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बिहार में मृत्यु दर का आंकड़ा राष्ट्रीय मृत्यु दर से हुआ कम

पटना : बिहार ने मृत्यु दर पर अंकुश लगाने में बड़ी सफलता पायी है. राज्य में प्रति हजार लोगों में होने वाली मृत्यु दर 5.8 हो गयी है. यह राष्ट्रीय आंकड़े प्रति हजार 6.3 से नीचे चला गया है. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से राज्य में शिशु मृत्यु दर की संख्या में भी गिरावट […]

पटना : बिहार ने मृत्यु दर पर अंकुश लगाने में बड़ी सफलता पायी है. राज्य में प्रति हजार लोगों में होने वाली मृत्यु दर 5.8 हो गयी है. यह राष्ट्रीय आंकड़े प्रति हजार 6.3 से नीचे चला गया है. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से राज्य में शिशु मृत्यु दर की संख्या में भी गिरावट दर्ज की गयी है. अब राज्य में शिशु मृत्यु दर में तीन अंक की गिरावट दर्ज करते हुए 35 हो गयी है.

यानी की प्रति हजार जीवित जन्म लेने वाले शिशुओं में एक साल में 35 बच्चे की मौत हो रही है. यह आंकड़ा राष्ट्रीय प्रति हजार 33 शिशुओं की मौत से थोड़ा ऊपर है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) 2019 बुलेटिन में आंकड़ा जारी किया गया है. 2017 का एसआरएस बुलेटिन मई 2019 में जारी किया गया है.
स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने बताया कि राज्य में शिशु मृत्यु दर 2016 में प्रति हजार 38 थी, जो ताजा आंकड़ों के अनुसार घटकर 35 पर आ गयी है. प्रति हजार मृत्यु दर में भी बिहार में कमी आयी है. 2016 में प्रति हजार लोगों में होने वाली मौत 6.0 थी, जो अब घटकर 5.8 हो गयी है. यह औसत राष्ट्रीय मृत्यु दर कम है. इसके साथ ही प्रति हजार होने वाला जन्म दर भी 26.8 से घटकर 26.4 हो गयी है.
कुमार ने बताया कि बिहार की शिशु मृत्यु दर में 3 प्वाइंट की कमी दर्ज की गयी है. यह एक बड़ी उपलब्धि है. इसके साथ ही जेंडर आधारित भेदभावपूर्ण में भी कमी आयी है. 2016 में लड़कों की शिशु मृत्यु दर 31 एवं लड़कियों की 46 थी. दोनों के बीच 15 प्वाइंट का अंतर था, जो 2017 में घटकर यह अंतर महज तीन प्वाइंट का रह गया है. उन्होंने बताया कि शिशु मृत्यु दर में आयी गिरावट के पीछे राज्य में प्रसव पूर्व होने वाले जांच में हुए गुणात्मक सुधार एक महत्वपूर्ण कारण है. जांच के दौरान ही जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं की पहचान कर ली जाती है और उनका विशेष देखभाल किया जाता है.
दूसरी बात यह है कि बिहार में प्रतिरक्षण (टीकाकरण) की सुविधा भी बेहतर हुई है. राज्य में टीकाकरण का कवरेज 84 प्रतिशत है. साथ ही सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में बाल चिकित्सा गहन देखभाल इकाई (पिकू) एवं जिला अस्पतालों में बीमार नवजातों की देखभाल के लिए एसएनसीयू (सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट) है. लड़कियों की शादी की उम्र में हुई बढ़ोतरी जैसे सामाजिक कारक भी इसमें सहायक हैं.

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