पटना : बिहार की सियासत में हाल के दिनों में कुछ उलटफेर वाली घटनाएं हुई हैं. कहा जा रहा है कि इसका असर बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा. सबसे पहले एनडीए छोड़कर मांझी ने महागठबंधन का दामन थामा और उसके बाद कांग्रेस के दो तिहाई विधान पार्षदों ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया. उनमें से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी मानें जाने वाले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी भी शामिल हैं. बिहार विधान परिषद में कांग्रेस के छह पार्षद थे, जिनमें से चार ने पाला बदल लिया और जदयू का दामन थाम लिया. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें, तो नीतीश कुमार इन्हीं चारों नेताओं में से एक नेता को बहुत बड़ी जिम्मेदारी दे चुके हैं. सूत्रों की मानें, तो यह कमान उन्होंने अनुभवी और अपने करीबी नेता डॉ. अशोक चौधरी को सौंपी है.
महागठबंधन और कांग्रेस के बीच उपचुनाव में सीटों का बंटवारा हो जाने के बाद भभुआ विधानसभा सीट भाजपा के खाते में गयी है. हालांकि, वहां से कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार उतारा है. असल राजनीति यहीं से शुरू हो रही है. जानकारों की मानें, तो नीतीश कुमार कांग्रेस के उम्मीदवार को हर हाल में हारते हुए देखना चाहते हैं. उन्होंने इसके लिए अशोक चौधरी को इसकी कमान सौंपी है, ताकि वह कांग्रेस के उम्मीदवार को एनडीए का नेता बनकर हरायें. इधर, हाल में अशोक चौधरी राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी के बयानों से काफी आहत हैं और उन्होंने शिवानंद तिवारी पर पलटवार करते हुए कहा था कि आखिर शिवानंद तिवारी को क्यों दर्द हो रहा है. मैं जदयू में जाकर जलूं या मरूं, मेरी चिंता शिवानंद तिवारी नहीं करें.
अशोक चौधरी इन दिनों कांग्रेस से अच्छे खासे नाराज चल रहे हैं. जदयू का दामन थामने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की खूब प्रशंसा की है और उनके नेतृत्व में जदयू में रहकर मुख्यमंत्री के सपनों को साकार करने की बात कही है. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें, तो नीतीश कुमार बिहार की सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं और उन्हें पता है कि बिहार की राजनीति में किस व्यक्ति को कौन सी मुफीद जगह पर राजनीतिक रूप से प्रयोग किया जा सकता है. नीतीश कुमार के लिए अशोक चौधरी इन दिनों वैसे ही नेता के रूप में नजर आ रहे हैं, जो कांग्रेस को भभुआ में धूल चटा सकते हैं. विश्वसनीय सूत्रों की मानें, तो एक खास रणनीति के तहत कांग्रेस पर लगातार अशोक चौधरी हमलावर हो रहे हैं और कांग्रेस के कई स्थानीय नेता लगातार जदयू में शामिल भी हो रहे हैं.
अशोक चौधरी से जुड़े सूत्रों की मानें, तो जब वह कांग्रेस में थे, तब भभुआ सीट से किस उम्मीदवार को टिकट दी जानी है, इसकी सलाह तक उनसे नहीं ली गयी थी और अशोक चौधरी ने इसके लिए पार्टी नेतृत्व को दोषी ठहराते हुए अपमानित किये जाने की बात कही थी. राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि अशोक चौधरी अपनी पैठ जदयू में बढ़ाने और कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए भभुआ विधानसभा सीट को अपनी नाक का सवाल बना लिया है. अशोक चौधरी हर हाल में भभुआ से कांग्रेस को हारता हुआ देखना चाहते हैं. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि यदि ऐसा हो जाता है, तो अशोक चौधरी का कद बिहार की सियासत में बड़ा हो जायेगा और कांग्रेस को दूसरी बड़ी टूट का भी सामना करना पड़ेगा. फिलहाल, नीतीश कुमार की उम्मीदों पर अशोक चौधरी कितना खरा उतरते हैं, यह भभुआ विधानसभा चुनाव की रिजल्ट से तय होगा.
यह भी पढ़ें-
तेजस्वी ने सुशील मोदी पर कसा तंज, कहा- मेरे खिलाफ चार्जशीट के लिए घूम रहे हैं दिल्ली