पटना: राहुल गांधी की अर्थव्यवस्था की समझ इतनी ही है कि उन्हें पूंजी के पारदर्शी हस्तांतरण में भी चोरी नजर आती है, लेकिन त्योहारों से पहले रोजगार बढ़ाने के केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के साझा उपाय नजर नहीं आते. कांग्रेस मंदी की आशंका को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती है, भय का वातावरण बनाती है और दूसरी तरफ सुधार के उपायों पर छाती भी पीटती है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राफेल विमान खरीद में चौकीदार को चोर बताने का खामियाजा भुगतने के बाद भी राहुल ने बेहतर शब्दों का चयन करना नहीं सीखा.
रिजर्व बैंक ने पूर्व गवर्नर विमल जालान के नेतृत्व वाली कमेटी की सिफारिश पर अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए स्थायी कोष से 1.76 लाख करोड़ रुपये सरकार को देने का जो फैसला किया, उससे मंदी का अंदेशा दूर होगा, लोगों की नौकरियां नहीं जायेंगी और बैंक लोन सस्ता होने से घर-वाहन खरीदना आसान होगा. वाहन और निर्माण सेक्टर में तेजी आने से भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे.
लोकसभा चुनाव में राजद का सूपड़ा साफ होने के बाद जब पार्टी सामान्य वर्ग के गरीबों को रिजर्वेशन देने का विरोध और सर्जिकल स्ट्राइक पर सेना के शौर्य का सबूत मांगने और धारा 370 हटाने का विरोध करने जैसे रुख में बदलाव नहीं ला सकी, तब उसके सदस्यता अभियान का कोई मतलब नहीं. संगठन कागज की पर्चियों से नहीं, ज्वलंत मुद्दों पर जनता का विश्वास जीतने से चलता है. राजद और कांग्रेस जैसी पार्टियां अपने अहंकार में जनमत का आदर करना छोड़ चुकी हैं.