सरकार को सौंप दी जायेगी. मुख्यमंत्री ने हादसे के अगले ही दिन गृह विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी और अपर पुलिस महानिदेशक (मुख्यालय) गुप्तेश्वर पांडेय की दो सदस्यीय प्रशासनिक जांच कमेटी का गठन कर जांच का आदेश दिया था. जांच टीम ने विगत 7 व 8 अक्तूबर को पटना समाहरणालय में खुली जन सुनवाई का भी की थी, जिसमें 67 प्रत्यक्षदर्शियों और घटना के पीड़ितों का लिखित व मौखिक बयान दर्ज कराया गया था.

गौरतलब है कि हादसे के कुछ दिन बाद ही जांच कमेटी की आरंभिक रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार ने पटना के तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त एन विजयलक्ष्मी, जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा, डीआइजी अजिताभ कुमार और एसएसपी मनु महाराज को पद से हटा दिया था.
ये है रिर्पोर्ट में
प्रशासन को ऐसे धार्मिक आयोजनों में उमड़नेवाली भीड़ का अंदाजा तक नहीं था.
गांधी मैदान के सभी गेटों को भी खोल कर नहीं रखा गया था.
मैदान के रखरखाव को लेकर कई तथ्य पेश किये गये हैं.
गांधी मैदान के सभी मुख्य द्वारों पर बनाये गये ‘काऊ कैचर’ तक को मेंटेन करके नहीं रखा गया था.
मैदान में न तो रोशनी की कोई व्यवस्था की गयी थी और न ही कार्यक्रम समाप्त होने के बाद भीड़ को बाहर निकलने के लिए ही कोई व्यवस्था की गयी थी.
पटना के कुछ तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाये गये हैं. इस कार्यक्रम से मुख्यमंत्री के बाहर निकलते ही तकरीबन सभी वरिष्ठ अधिकारी भी गांधी मैदान से बाहर निकल गये थे.
करीब चार लाख लोगों की सुरक्षा की जिम्मेवारी वहां तैनात निचले स्तर के पुलिसकर्मियों पर थी.
गांधी मैदान में तैनात कई स्टैटिक मजिस्ट्रेट मौजूद नहीं थे.
पीएमसीएच की व्यवस्था पर भी सवाल उठाये हैं. कई घायलों को समय पर इलाज नहीं मिल सका. इसके लिए अस्पताल के बाहर हंगामे को कारण बताया गया है.

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