मिथिलेश
पटना : हला आम चुनाव था. दरभंगा सेंट्रल की सीट पर कांग्रेस के श्रीनारायण दास उम्मीदवार थे. उनके मुकाबले सोशलिस्ट पार्टी ने रामनंदन मिश्र को प्रत्याशी घोषित किया था. स्वतंत्रता आंदोलन में कई बार जेल गये श्रीनारायण दास की गिनती उन दिनों बिहार कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में होती थी. दूसरी ओर रामनंदन मिश्र की पहचान देश के चोटी के समाजवादी नेताओं में थी. चुनाव में दोनों नेताओं के बीच जबर्दस्त मुकाबला हुआ. पर, चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में रहा.
सादगी की मिसाल थे श्रीनारायण
दरभंगा जिले के वर्तमान केउटी ग्राम के मूल निवासी श्रीनारायण दास सादगी के मिसाल थे. उन्होंने राजनीति में आने से पहले कई सरकारी नौकरी छोड़ दी थी. स्वतंत्रता संग्राम के कई आंदोलनों में शामिल रहे श्रीनारायण दास दरभंगा से लगातार 1967 तक सांसद रहे. पहले आम चुनाव के बाद 1957 और 1962 के लोकसभा चुनावाें में श्री नारायण दास ने कांग्रेस को भारी मतों से जीत दिलायी.
यहां तीनों चुनाव में उनके मुकाबले सोशलिस्ट पार्टी पराजित हुई. कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के कारण श्रीनारायण दास को 1967 के आम चुनाव में दरभंगा की बजाय जयनगर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया. यहां उनकी टक्कर भाकपा के भोगेंद्र झा से हुई. भोगेंद्र झा की जीत हुई और करीब एक लाख वोट पाकर भी श्री नारायण दास पराजित हो गये. इसके बाद श्री नारायण दास ने अपने को सक्रिय राजनीति से अलग कर बाकी जीवन पढ़ने-लिखने में बिताया.
…श्रीनारायण दास ने राजनीति में आने से पहले कई सरकारी नौकरियां छोड़ दी थीं. स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों में शामिल रहे दास दरभंगा से लगातार 1967 तक सांसद रहे.
दास भीड़ जुटाने वाले नेता थे
इलाके के लोग बताते हैं कि श्रीनारायण दास को भीड़ खींचने में महारत हासिल थी. एक चुनावी सभा में वे रात के आठ बजे मंच पर पहुंचे थे.
जब लोगों को पता चला कि श्रीनारायण दास आ गये हैं तो भीड़ दोबारा मंच के इर्द-गिर्द जमा हो गयी. 1937 के चुनाव में भी उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. महात्मा गांधी से प्रभावित श्रीनारायण दास ने बिहार में सभी प्रमुख आंदोलनों में शामिल हुए. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे दरभंगा जेल में बंद थे. अब उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति राजनीति में सक्रिय नहीं है. पर, दरभंगा के लोगों के जेहन मेें अभी भी श्रीनारायण दास की यादें ताजा हैं.