पटना : पद्म पुरस्कारों में बिहार की आठ हस्तियों को भी शामिल किया गया हैं. इनमें कला, समाज सेवा, विज्ञान व इंजीनियरिंग और मेडिसिन के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य कर अपना पूरा जीवन समाज की बेहतरी के लिए समर्पित करनेवालों को शामिल किया गया है.
पद्म विभूषण
जॉर्ज फर्नांडिज (मरणोपरांत) : कामगारों की हड़ताल करा कर हिला दी थी सरकार की कुर्सी

कर्नाटक के मैंगलोर में 1930 को जन्मे जॉर्ज फर्नांडिस श्रमिक संगठन के भूतपूर्व नेता और पत्रकार थे. राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य रह चुके जॉर्ज फर्नांडिस ने समता पार्टी की स्थापना की थी. 14वीं लोकसभा में वह बिहार के मुजफ्फरपुर से जेडीयू के टिकट पर सांसद चुने गये थे. एनडीए की सरकार में वह 1998 से 2004 तक देश के रक्षा मंत्री रहे. इसके अलावा वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में संचारमंत्री, उद्योगमंत्री और रेलमंत्री के रूप में भी योगदान दे चुके हैं. साल 1973 में 'ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन' के चेयरमैन चुने जाने के बाद रेलवे कामगारों की मांगों को लेकर जॉर्ज फर्नांडिस ने मई, 1974 में रेल कर्मियों की देशव्यापी हड़ताल का आह्वान कर रेल का चक्का जाम कर दिया. बाद में इलेक्ट्रिसिटी और ट्रांसपोर्ट वर्कर्स के साथ-साथ टैक्सी चालको के जुड़ जाने से केंद्र सरकार की कुर्सी हिलने लगी. केंद्र सरकार ने आंदोलन को कुचलते हुए जॉर्ज फर्नांडिस समेत 30 हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इसका असर चुनाव पर पड़ा और इंदिरा गांधी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. साल 1977 में आपातकाल हटा लिये जाने के बाद अनुपस्थिति में ही बिहार के मुजफ्फरपुर से जीत दर्ज कर केंद्रीय मंत्री बने.
पद्मश्री
डॉ सुजॉय के गुहा : पुरुषों के लिए बनाया बेहतरीन गर्भनिरोधक

विज्ञान एवं इंजीनियरिंग क्षेत्र में किये गये रिसर्च को लेकर डॉ सुजॉय गुहा आइआइटी खड़गपुर से बीटेक करने के बाद मेडिकल रिसर्च को ही अपनी जिंदगी माना और तमाम बाधाओं को पार करते हुए वह पुरुषों के इस्तेमाल होनेवाले एक बेहतरीन गर्भनिरोधक को बनाने में सफल रहे. इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बेहतरीन करियर और विदेश में नौकरी को तवज्जो नहीं देते हुए गुहा मेडिकल रिसर्च से जुड़े रहे. पटना निवासी डॉ सुजॉय गुहा ने संत जेवियर्स स्कूल, गांधी मैदान से स्कूली शिक्षा प्राप्त की. विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ गुहा आज मेडिकल रिसर्च के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम बन चुके हैं. इनके द्वारा बनाये गये पुरुषों के इस्तेमाल में आनेवाले गर्भनिरोधक का इस्तेमाल जनसंख्या नियंत्रण में मददगार हो सकता है.
बिमल कुमार जैन : 35 हजार कृत्रिम पैर लगवाये

समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम के लिए राजधानी पटना के विमल कुमार जैन पिछले 25 वर्षों से दिव्यांगों को नयी जिंदगी देने के लिए मेहनत कर रहे हैं. इनके प्रयासों से ही अब तक करीब 35 हजार कृत्रिम पैर लगाये जा चुके हैं. पोलियो ग्रस्त या किसी अन्य तरह की दिव्यांगता के शिकार करीब आठ हजार बच्चों का ऑपरेशन करा चुके हैं. राजधानी पटना में इनका भारत विकास एवं समय आनंद अस्पताल है. इस अस्पताल के जरिये वह दिव्यांगों की मदद करते हैं. वह नि:शुल्क सुविधा मुहैया कराते हैं. साथ ही दधीचि देह दान समिति के माध्यम से वह नेत्रदान और अंगदान के क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं. वह कहते हैं कि जेपी के कथन ने मुझे प्रभावित किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सत्ता नहीं समाज बदलना है.
शांति जैन : छह वर्ष से लेखन और 32 किताबें प्रकाशित

राज्य की मशहूर साहित्यकार और लोक गायिका प्रो डॉ शांति जैन की पिछले करीब 22 वर्षों में देश-विदेश में बिहार की गौरव गाथा बताते बिहार गौरव गान की तीन हजार प्रस्तुतियां हो चुकी हैं. प्रो डॉ शांति जैन एचडी जैन कॉलेज आरा में संस्कृत की शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं. वह छह वर्ष की उम्र से ही लेखन कर रही हैं. अब तक उनकी लिखीं 32 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. इनकी पहली पुस्तक 'चैती' के लिए 1983 में राजभाषा सम्मान मिला था. 2006 में केके बिड़ला फाउंडेशन का शंकर सम्मान मिला. लोक संगीत के गायन के लिए 2009 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार इन्हें मिल चुका है.
डॉ शांति राय चिकित्सा : 79 की उम्र में करती हैं 12 घंटे इलाज

बिहार की मशहूर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ शांति राय 79 साल की उम्र में भी वह सुबह 11 से रात 11 बजे तक रोजाना 12 घंटे तक काम करती हैं. डॉ शांति राय से इलाज कराने के लिए बिहार के दूर-दराज से मरीज आते हैं. मरीजों के इलाज को ही अपनी जिंदगी का मकसद माननेवाली डॉ राय के लिए चिकित्सक बनना आसान नहीं था. मूलरूप से गोपालगंज जिले की रहनेवाली शांति राय की स्कूली शिक्षा से लेकर मेडिकल तक की पढ़ाई में कई बाधाएं आयीं. लेकिन, परिवार के सहयोग से वह आगे बढ़ती गयीं. अपने परिवार की पहली डॉक्टर बनने में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. वह बताती हैं कि उनकी शिक्षा में उनके दादा यमुना सिंह का बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया.
श्याम सुंदर शर्मा : विदेशी गैलरियों में छोड़ी छापा चित्रों की छाप

श्याम सुंदर शर्मा सूबे के प्रसिद्ध छापा चित्रकार हैं. श्याम सुंदर शर्मा पटना आर्ट एंड क्राफ्ट कॉलेज के प्राचार्य भी रह चुके हैं. पद्मश्री से पहले भी वह कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं. उनके बनाये छापा चित्रों की प्रदर्शनी देश के विभिन्न प्रदेशों के साथ-साथ विदेश की चर्चित गैलरियों में लगायी जा चुकी हैं. आज भी वह नियमित रूप से पेंटिंग बनाते हैं. घर पर ही इनका अपना आर्ट स्टूडियो भी है. वह चित्रकार के साथ-साथ लेखक भी हैं. बिहार में कला के विभिन्न आयामों पर उनकी कई पुस्तकें छप चुकी हैं. डॉ शर्मा कहते हैं कि पद्मश्री सम्मान पूरे बिहार की कला और कलाकारों का सम्मान है. यह कला से जुड़ी आस्था का सम्मान है. समाज से जुड़े रह कर काम करने का सम्मान है.
डॉ रामजी सिंह : भागलपुर की मिट्टी को समर्पित किया पद्मश्री

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को देश-विदेश में फैलानेवाले और अंगिका भाषा के लिए संघर्ष करनेवाले 94 वर्षीय डॉ रामजी सिंह को पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा से अंग प्रदेश का गौरव बढ़ गया है. सादगी के प्रतिमूर्ति माने-जानेवाले रामजी बाबू ने अपनी जिद से संपूर्ण भारत में गांधी विचार की पढ़ाई शुरू करा दी. वह भागलपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद भी चुने जा चुके हैं.देश के पहले गांधी विचार विभाग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले और विभाग के संस्थापक अध्यक्ष डॉ रामजी सिंह ने विभाग को करीब 5000 पुस्तकें जर्नल विभाग को दान में दे चुके हैं. इनमें कई दुर्लभ पुस्तकें भी शामिल हैं. इनमें साल 1909 में जोसफ जे डोक द्वारा लिखी पुस्तक 'एमके गांधी' भी शामिल है. इसके अलावा रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखी पुस्तक 'महात्मा गांधी' पुस्तक भी डॉ रामजी सिंह दान में चुके हैं. गांधी विचार विभाग में उनके नाम पर डॉ रामजी सिंह पीठ की स्थापना भी की जा चुकी है. पुरस्कार मिलने पर डॉ रामजी सिंह ने कहा कि यह भागलपुर की मिट्टी को का सम्मान है.
वशिष्ठ नारायण सिंह (मरणोपरांत) : आइंस्टीन के सापेक्ष के सिद्धांत को दी थी चुनौती

आइंस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देनेवाले सिजोफ्रेनिया से पीड़ित महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह को मरणोपरांत पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है. पटना के कुल्हड़िया कांपलेक्स में जीवन के अंतिम क्षणों में रहे. बिहार के महान गणितज्ञ का अंतिम समय तक सबसे अच्छा दोस्त किताब, कॉपी और पेंसिल ही बना रहा. गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह शैक्षणिक जीवनकाल में भी कुशाग्र रहे हैं. पटना साइंस कॉलेज से पढ़ाई करनेवाले वशिष्ठ गलत पढ़ाने पर गणित के अध्यापक को बीच में ही टोक देते थे. पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे कैली उन्हें अमेरिका ले गये. वहीं, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से ही उन्होंने पीएचडी की डिग्री ली और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बन गये. उन्होंने नासा में भी काम किया. वतन की याद आने पर वह भारत लौट आये. उन्होंने आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और आईएसआई कोलकाता में भी योगदान दे चुके थे.