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बिहार : सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों से हुआ खुलासा, जिस दिन सरकारी छुट्टी, उस दिन बेहतर होती है हवा

पटना : दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में चौथे नंबर पर शुमार पटना में जिस दिन सरकारी छुट्टी रहती है, उस दिन यहां की हवा बेहतर हो जाती है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के पिछले पांच दिनों के आंकड़े बता रहे हैं कि यहां छुट्टी के दिन हवा सांस लेने लायक रही. पटना का एयर […]

पटना : दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में चौथे नंबर पर शुमार पटना में जिस दिन सरकारी छुट्टी रहती है, उस दिन यहां की हवा बेहतर हो जाती है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के पिछले पांच दिनों के आंकड़े बता रहे हैं कि यहां छुट्टी के दिन हवा सांस लेने लायक रही. पटना का एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई बेहतर हो गया जब पटना में एक मई यानी मजदूर दिवस की छुट्टी थी. एक मई को एक्यूआई का लेवल 104 था जो बेहतर कहा जाता है.
दो मई को भी स्थिति ठीक ठाक रही जब एक्यूआई 115 था. यदि इन दो दिनों को छोड़ दिया जाये तो 29 अप्रैल से 3 मई तक एक्यूआई 124 से 174 के बीच रहा. पर्यावरणविदों के मुताबिक एयर क्वालिटी इंडेक्स में यदि लेवल 0 से 50 के बीच है तब यह हवा गुणवत्ता युक्त मानी जाती है. 51-100 के बीच संतुष्ट की स्थिति, 101-200 के लेवल में हल्का प्रदूषित, खराब 201-300 के बीच की स्थिति है, बदतर 301-400 के बीच और 401 से 500 के बीच की स्थिति बदतरीन वाली है.
पीएम 2.5 की मात्रा है बदतर
वायु गुणवत्ता के मानकों के मुताबिक हवा में
पार्टिकुलेटेड मैटर 2.5 की मात्रा बदतर स्थिति में है. यानी वायु में धूल कणों की मात्रा ज्यादा है. पीएम 2.5 60 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर होनी चाहिए. लेकिन इन पांच दिनों में पटना में 2.5 की मात्रा दो गुणा से लेकर चार गुणा अधिक रहा. एक मई को सबसे कम 124 घन मीटर और सबसे ज्यादा 3 मई को 267 घन मीटर 2.5 रिकार्ड किया गया है. इसके साथ ही ओजोन की मात्रा लगातार बदतर स्थिति में चल रही है.
गा़ड़ियों से प्रदूषण सबसे बड़ा कारण
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अध्ययन कहता है कि पटना की हवा में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और पीएम 10) की मात्रा तय मानक से ज्यादा है. इसका कारण गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ, धुल और ईंट भट्टा है. इस प्रदूषण के कारण दमा, कैंसर और
सांस की बीमारियों के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.
ये धूलकण आसानी ने सांस
के साथ शरीर के अंदर जाकर गले में खरास, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा करते हैं. दमा, कैंसर और सांस की बीमारियों के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.
सड़कों पर रोजाना तीस लाख पीपीएम कार्बन कणों का उत्सर्जन
रेत और धूल के ठोस बारीक कण से अलहदा वाहनों के धुएं में कार्बन के साथ निकल रहे कार्बन मोनो आॅक्साइड व अन्य कार्बन यौगिक पीएम 2.5 के सबसे बड़े स्रोत हैं. ये यौगिक खतरनाक हैं.
शहर में रोजाना करीब तीस लाख पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) कार्बन उत्सर्जन हो रहा है. आबादी के मान से कार्बन यौगिकों की यह मात्रा दो गुनी है. जानकारी के मुताबिक शहर में कार्बन मानक नाॅर्म्स से अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले वाहनों की संख्या करीब डेढ़ से दो लाख है. इनमें आधे वाहन दस साल पुराने हैं.
दरअसल वाहनों के धुएं से निकल रहे कार्बन यौगिक वातावरण से क्रिया करके एक विशेष धात्विक क्रिस्टल बना देते हैं. ये क्रिस्टल इतने महीन होते हैं कि ये सांस के साथ फेफड़े और पेट में चले जाते हैं. ये कई बीमारियों की वजह बन जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट भी इसी तथ्य की ओर इशारा कर रही है.
डब्लूएचओ की रिपोर्ट वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही नहीं : मोदी
कितना प्रदूषण?
ट्रांसपोर्ट 20%
लकड़ी जलावन 20%
ईंट भट्ठे 20%
ठोस कचरा जलाना 14%
इंडस्ट्री 9%
जेनरेटर व रोड डस्ट 7%
निर्माण कार्य व अन्य 10%
इस साल पहली जनवरी को ऑल टाइम हाई था पॉल्यूशन लेवल
इस साल में अब तक जनवरी सबसे ज्यादा प्रदूषित महीना था. पटना में फर्स्ट जनवरी को पीएम 2.5 का लेवल ऑल टाइम हाई था. एक जनवरी को मानक से सात गुणा अधिक 423 पर पीएम 2.5 की मात्रा पहुंच गयी.
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और सेंटर फॉर इंवायरमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट के मुताबिक खराब गुणवत्ता के मामले में पटना की हवा राज्य में पहले पायदान पर है. इसके बाद मुजफ्फरपुर और गया की हवा अधिकतम प्रदूषित है. इसके साथ ही देश के 20 शहरों में पटना में पीएम 2.5 औसत राष्ट्रीय तय मानक से चार गुना और पीएम 10 का औसत तीन गुना अधिक है.
डब्लूएचओ की रिपोर्ट वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही नहीं : मोदी
वायु प्रदूषण के संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट पर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने असहमति जतायी है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 से 2016 के आंकड़े के आधार पर रिपोर्ट तैयार किया गया है.
रैंकिंग सिर्फ परिवेशीय वायु में विद्यमान छोटे कणों की मात्र के आधार पर की गयी है. जबकि, वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार अन्य कई मापदंड जैसे- सल्फर डायऑक्साइड, नाट्रोजन डायऑक्साईड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन एवं बेंजीन की मात्रा बिहार के शहरों में मानक के अधीन पायी गयी है. गुरुवार को श्री मोदी ने पर्यावरण एवं वन विभाग के प्रधान सचिव तथा बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के अध्यक्ष व सदस्य सचिव के साथ बैठक कर विस्तृत चर्चा की. उन्होंने कहा कि गंगा नदी दूर चली गयी है और इसके किनारे अवस्थित शहरों में वायु प्रदूषण का एक कारण दियारा क्षेत्र के रेत एवं धूलकण हैं.

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