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मुख्यमंत्री जी! ऐसा है आपका पीएमसीएच

डॉक्टरों की कमी, बेड, वार्ड व बाथरूम में गंदगी का आलम, नहीं मिलतीं दवाएं, नर्सिग का भी अभाव जेनरल सजर्री : नहीं दी जाती हैं अधिकतर दवाएं जेनरल सजर्री विभाग में अधिकतर दवाएं मिलती ही नहीं. इन्हें बाहर से मंगाना पड़ता है. कुछ यूनिट ऐसे भी हैं, जो अस्पताल की दवा लिखते ही नहीं हैं. […]

डॉक्टरों की कमी, बेड, वार्ड व बाथरूम में गंदगी का आलम, नहीं मिलतीं दवाएं, नर्सिग का भी अभाव
जेनरल सजर्री : नहीं दी जाती हैं अधिकतर दवाएं
जेनरल सजर्री विभाग में अधिकतर दवाएं मिलती ही नहीं. इन्हें बाहर से मंगाना पड़ता है. कुछ यूनिट ऐसे भी हैं, जो अस्पताल की दवा लिखते ही नहीं हैं. अभी चार यूनिट चलते है, जिसमें प्रोफेसर 1, सहायक प्रोफेसर 7, सह प्रोफेसर 3, रेजिडेंट डॉक्टर 17 व जूनियर डॉक्टर 51 हैं, जो एमसीआइ के मानक से बहुत कम है. रोजाना औसतन 16 मरीजों को ऑपरेशन होता है.
शिशु रोग : बेड महज 20 भरती होते हैं 40 बच्चे
न्यूनेटल इंटेनसिव केयर यूनिट में 20 बेड हैं, लेकिन भरती बच्चों की संख्या 40 से अधिक होती है. ऐसे में अगर एक बार में सभी बच्चों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ जाये, तो मुश्किल होगी. इसमें कम-से-कम 50 बेड होने चाहिए. चिकित्सकों के बैठने की जगह पंखा नहीं है. सुरक्षा कर्मियों की तैनाती तो है, पर वे ड्यूटी से गायब रहते हैं, जिसके कारण एक मरीज के साथ 15 लोग इमरजेंसी में घुस जाते हैं.
कैंसर विभाग : बंद पड़ी है कोबाल्ट मशीन
कई पद सालों से रिक्त हैं. कोबाल्ट मशीन बंद पड़ी है. तीन डॉक्टरों के सहारे मरीजों का इलाज होता है. 15 वार्ड ब्वाय की जरूरत है, लेकिन एक महिला थी, जिसका भी निधन हो गया. हर शिफ्ट के लिए महज दो नर्स हैं, जबकि 20 चाहिए.
क्लर्क भी डेपुटेशन पर काम कर रहा है. असिस्टेंट प्रोफेसर के दो, लेडीज डॉक्टर के दो, सीनियर रेजिडेंट के तीन, आरएसओ के दो, टेक्नीशियन के चार पद खाली हैं. कोबाल्ट मशीन चलानेवाला कोई नहीं. ब्रेकीथेरेपी मशीन व लिनियर एक्सीलेटर के लिए कई बार लिखा गया, पर नहीं आया. रेडिएशन के लिए आइजीआइएमएस, रिम्स, चितरंजन व बोकारो रेफर किया जाता है.
नेत्र रोग : आइ ड्रॉप तक नहीं दिया जाता
नेत्र विभाग में ऑपरेशन कराने आये मरीजों को जांच के लिए राजेंद्रनगर अस्पताल भेजा जाता है, क्योंकि जांच के नाम पर यहां कुछ नहीं है. नेत्र विभाग में महज चश्मे की जांच होती है. यहां लेजर मशीन बहुत पुराना है. रेटिना जांच कराने के लिए विभाग में कोई व्यवस्था नहीं की गयी है. मशीन खराब होने की वजह से मोतियाबिंद का ऑपरेशन फेको विधि से डेढ़ साल से बंद है. लेजर पुराना होगा गया है. आइ ड्रॉप तक नहीं मिलता है. ओटी का एसी खराब है, जिसे बनाया जा रहा है. अल्ट्रासाउंड व एक्सरे नहीं है.
स्त्री रोग : भोथरी कैंची से होता है ऑपरेशन
भोथरी कैंची के सहारे डॉक्टर हर दिन लगभग 10 से अधिक ऑपरेशन करते हैं. ओटी को स्टेलाइज करने का भी कोई मानक नहीं बनाया गया है. इसके कारण मरीजों में संक्रमण होने की आशंका बनी रहती है. दवा नहीं रहने के कारण ओटी के दौरान मरीजों को बाहर से दवा लानी पड़ती है. यहां तक कि ब्लेड व सीरिंज तक बाहर से लाते हैं परिजन. आइसीयू में मॉनीटर खराब है. दो-दो ओटी व लेबर रूम की और जरूरत है. औजार लगभग 20 साल पुराने हैं. कभी-कभी ओटी में जाने के लिये चिकित्सकों को गाउन कम पड़ जाते हैं. ओटी के टेबल पर कीड़े चलते हैं.
यूरोलॉजी विभाग : सप्ताह में तीन दिन ही ऑपरेशन
बेड पर गंदी चादरें रहती हैं. अस्पताल की तरफ से दिये जानेवाले खाने में गड़बड़ी. ओटी एक है, जो सप्ताह में मात्र तीन दिन चलता है. ऑपरेशन के पूरे औजार नहीं हैं. यूरोलॉजी में अब नयी तकनीक आ गयी है, जिसके तहत दूरबीन से देख कर ही ऑपरेशन होता है, लेकिन विभाग में यह सुविधा नहीं है. सीनियर व जूनियर मिला कर कम-से-कम 17 चिकित्सकों की और जरूरत है. सीनियर डॉक्टरों का इवनिंग राउंड नहीं होता है. जूनियर डॉक्टरों व नर्सो के भरोसे ही मरीजों को रहना पड़ता है.
प्लास्टिक सजर्री : बिना पैसा लिये नहीं करते ड्रेसिंग
प्लास्टिक सजर्री विभाग में भरती मरीजों के परिजनों से डॉक्टर बाहर से दवा मंगवाते हैं और ड्रेसर पैसा लेकर दो दिनों पर ड्रेसिंग करते हैं. विभाग में भरती मरीजों को नाश्ते के अलावा कुछ नहीं दिया जाता है और दवा के नाम पर एक या दो इंजेक्शन. इसके बाद की सभी दवाइयां बाहर से लानी पड़ती हैं. सीनियर डॉक्टर सुबह में राउंड लेते हैं और शाम में गायब रहते हैं, लेकिन जूनियर शाम में भी घूमते-घूमते आ जाते हैं. मरीज अपना पंखा लेकर लाते हैं.
14 में पांच पद खाली
– एसोसिएट प्रोफेसर : पद 3, 1 खाली
– असिस्टेंट प्रोफेसर : पद 3, 3 खाली
– सीनियर रेसिडेंट : पद 3, 1 खाली
क्या है जरूरत
– बर्न बेड : 42 , चाहिए 100
– आइसीयू : बेड 6, चाहिए 12
– बर्न ओटी : 1
– बर्न ड्रेसिंग रूम : 1
– वार्ड : 36 बेड , चाहिए 75
फटकार का भी कोई असर नहीं
पटना : मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के दौरे के 18 घंटे बाद भी पीएमसीएच की हालत में सुधार नहीं हुआ है. सीएम की कड़ी टिप्पणी के बावजूद स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर न तो डॉक्टर सजग हैं और न ही अधिकारी. स्थिति यह है कि इमरजेंसी से लेकर वार्डो के बाथरूम तक में गंदगी, बेड, साफ-सफाई, दवा आदि से जुड़ीं समस्याएं जस-की-तस बनी हैं.
हालांकि इमरजेंसी वार्ड में सोमवार को सफाई की जा रही थी, लेकिन बेडशीट व शौचालय सब गंदे पड़े हुए हैं. हां, सीएम के डर से सभी वार्ड के विभागाध्यक्ष अपने चेंबर में मौजूद दिख रहे थे, लेकिन डॉक्टर राउंड नहीं लगा रहे थे.
गंदे पड़े हैं बाथरूम व शौचालय : सीएम ने पीएमसीएच में सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने की बात कही थी, लेकिन सोमवार को यह पूरी तरह से चौपट नजर आयी. अस्पताल में मेडिकल वेस्ट और कूड़े-कचरे का समुचित ढंग से निस्तारण नहीं होने से उससे दरुगध उठ रही है. खास बात तो यह है कि इमरजेंसी वार्ड के जिस शौचालय को सीएम ने देखा था, उसे तो चकचका दिया गया, पर बाकी वार्डो के शौचालय व बाथरूम में अभी भी गंदगी ही गंदगी है. वैसे शौचालयों में मरीज भी जाने से कतराते हैं.
बेडशीट बदलने का दावा भी कागजी : रोजाना बेडशीट बदलने के दावे भी पीएमसीएच में खोखले साबित होते जा रहे हैं. गंदी बेडशीट और फटे बेड को देख कर सीएम मांझी काफी नाराज हुए थे. एक दिन गुजर जाने के बाद भी इमरजेंसी, यूरोलॉजी और राजेंद्र नगर सजिर्कल ब्लॉक के अधिकतर वार्डो में बेडशीट बदले नहीं गये हैं. हालांकि इमरजेंसी वार्ड के कुछ बेडों की चादरें बदली गयी हैं, लेकिन बाकी की स्थिति जस की तस है. यही नहीं रंगों के हिसाब से प्रतिदिन चादर बदलने के आदेश पर तो किसी का ध्यान ही नहीं है.

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