Advertisement
बस शिक्षा का स्तर हम सुधार लें, स्वस्थ हो जायेगा बिहार
पटना : बिहार अपनी स्थापना का 160वां साल 22 मार्च को मनाने जा रहा है. जाहिर है ऐसे में मौके पर हमें अपनी परख करनी होगी. आखिर इतने साल बाद भी हम कहां हैं. क्या कमी रह गयी, क्या हम पा गये, क्या खो दिया. सुधार की कहां गुंजाइश है. खास तौर पर तब जब […]
पटना : बिहार अपनी स्थापना का 160वां साल 22 मार्च को मनाने जा रहा है. जाहिर है ऐसे में मौके पर हमें अपनी परख करनी होगी. आखिर इतने साल बाद भी हम कहां हैं. क्या कमी रह गयी, क्या हम पा गये, क्या खो दिया. सुधार की कहां गुंजाइश है. खास तौर पर तब जब राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 की रिपोर्ट में यह खुलासा हो गया हो कि बिहार की 60 प्रतिशत महिलाओं में खून की कमी है. 30 प्रतिशत से अधिक महिलाओं का बीएमआई सामान्य से कम है. छह से 59 माह के बच्चे भी एनिमिक हो रहे हैं. 15-49 वर्ष की महिलाएं भी इससे अछूती नहीं हैं.
महापंजीयक और जगणना
आयुक्त कार्यालय के जारी आंकड़ों पर भरोसा करें तो बिहार में पांच से 18 साल के बच्चे और युवा सबसे ज्यादा कुपोषित हो रहे हैं. खराब स्थिति वाले देशभर के सौ जिलों में प्रदेश के 17 जिले बिहार के हैं. इसमें अररिया टॉप पर है.
इतना ही नहीं, बिहार के 19 जिलों में कुपोषण के साथ ही बौनेपन ने भी पैर पसारे हैं. ऐसे में इन सब बिंदुओं पर मंथन के लिए प्रभात खबर ने परिचर्चा आयोजित कर चिकित्सकों और समाजसेवियों की राय जानी. विषय था- बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था कैसे दुरुस्त हो? कुपोषण जैसे नासूर को खत्म करने के लिए क्या किया जाये. कुल मिलाकर यही बात सामने आयी कि शिक्षा का स्तर हम सुधार लें तो सारी समस्याओं का हल हो जायेगा. फिर लोग जागरूक होंगे.
मंगलवार को बोरिंग रोड चौराहा स्थित प्रभात खबर के कार्यालय में आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि कुपोषण सामाजिक परिवेश से जुड़ा है. महिलाओं पर कम ध्यान दिया जाता है. गर्भवती महिलाओं काध्यान जितना रखना चाहिए, हम नहीं रखते. इसी का प्रतिफल होता है कि महिलाएं विभिन्न बीमारियों के लपेटे में तो आती ही हैं, बच्चे भी कमजोर हो जाते हैं. यही कुपोषण के रूप में सामने आता है. वक्ताओं ने कहा कि आम जन को आर्थिक रूप से से मजबूत किया जाये. तभी स्वस्थ बिहार का सपना पूरा होगा.
डिब्बे का दूध लिखना बंद करें डॉक्टर
बिना स्वस्थ शरीर के किसी का भी विकास संभव नहीं है. इसके लिए शहर और ग्रामीण क्षेत्र में भी कई योजनाओं को धरातल पर लाने की जरूरत है. गांव में ही कई ऐसे पौष्टिक खाद्य सामग्री हैं, जिस पर अगर सरकार और आम लोगों का ध्यान दें तो कुपोषण बहुत हद तक खत्म हो जायेगा. इसके अलावा किसानों को उनके उत्पादन का मूल्य ठीक मिले, यह सुनिश्चित करना होगा. इससे आर्थिक स्थिति सुधरेगी और बिहार स्वस्थ होगा. बाल रोग विशेष डॉ एनके अग्रवाल ने कहाकि डॉक्टरों बात-बात में डिब्बा का दूध लिखना बंद करना होगा. कम से कम छह माह तक. इस समय में मां का दूध ही सबकुछ है.
फार्मा से फार्म की ओर
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ एनके अग्रवाल ने शानदार बात कही. उन्होंने कहा की अब वह समय आ गया है कि हम फार्मा से फार्म की ओर बढ़ें. घर में उपलब्ध चीजों में ही विटामिन और प्रोटीन खोजें. तमाम जरूरत की चीजें घर में मौजूद हैं, बस हमें जानने की जरूरत है. हर चीज दवाओं और डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों में नहीं है. काफी सस्ते में हम घर की बनी चीजों से वह प्रोटीन हासिल कर सकते हैं.
और खाते में घाटा हो गया
योजनाएं यूं चली जैसे छिनालो की जबान, हम जमा करते रहे और खाते में घाटा हो गया. जैसे ही आइएमए के वरीय उपाध्यक्ष डॉ अजय कुमार ने यह पंक्ति शुरू की तालियां बजना शुरू हो गया. डॉ अजय ने यह पंक्ति का अर्थ बताते हुए कहा कि सरकार स्तर पर कई योजनाएं हैं, लेकिन वह धरातल पर सही तरीके से लागू नहीं हो रहा है. जिस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement