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परिचितों को एजेंट बना करोड़ों उगाहे

पटना: नॉन बैंकिंग और चिट फंड कंपनियों ने आम लोगों की जेब से पैसे उगाहने के अनोखे तरीके ईजाद कर लिये हैं. नौ साल में 15 गुना और पांच साल में तीन गुना पैसा देने के लोभ में लाखों लोग फंसते चले गये. 1990 के दशक में जब तत्कालीन सरकार ने नॉन बैंकिंग कंपनियों के […]

पटना: नॉन बैंकिंग और चिट फंड कंपनियों ने आम लोगों की जेब से पैसे उगाहने के अनोखे तरीके ईजाद कर लिये हैं. नौ साल में 15 गुना और पांच साल में तीन गुना पैसा देने के लोभ में लाखों लोग फंसते चले गये.

1990 के दशक में जब तत्कालीन सरकार ने नॉन बैंकिंग कंपनियों के प्रति रुख कड़ा किया, तो कंपनियां तो भाग खड़ी हुईं, लेकिन जिन लोगों ने पैसा जमा किया, वे सब हाथ मलते रह गये. एक बार फिर ऐसी कंपनियों ने अपना जाल बिछाया है और लोग इसमें फंसते चले गये. नॉन बैंकिंग कंपनियों के जाल में कम पढ़-लिखे लोग तो फंसे ही हैं, अधिक ब्याज का लालच देकर संपन्न तबके को भी इन कंपनियों ने चूना लगाया है.

चिट फंड कंपनियों के शातिर संचालकों ने कम समय में अधिक पैसे की उगाही के लिए बड़ी और नामी-गिरामी कंपनियों के नामों से मिलती-जुलती कंपनियां बनायीं. उन्होंने स्थानीय लोगों को बेहतर क मिशन का लोभ देकर एजेंट नियुक्त कर लिये. ऐसे लोगों पर निवेशकों का भरोसा देख कंपनियां अपना टारगेट बढ़ाते गयीं. सरकारी बैंकों की बेरुखी ने भी नॉन बैंकिंग कपंनियों का कारोबार बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. रोज सब्जी बेच कर या अन्य छोटी-मोटी दुकानों के जरिये रोजी-रोटी कमानेवालों पर इन कंपनियों की निगाहें गयीं.

इनके पैसे सरकारी बैंक में जमा नहीं होते थे. नॉन बैंकिंग और चिट फंड कंपनियों के स्थानीय एजेंटों ने उनके पैसे नहीं डूबने का भरोसा दिलाया. साथ में कम दिनों में दोगुने या चौगुने होने का लालच भी दिया. गया में कुछ कंपनियों ने रियल स्टेट में निवेश के नाम पर पैसे की उगाही की है. कुछ निवेशकों को शुरुआती दिनों में पैसा वापस भी मिल गया. इसका उदाहरण देकर दूसरे और छोटे- छोटे निवेशकों की जेबों से पैसे निकालने के तरकीब निकाले गये.

छपरा में दीपक ग्रुप ऑफ कंपनी ने लोगों से पहले एक हजार रुपये जमा लिये. प्रत्येक 40 दिनों पर चार सौ रुपये वापस करने क ा लोभ देकर कंपनी पांच करोड से अधिक रुपये वसूल कर चंपत हो गयी. छपरा में विश्वामित्र परिवार इंडिया कंपनी के दफ्तर में छापेमारी की गयी और गलत तरीके से पैसा जमा कराने के आरोप में कुछ कर्मचारी गिरफ्तार भी किये गये. पर, बाद में उन्हें जमानत मिल गयी. खबर है कि कंपनी ने दोबारा गुपचुप तरीके से पैसे उगाहने का काम शुरू कर दिया है. गया में विशाखापतनम की एक कंपनी रियल स्टेट के नाम पर कारोबार कर रही है.

कटिहार से हमारे संवाददाता ने बताया कि नॉन बैंकिंग कंपनियों द्वारा समय-समय पर शहर के बड़े-बड़े होटलों में कई सेमिनार आयोजित किये गये. इनमें कंपनियों के बड़े अधिकारियों ने बेरोजगारों को अधिक कमीशन के सपने दिखाये.ज्यादतर कंपनियां पश्चिम बंगाल से आकर यहां काम कर रही थीं.
इसी प्रकार गया जिले की शेरघाटी में कारोबार कर रही वेलफेयर बिल्डिंग एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड विशाखापतनम में तीन मार्च 1999 से काम शुरू करने का दावा करती है.

इसकी एक शाखा 22 नवंबर, 2003 को शेरघाटी में खुली और ‘रियल एस्टेट’ की योजना के माध्यम से निवेशकों से रुपयों की वसूली हुई है. फिलहाल इस कंपनी की दो फ्रेंचाइजी शाखाएं शेरघाटी अनुमंडल के इमामगंज व बाराचट्टी प्रखंडों में भी कारोबार चला रही हैं. इस कंपनी से करीब 16 हजार लोगों का हित जुड़ा है. करीब पांच हजार लोग सक्रिय रूप से कंपनी के लिए बाजार से रुपये की उगाही कर रहे हैं.

खास बात यह कि निवेशकों को अधिक ब्याज का ऐसा भ्रमजाल दिखाया कि अब तक किसी ने इनके खिलाफ औपचारिक तौर पर शिकायत दर्ज नहीं करायी है.

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