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मॉनसून कमजोर : मौसम में इस साल लगातार हो रही उठापटक, जनजीवन प्रभावित

मौसम विभाग की ओर से इस साल मॉनसून के दौरान प्रदेश में अच्छी बारिश होने का अनुमान धरा का धरा रह गया. सारे अनुमानों को दगा देते हुए बदरा बिहार का रुख नहीं कर रहे हैं. क्लाइमेट चेंज की जो मार खेती पर पड़ी है, वह आगे चल कर जीवन के हर स्तर पर भारी […]

मौसम विभाग की ओर से इस साल मॉनसून के दौरान प्रदेश में अच्छी बारिश होने का अनुमान धरा का धरा रह गया. सारे अनुमानों को दगा देते हुए बदरा बिहार का रुख नहीं कर रहे हैं. क्लाइमेट चेंज की जो मार खेती पर पड़ी है, वह आगे चल कर जीवन के हर स्तर पर भारी पड़ सकती है. पशुओं के चारे के अभाव से लेकर इंसानों की रसोई पर भी इस क्लाइमेट चेंज का प्रभाव पड़ेगा.
पटना : जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज ) ने बिहार को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. दरअसल बिहार की समूची अर्थव्यवस्था खेती पर आधारित है. जलवायु परिवर्तन का सीधा असर मौसमी दशाओं पर पड़ा है. मॉनसून से लेकर सर्दी एवं गर्मी तक का नेचर बदल गया है. लिहाजा खेती का परंपरागत पैटर्न और उसका उत्पादन कभी भी धड़ाम हो सकता है. जिसके संकेत मिलने लगे हैं.
अर्थव्यवस्था प्रभावित
क्लाइमेट चेंज ने खासतौर पर बिहार की समूची आबोहवा को प्रभावित किया है. जिसके चलते बिहार की अर्थव्यवस्था के कई पहलुओं को बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इसी साल बिहार में करीब दस लाख मीट्रिक टन से अधिक मक्का का उत्पादन प्रभावित हुआ है़ दरअसल क्लाइमेट चेंजिंग के चलते बालियों में बीज जमाव नहीं हो पा रहा है़ जिसके चलते बिहार में मक्का एवं गेहूं के उत्पादन पर सबसे ज्यादा प्रभाव हुआ है़ हालांकि शासन लगातार रकबा बढ़ाने में लगा है,इसलिए उसके उत्पादन का असर सीधे तौर पर नहीं दिखाई दे रहा,लेकिन यह एक सच्चाई है कि रबी फसलों का बरसाती मक्का एवं गेहूं उत्पादन पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ा है़ जानकारों के मुताबिक रबी सीजन में शीत का स्पेल छोटा और घातक है,लेकिन न्यूनतम तापमान अधिक हो गया है़ दरअसल हीटिंग के चलते मिट्टी में पाये जाने वाले कार्बनिक पदार्थ नष्ट हो रहे हैं. दानों की चमक बुरी तरह प्रभावित हुई है़
हॉर्टीकल्चर साइंटिस्टों केमुताबिक वैज्ञानिकों के मुताबिक
मौसम में इस साल लगातार हो रही उठापटक के चलते फलों पर यह असर पड़ रहा है. दरअसल बिहार के रस भरे फलों के लिए शुष्क हवाओं की जरूरत होती है. पिछले तीन-चार साल में अप्रेल और मई माह में जहां तपना चाहिए. वहां मौसम नमी युक्त है. इस साल अप्रेल माह के उत्तरार्ध और मई माह में हवा में नमी की मात्रा 35-40 फीसदी होनी चाहिए, वहां इसकी मात्रा 70-80 फीसदी के बीच चल रही है. अधिकतम तापमान बढ़ा है,लेकिन न्यूनतम तापमान बेहद असाधारण है.
एक्सपोर्ट पर बुरा असर
क्लाइमेट चेंजिंग के चलते बिहार के फलों में सबसे ज्यादा प्रख्यात लीजी एवं जरदालू आम की गुणवत्ता प्रभावित हुई है़ जरदालू आम का इसी साल जीआर्इ मिला है़ अगर जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में असफलता मिली तो निश्चित तौर पर बिहार की अर्थ व्यवस्था पर सीधा सर पड़ेगा़ दरअसल उत्पादन गिरेगा़ इसी साल आम के उत्पादन में करीब तीस फीसदी कमी आयी है़ आम का उत्पादन बमुश्किल से दस लाख मीट्रिक टन से नीचे आ गया है़ डा राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के सीनियर साइंटिस्ट डा सत्तार के मुताबिक जबरदस्त गर्मी एवं अनियमित बारिश ने फलों की मिठास एवं आकार दोनों को प्रभावित किया है़
दुधारू पशुओं पर जबर्दस्त असर
एक्सपर्टस के मुताबिक पिछले पांच-छह साल से गर्मियों में लू की जगह उमस भरे वातावरण में इजाफा हुआ है़ दरअसल दरअसल दुधारू पशुओं के हार्मोंस प्रभावित हो रहे हैं. वह इन दिनों कम खा भी कम रहे हैं. डॉ राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विवि में क्लाइमेट चेंज पर अध्ययन और उससे निबटने के लिए नेशनल इनोवेशन यूनिट का अध्ययन शुरू किया है.
ड्राई स्पेल बने मुसीबत, पानीदार फसलों से तौबा करने का वक्त
बिहार में क्लाइमेट चेंज के कुछ खास लक्षण
माॅनसूनी माह कहे जाने वाले जून और जुलाई की जगह बारिश मई माह में शिफ्ट हो रही है. इस साल बिहार में मई माह में रिकाॅर्ड बारिश हुई है.ऐसा पिछले तीन से चार सालों से हो रहा है. इन दिनों बदलाव चरम पर है. –
रबी सीजन में मौसम में अप्रत्याशित बदलाव आया है. परंपरागत तापमान छिन्न-भिन्न हो गया है. कृषि पर असर पड़ेगा.
रबी के सीजन में मौसमी अप्रत्याशित बदलावों के मद्देनजर कृषि वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि अब खेती मानसून आधारित नहीं मौसम आधारित की जाये.
जलवायु परिवर्तन की चपेट में बिहार बुरी तरह फंसा है. इसको बिहार सरकार भी मुखर होकर स्वीकार कर रही है. दरअसल जलवायु परिवर्तन से बिहार की अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाने की आशंका पैदा हो गयी हैं. लिहाजा सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए बाकायदा बजट भी आवंटित किया है. बिहार सरकार ने इस साल 68000 करोड़ रुपये आवंटित भी किये हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से मॉनसून का बिहैवियर असंतुलित हो गया है. इसके चलते कोई सटीक भविष्यवाणी करना मुश्किल हो रहा है़ हालांकि अनुमान है कि प्रदेश में औसत बारिश होगी. किसानों को अब खेती का पैटर्न बदलने को तैयार रहना चाहिए. दक्षिण बिहार जो क्लाइमेट चेंजिंग के भंवर में सबसे ज्यादा फंसा है, उसे दलहनी फसलों पर आ जाना चाहिए. अरहर और सोयाबीन अच्छे विकल्प हैं. उत्तरी बिहार को शार्ट ड्यूरेशन वाली धान पर भरोसा करना होगा.
-डॉ ए सत्तार, वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक , डाॉराजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विवि, समस्तीपुर
बिहार की वर्तमान मौसमी एवं जलवायुविक दशाएं अनियमित और अस्थिर हैं. काले घने बादल बारिश की आस जगा कर भागे चले जा रहे हैं. इन हालातों में बिहार की खेती इस साल बुरी तरह पिछड़ चुकी है. सही मायने में खेती के लिहाज से नाजुक दौर में फंसे बिहार के लिए सबसे बड़ी चुनौती मनमौजी माॅनसून है. इसके चलते बिहार में ड्राइ स्पेल (बारिश के लिहाज से शुष्क दौर) लगातार बढ़ रहे हैं.
इस दौर में खासतौर पर अधिक पानी वाली फसलों मसलन धान के लिए संकट खड़ा हो गया है. जलवायु एवं मौसम विज्ञानी किसानों को राय दे रहे हैं कि फिलहाल इस साल पानीदार फसलों से मुक्ति पा लें.
दरअसल बरसात के इस मौसम में ड्राइ स्पेल बढ़ते जा रहे हैं. जाहिर है कि बिहार इस साल कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ का परिदृश्य एक साथ दिखेगा. अलबत्ता यह दौर चुनौतीपूर्ण है,क्योंकि बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है. सबसे ज्यादा असर धान पर पड़ने वाला है,क्योंकि बिहार में धान की फसल 70 फीसदी वर्षा आधारित है.
चार जलवायुविक क्षेत्रों में वैकल्पिक खेती
जोन वन-इसमें समस्तीपुर,दरभंगा और चम्पारन आदि तेरह जिले आते हैं,यहां कम ड्यूरेशन वाली धान और सोयाबीन की फसल बेहद अच्छी रहेगी.
जोन टू- इसमें पूर्णिया,मधेपुरा, अररिया
आदि जिले शामिल हैं,यहां भी शार्ट ड्यूरेशन वाली धान व दूसरी फसलें उपयुक्त होंगी.
जोन थ्री-ए में भागलपुर आदि जिले
आते हैं. यहां सोयाबीन और मध्यम समयावधि वाली धान लगाना ठीक रहेगा
जोन थ्री-बी में पटना,
नालंदा और गया आदि जिले आते हैं,यहां दलहनी फसलों काे लगाना होगा.
कुल मिलाकर दक्षिण बिहार में दलहनी फसलों के अलावा सोयाबीन की खेती इस साल उपयुक्त रहेगी. दरअसल दक्षिणी बिहार में मॉनसून काफी अरसे से रूठा है. यहां लगातार बारिश कम होती जा रही है. उत्तरी बिहार में कम अवधि वाली धान की किस्मों और सोयाबीन दोनों की खेती सटीक और फायदेमंद साबित होगी.
पशुओं को बचाने के लिए चारे योग्य खेती भी करें,अन्यथा खेती की रीढ़ टूट जायेगी.मौसम के अनुकूल फसलें लगायें. परंपरागत खेती की सोच छोड़नी होगी.
जलवायु परिवर्तन: आधिकारिक जानकारी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते बिहार में कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन की मात्रा में लगातार इजाफा हो रहा है. बिहार में जलवायु परिवर्तन से निबटने बनायी गयी
एक्शन प्लान रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में वर्ष 2020 तक सीओटू की मात्रा पांच फीसदी, 2050 तक 13 फीसदी और 2080 तक 21 फीसदी तक बढ़ जायेगी. वर्तमान में बिहार में सीओटू की मात्रा 390 पीपीएम है. यह आगामी पचास सालों में बढ़कर दो गुनी से अधिक 750 पीपीएम तक हो जायेगी.

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